भारत की राजनीति (Indian Politics) में जातिवाद (Cast System)) एक अनिवार्य शर्त बन गया है। विकास की चाहे जितनी बात कर लीजिए, जीत के लिए अंत में जाति (Cast) की धूरी पर सभी को चकरघिन्नी बनना पड़ता है। खास करके हिन्दी पट्टी (Hindi Belt States)) में। UP का चुनाव इससे अछूता नहीं है। एक्सप्रेस-वे (ExpressWay) से शुरू हुआ राजनीति (Politics)। विकास (Development) की कई कॉरिडोर से गुजरता हुआ। जातीय समीकरण (Cast Equation) की दलदल में हिचकोले भरने लगा है। किसानो की कर्ज माफी (Farmers Loan Wave)), गन्ना का बकाया भुगतान और इज्जत घर। मानो कल की बातें हो गई। मतदान की तारीख (Election Date) करीब आते ही Uttar Pradesh में लोग पूछने लगे कि जाठ (Jath Cast) किधर जायेगा। राजभर (Rajbhar Cast) का क्या होगा। कुर्मी और निषाद वोटर (Kurmi & Nishad Voters) एकजुट रहेंगे या नही। मुसलमान, दलित और ब्राह्मण (Musalman, Dalit and Brahman) जैसे शब्द अचानक सुर्खियों में आ गया है। कहां गई महंगाई का मुद्दा। क्या हुआ बेरोजगारी (Unemployment) का। किसान आंदोलन (Farmers Protest) से जुड़े आक्रोश का क्या हुआ। ऐसे कई ज्वलंत सवाल है। जो, UP के राजनीति (Politics of UP) की दशा और दिशा को तय करता है। आज हम इन्ही मुद्दो की पड़ताल करेंगे।
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