यूपी के वाराणसी ज़िले में बाढ़ की स्थिति दिन-ब-दिन गंभीर होती जा रही है। गंगा, वरुणा, गोमती और नाद नदियों में लगातार बढ़ रहे जलस्तर के चलते ग्रामीण और शहरी इलाकों में भारी तबाही मची हुई है। अब तक 54 गांव बाढ़ की चपेट में आ चुके हैं, जबकि शहर के 24 वार्डों और मोहल्लों में पानी घुस चुका है। घाट, सड़कें और घर जलमग्न हो गए हैं। वहीं एक 30 वर्षीय युवक की डूबने से मृत्यु हो गई है।
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नदी के उफान से गांवों और शहर में दहशत
गंगा समेत चार प्रमुख नदियों के जलस्तर में एक साथ आई तेजी से सिर्फ तटीय गांव ही नहीं बल्कि दूरस्थ क्षेत्रों के लोग भी बाढ़ की चपेट में आ गए हैं। रविवार तक जहां 44 गांव प्रभावित थे, वहीं सोमवार को यह संख्या बढ़कर 54 हो गई।
शहर के अस्सी, दशाश्वमेध, शीतला घाट और सामने घाट जैसे इलाके अब नदी के पानी में समा चुके हैं। पॉश कॉलोनियों में भी पानी भरने लगा है। पिसौर और आराजीलाइन ब्लॉक के मरूई, सिहोरवां और जक्खिनी गांवों तक भी बाढ़ का पानी पहुंच गया है।
30 वर्षीय युवक की बाढ़ में डूबकर मौत
हुकुलगंज निवासी मोनू चौहान, जिनकी उम्र 30 वर्ष थी, बाढ़ के पानी में डूब गए। एनडीआरएफ की टीम ने उनका शव बरामद किया। परिवार ने Disaster Relief Fund से सहायता की मांग की है। यह घटना प्रशासन की तैयारी पर सवाल भी खड़े करती है।
गंगा ने पार किया खतरे का निशान, बढ़ता जा रहा है जलस्तर
केंद्रीय जल आयोग के अनुसार सोमवार रात 12 बजे तक गंगा का जलस्तर 72.15 मीटर पहुंच गया, जो खतरे के निशान से 89 सेंटीमीटर ऊपर है। दिन में जलस्तर वृद्धि की गति थोड़ी कम रही – 0.5 सेमी प्रति घंटा – लेकिन रात होते-होते यह 1 सेमी प्रति घंटा तक पहुंच गई।
हालांकि रविवार को यह गति 2 सेमी प्रति घंटा थी, इस लिहाज से कुछ राहत मानी जा सकती है, लेकिन हालात अब भी बेहद संवेदनशील हैं।
गांवों में टूटा संपर्क, चारे और आवागमन की किल्लत
बाढ़ की वजह से आधा दर्जन से ज्यादा गांवों का संपर्क मार्ग पूरी तरह से टूट चुका है। ग्रामीण नाव के सहारे शहर तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं। सबसे ज्यादा असर उन गांवों में देखा जा रहा है जहां पशुपालन मुख्य व्यवसाय है।
चिरईगांव ब्लॉक के छितौना, चांदपुर, रामचंदीपुर, मुस्तफाबाद-रेतापार जैसे गांवों में गंगा का पानी सड़कों तक पहुंच गया है। छितौना के जयगोविंद यादव ने बताया कि उनका गांव पशुपालन के लिए जाना जाता है, और अब तीनों तरफ से बाढ़ से घिर चुका है।
चांदपुर के प्रधान प्रतिनिधि संजय सोनकर के अनुसार, गांव के अंदर जाने वाले रास्तों पर चार फुट तक पानी भरा है। पशुओं के लिए चारा मिलना मुश्किल हो गया है, जिससे संकट और गहराता जा रहा है।
जक्खिनी संवाद के अनुसार, सिहोरवा दक्षिणी, शहंशाहपुर और जक्खिनी की सीमा तक पानी पहुंच गया है। किसान दिनेश मिश्रा ने बताया कि उनकी तीन बीघा बैगन की फसल पूरी तरह डूब चुकी है।
