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डिमेंशिया के जोखिम को कैसे कम करें: एक अमेरिकी अध्ययन से भारत के लिए सबक

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KKN गुरुग्राम डेस्क |  डिमेंशिया, जो एक प्रगतिशील न्यूरोडीजेनेरेटिव रोग है, वैश्विक स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर चुनौती बनता जा रहा है। हाल ही में अफ्रीकी-अमेरिकी वयस्कों पर केंद्रित एक अमेरिकी अध्ययन ने ऐसे महत्वपूर्ण तथ्य उजागर किए हैं जो भारत जैसे देश के लिए बेहद प्रासंगिक हैं। लैंसेट कमीशन की दो रिपोर्टों (2017 और 2024) के अनुसार, यदि सही समय पर कदम उठाए जाएं, तो डिमेंशिया के एक-तिहाई मामलों को रोका जा सकता है।

इस लेख में, हम डिमेंशिया के जोखिम कारकों और उन्हें कम करने के तरीकों पर चर्चा करेंगे, साथ ही भारत के संदर्भ में इस अध्ययन की प्रासंगिकता को समझने की कोशिश करेंगे।

डिमेंशिया के वैश्विक स्तर पर बढ़ते मामले

अमेरिका में हुए हालिया अध्ययन से पता चलता है कि 2020 में 5.14 लाख लोग डिमेंशिया से पीड़ित थे, और यह संख्या 2060 तक बढ़कर लगभग 10 लाख हो सकती है। यह वृद्धि अफ्रीकी-अमेरिकी वयस्कों में विशेष रूप से अधिक देखी गई है।

भारत में भी, डिमेंशिया एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या बनता जा रहा है। भारत डिमेंशिया से प्रभावित जनसंख्या में तीसरे स्थान पर है।

डॉ. एम. वी. पद्मा श्रीवास्तव का दृष्टिकोण

पारस हेल्थ, गुरुग्राम में न्यूरोलॉजी विभाग की प्रमुख डॉ. एम. वी. पद्मा श्रीवास्तव का कहना है, “यदि सही समय पर निवारक कदम उठाए जाएं, तो डिमेंशिया के 30% मामलों को रोका जा सकता है।”

यह रोकथाम मुख्यतः मधुमेह, उच्च रक्तचाप, मोटापा और सामाजिक अलगाव जैसे कारकों को नियंत्रित करने से संभव है।

भारत के लिए इस अध्ययन की प्रासंगिकता

भारत की विशाल जनसंख्या और तेजी से बदलती जीवनशैली इसे डिमेंशिया के प्रति और अधिक संवेदनशील बनाती है। यहां, डिमेंशिया के मामले अक्सर मिश्रित और वास्कुलर डिमेंशिया (स्ट्रोक के कारण होने वाला) के रूप में देखे जाते हैं।

डिमेंशिया के लिए भारत में प्रमुख जोखिम कारक

  1. मधुमेह और उच्च रक्तचाप:
    भारत में जीवनशैली से संबंधित रोग, जैसे मधुमेह और उच्च रक्तचाप, तेजी से बढ़ रहे हैं। ये दोनों ही डिमेंशिया के प्रमुख कारण हैं।
  2. स्ट्रोक का बढ़ता खतरा:
    युवा भारतीयों (30-40 वर्ष) में स्ट्रोक के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। यह बाद के वर्षों में डिमेंशिया के विकास का एक बड़ा कारण हो सकता है।
  3. पोषण की कमी:
    विटामिन बी12 और अन्य पोषक तत्वों की कमी मस्तिष्क के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डाल सकती है।
  4. सामाजिक अलगाव:
    भारत में बुजुर्ग लोग अक्सर अकेलेपन और अवसाद का सामना करते हैं, जो डिमेंशिया के जोखिम को बढ़ाता है।

डिमेंशिया के रोकथाम में लैंसेट रिपोर्ट्स की भूमिका

लैंसेट कमीशन की रिपोर्ट्स (2017 और 2024) के अनुसार, डिमेंशिया के रोकथाम के लिए विभिन्न आयु समूहों में विशिष्ट उपाय अपनाए जा सकते हैं:

प्रारंभिक आयु में (बचपन और किशोरावस्था)

  • पोषण और शारीरिक फिटनेस पर ध्यान दें।
  • शिक्षा तक पहुंच सुनिश्चित करें।

मध्यम आयु में (30-50 वर्ष)

  • मधुमेह और उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करें।
  • सक्रिय सामाजिक जीवन बनाए रखें।

बुजुर्ग आयु में (60 वर्ष और अधिक)

  • सामाजिक अलगाव से बचें।
  • मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखें और अवसाद का इलाज करवाएं।
  • मस्तिष्क को सक्रिय रखने के लिए नियमित मानसिक गतिविधियों में शामिल हों।

क्या भारत में जोखिम कारक बदल रहे हैं?

