KKN गुरुग्राम डेस्क | बॉलीवुड सुपरस्टार आमिर खान ने शुक्रवार को भारतीय सिनेमा के भविष्य और देश में सिनेमाघरों की कमी को लेकर गंभीर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि भारत में सिर्फ 2% लोग ही सिनेमा हॉल में फिल्में देखने पहुंचते हैं, जबकि देश की विशाल आबादी और सिनेमा प्रेम के बावजूद स्क्रीन की संख्या अत्यंत कम है।
Article Contents
आमिर खान ने यह बातें मुंबई में आयोजित विश्व दृश्य-श्रव्य एवं मनोरंजन शिखर सम्मेलन (WAVES 2025) के दूसरे दिन “भविष्य के स्टूडियो: विश्व स्टूडियो मानचित्र पर भारत” सत्र में कही।
भारत में सिनेमा का प्यार, लेकिन सुविधाओं की भारी कमी
आमिर खान ने कहा,
“भारत दुनिया का सबसे बड़ा फिल्म देखने वाला देश है, लेकिन हमारे पास लोगों को सिनेमा हॉल तक पहुंचाने के पर्याप्त संसाधन नहीं हैं। देश में कई जिले ऐसे हैं जहां एक भी थिएटर नहीं है।”
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि केवल दो प्रतिशत भारतीय ही सिनेमाघरों में फिल्में देखते हैं, और सवाल किया कि बाकी 98 प्रतिशत दर्शक कहां और कैसे फिल्में देखते हैं?
भारत बनाम चीन और अमेरिका: स्क्रीन की संख्या में भारी अंतर
आमिर खान ने बताया कि भारत में सिर्फ 10,000 सिनेमाघर स्क्रीन हैं, जबकि:
-
चीन में – 90,000 स्क्रीन
-
अमेरिका में – 40,000 स्क्रीन
उन्होंने कहा,
“भारत की आबादी अमेरिका से तीन गुना और चीन के बराबर है, फिर भी हम स्क्रीन की संख्या में बहुत पीछे हैं। इस अंतर को दूर किए बिना, हम सिनेमा उद्योग को नई ऊंचाइयों तक नहीं ले जा सकते।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि भारत की इन 10,000 स्क्रीन में से लगभग आधी दक्षिण भारत में हैं, जबकि शेष पूरे देश में फैली हैं। इस कारण एक हिंदी फिल्म के लिए औसतन 5,000 स्क्रीन ही मिलती हैं।
कोंकण जैसे क्षेत्रों में नहीं एक भी सिनेमाघर
आमिर खान ने विशेष रूप से कोंकण और अन्य पिछड़े क्षेत्रों का जिक्र किया, जहां आज भी एक भी सिनेमाघर मौजूद नहीं है। उन्होंने कहा:
“वहां के लोग फिल्मों के बारे में सुनते हैं, ऑनलाइन ट्रेलर देखते हैं, लेकिन उन्हें देखने का कोई मौका नहीं मिलता। यह एक बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है।”
थिएटर और OTT के बीच कम होता अंतर, नुकसान फिल्म इंडस्ट्री को
आमिर खान ने इस बात पर भी चिंता व्यक्त की कि थिएटर रिलीज और OTT रिलीज के बीच का अंतर बहुत कम हो गया है, जिससे फिल्म व्यवसाय को नुकसान हो रहा है।
उन्होंने कहा,
“पहले फिल्में थिएटर में आती थीं और एक साल बाद टीवी या सैटेलाइट पर आती थीं। फिर यह आठ महीने, छह महीने और अब सिर्फ कुछ हफ्ते रह गया है। ऐसे में दर्शक सोचता है कि थिएटर क्यों जाए?”
यह प्रवृत्ति, उनके अनुसार, थिएटर संस्कृति को खत्म कर रही है।
सरकार से उम्मीद: नीतिगत बदलाव की शुरुआत
आमिर खान ने इस बात की सराहना की कि WAVES सम्मेलन के माध्यम से सरकार और रचनात्मक समुदाय के बीच संवाद की शुरुआत हुई है। उन्होंने कहा:
“पहली बार ऐसा हो रहा है कि सरकार मीडिया और मनोरंजन क्षेत्र को एक रणनीतिक क्षेत्र मान रही है। यह स्वागत योग्य कदम है।”
उन्होंने आशा जताई कि इस सम्मेलन में हुई चर्चाएं नीतियों में तब्दील होंगी और इससे फिल्म जगत को नई ऊर्जा मिलेगी।
भारतीय सिनेमा को वैश्विक स्तर पर ले जाने की जरूरत
आमिर खान और निर्माता दिनेश विजन ने एक और सत्र में जोर दिया कि भारतीय फिल्मों को भारत से बाहर भी सोचने की जरूरत है।
“हमें दुनिया के अलग-अलग देशों में अपनी फिल्मों के लिए डिस्ट्रिब्यूशन नेटवर्क स्थापित करने होंगे। भारतीय सिनेमा की अपील वैश्विक है, लेकिन इसकी पहुंच सीमित है।”
इस सत्र में रितेश सिधवानी (एक्सेल एंटरटेनमेंट), अजय बिजली (PVR INOX प्रमुख), हॉलीवुड निर्माता चार्ल्स रोवन और DNEG के CEO नमित मल्होत्रा जैसे दिग्गज भी शामिल हुए।
🇨🇳 चीन के साथ फिल्मी सहयोग के पक्ष में आमिर खान
आमिर खान ने कहा कि भारत और चीन के रचनात्मक समुदायों को एक साथ काम करना चाहिए। उन्होंने बताया कि उनकी फिल्में ‘3 इडियट्स’ और ‘दंगल’ चीन में जबरदस्त हिट रही हैं।
“भारतीय और चीनी दर्शकों की भावनाएं एक जैसी हैं,” उन्होंने कहा।
“जब मैंने चीन में ‘दंगल’ देखी, तो वहां के दर्शकों की प्रतिक्रिया वैसी ही थी जैसी भारत में होती है। वे भी हमारी कहानियों से उतना ही जुड़ते हैं।”
दोनों देशों को मिलकर काम करना चाहिए: आमिर खान
आमिर खान ने कहा कि भारत और चीन को रचनात्मक, व्यावसायिक और भावनात्मक स्तर पर सहयोग करना चाहिए। उन्होंने कहा:
“यह दोनों देशों के लिए फायदे का सौदा होगा। अगर हम साथ काम करें तो हम तकनीकी ज्ञान, बजट और दर्शकों के विस्तार के मामले में एक-दूसरे को सहयोग कर सकते हैं।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि वे कई वर्षों से चीनी फिल्म निर्माताओं और लेखकों से संपर्क में हैं और WAVES सम्मेलन के जरिए यह सहयोग अब व्यवहारिक रूप ले सकता है।
आमिर खान की बातों से स्पष्ट है कि भारत में फिल्म निर्माण की क्षमता है, लेकिन उसे सुनियोजित बुनियादी ढांचे और नीति समर्थन की जरूरत है।
भारत को अगर वास्तव में सिनेमा के वैश्विक नेता के रूप में उभरना है, तो सिनेमाघरों की संख्या बढ़ाना, OTT और थिएटर के बीच संतुलन बनाना, और अन्य देशों के साथ सहयोग करना अनिवार्य है।
Discover more from
Subscribe to get the latest posts sent to your email.