शहंशाहपुर और मरूई में स्थित बाढ़ राहत केंद्रों पर अब पीड़ित परिवार अपने मवेशियों के साथ पहुंचने लगे हैं।
चौबेपुर ब्लॉक के पिपरी, लक्ष्मीसेनपुर और टेकरी गांव पूरी तरह से कट चुके हैं। अब वहां के लोग नावों के सहारे शहर की ओर जा रहे हैं।
श्मशान घाटों पर भीषण संकट, छह घंटे तक शवदाह का इंतजार
बाढ़ का असर श्मशान घाटों पर भी देखने को मिल रहा है। हरिश्चंद्र घाट पर मुख्य मार्ग से लेकर कांची कामकोटिश्वर महादेव मंदिर के मोड़ तक पानी भर गया है।
स्थिति यह है कि श्मशान स्थल पर एक साथ सिर्फ तीन चिताएं ही जल पा रही हैं। बाकी शवों के परिजनों को 6 घंटे तक इंतजार करना पड़ा।
मणिकर्णिका घाट की स्थिति और भी खराब है। संकरी गलियों में पानी भरने के कारण वहां शव और लकड़ियों को नावों के सहारे ले जाना पड़ रहा है।
सतुआ बाबा आश्रम के प्रवेश द्वार तक पानी पहुंच चुका है, जिससे पिंडदान की परंपरा निभाना मुश्किल हो गया है।
काशी विश्वनाथ द्वार के पास की दुकानें बंद कराई गई हैं क्योंकि अब वहीं से शवदाह के लिए लोग जा रहे हैं।
प्रशासन अलर्ट पर, लेकिन राहत कार्य चुनौतीपूर्ण
प्रशासन ने बोट सर्विस, मेडिकल किट और राहत सामग्री के साथ बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में मदद भेजनी शुरू कर दी है। लेकिन बढ़ते जलस्तर और कटे हुए संपर्क मार्ग के कारण राहत कार्य में मुश्किलें आ रही हैं।
रिलीजिंग पॉइंट्स, फ्लड सेंटर्स, और फूड डिस्ट्रीब्यूशन जोन पर भीड़ बढ़ने लगी है। स्थानीय प्रशासन ने प्रभावितों से संयम रखने और अफवाहों से बचने की अपील की है।
आने वाले दिन बेहद महत्वपूर्ण
मौसम विभाग के पूर्वानुमान के अनुसार आने वाले दो से तीन दिन और बारिश की संभावना है, जिससे जलस्तर में और बढ़ोतरी हो सकती है।
स्कूल बंद हैं, ग्रामीण बाजारों में आवश्यक वस्तुओं की कमी शुरू हो गई है। जिन इलाकों में बिजली पहुंची थी, वहां अब ट्रांसफॉर्मर डूबने से पावर कट हो चुका है।
सरकार ने जिलों को सतर्क रहने और एवैकुएशन प्लान तैयार रखने के निर्देश दिए हैं।
वाराणसी इस वक्त एक गंभीर बाढ़ संकट का सामना कर रहा है। नदियों का उफान लगातार लोगों की मुश्किलें बढ़ा रहा है। 54 गांवों में पानी भर चुका है, कई परिवार बेघर हो गए हैं, फसलें बर्बाद हो गई हैं और शवदाह जैसी अंतिम रस्में भी बाधित हो रही हैं।
Monu Chauhan की मौत इस त्रासदी की गंभीरता को दर्शाती है। आने वाले दिन बेहद निर्णायक होंगे – अगर जलस्तर नहीं थमा, तो इवैक्यूएशन की जरूरत और ज्यादा क्षेत्रों में पड़ सकती है।
प्रशासन, राहत कर्मी और स्थानीय लोग मिलकर इस संकट से निपटने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन चुनौतियां कम नहीं हैं। फिलहाल पूरे जिले की निगाहें इस पर टिकी हैं कि पानी कब थमेगा और ज़िंदगी दोबारा पटरी पर कब लौटेगी।
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