भारत में डिमेंशिया के मामलों में वृद्धि के पीछे निम्नलिखित प्रमुख कारण हैं:

  1. जीवनशैली में बदलाव:
    आधुनिक जीवनशैली में व्यस्तता के कारण लोग शारीरिक गतिविधियों और स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं दे रहे हैं।
  2. वित्तीय असमानता:
    गरीब और पिछड़े वर्गों को पोषक आहार और स्वास्थ्य सेवाओं तक सीमित पहुंच है।
  3. अस्वस्थ खान-पान:
    जंक फूड और कम पोषक आहार का बढ़ता चलन भी डिमेंशिया के जोखिम को बढ़ा रहा है।
  4. मेडिकल सुविधाओं तक सीमित पहुंच:
    उन्नत डायग्नोस्टिक सुविधाओं, जैसे बायोमार्कर टेस्ट और इमेजिंग, तक पहुंच सीमित है।

डिमेंशिया का जल्द पता कैसे लगाएं?

सावधान रहने के संकेत

  • पारिवारिक इतिहास: यदि परिवार में किसी को अल्जाइमर या डिमेंशिया रहा हो, तो सतर्क रहें।
  • भूलने की आदत: यदि परिवार के लोग आपकी स्मरण शक्ति पर ध्यान दें, तो यह एक चेतावनी संकेत हो सकता है।

डायग्नोस्टिक उपकरण

आजकल डिमेंशिया का शुरुआती पता लगाने के लिए कई उन्नत तकनीकें उपलब्ध हैं, जैसे:

  1. ब्लड बायोमार्कर: मस्तिष्क की स्वास्थ्य स्थिति का पता लगाने के लिए रक्त परीक्षण।
  2. एमआरआई और पीईटी स्कैन: मस्तिष्क में संरचनात्मक और कार्यात्मक परिवर्तनों का पता लगाने के लिए इमेजिंग।
  3. लंबर पंक्चर: रीढ़ की हड्डी के द्रव का विश्लेषण।

डिमेंशिया को रोकने के उपाय

व्यक्तिगत स्तर पर क्या करें?

  1. स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं:
    • संतुलित आहार लें, जिसमें फल, सब्जियां और ओमेगा-3 फैटी एसिड शामिल हों।
    • नियमित व्यायाम करें।
  2. मधुमेह और उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करें:
    • नियमित स्वास्थ्य जांच करवाएं।
    • दवाओं का समय पर सेवन करें।
  3. सामाजिक रूप से सक्रिय रहें:
    • परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताएं।
    • समुदायिक कार्यक्रमों में हिस्सा लें।
  4. मानसिक व्यायाम करें:
    • पहेलियां सुलझाएं, किताबें पढ़ें और नई चीजें सीखें।

नीतिगत स्तर पर क्या किया जाए?

  1. स्वास्थ्य साक्षरता बढ़ाएं:
    • लोगों को डिमेंशिया के कारणों और रोकथाम के तरीकों के बारे में जागरूक करें।
  2. पोषण संबंधी कमियों को दूर करें:
    • सार्वजनिक स्वास्थ्य अभियान चलाकर विटामिन बी12 जैसे पोषक तत्वों की कमी को दूर करें।
  3. डायग्नोस्टिक सुविधाएं उपलब्ध कराएं:
    • उन्नत परीक्षण और इमेजिंग तकनीकों को अधिक सुलभ और किफायती बनाएं।
  4. बुजुर्गों के लिए सामाजिक ढांचा तैयार करें:
    • बुजुर्गों को अकेलेपन और अवसाद से बचाने के लिए सामुदायिक कार्यक्रम और सहायता केंद्र बनाएं।

अमेरिकी अध्ययन से मिली जानकारियां भारत के लिए एक महत्वपूर्ण सबक हैं। बढ़ती उम्र के साथ डिमेंशिया के जोखिम को कम करने के लिए जीवनशैली में बदलाव और नीतिगत हस्तक्षेप जरूरी हैं।

डिमेंशिया को रोकने के लिए मधुमेह, उच्च रक्तचाप और सामाजिक अलगाव जैसे कारकों को नियंत्रित करना सबसे प्रभावी उपाय है। साथ ही, शुरुआती पहचान और जागरूकता अभियानों से इस स्थिति को बेहतर तरीके से प्रबंधित किया जा सकता है।


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