कम्युनिस्टों की क्रांति, डॉ लोहिया की सप्तक्रांति एवं लोकनायक जय प्रकाश नारायण की सम्पूर्ण क्रांति। क्या भावना व कल्पना में बोली गई महज एक जुमला थी या कोई कोरी कल्पना? क्योंकि, काफी त्याग, बलिदान एवं सत्य अहिंसा की इस धरती के लहू लुहान होने के बावजूद आज परिणाम सामने है। जेपी ने 5 जून 1974 को सम्पूर्ण क्रांति का ऐलान किया था। उस समय सत्ता पाने वाले उनके लोगो ने भी अपने नेता के संकल्प को दुहराया था। कसमे खायी थी। किन्तु, उन्होंने क्या किया? क्या सम्पूर्ण क्रांति? आज तक वे लगे है, सिर्फ एक आरक्षण का लाभ लेने में। इस जातिए उन्माद से क्रांति हो गई क्या? हमलोग जन मंच से सम्पूर्ण क्रांति का जो माने लोगो को समझाया था उसमे निम्न मुद्दे थे।
1- भ्रष्ट्राचार, मंहगाई व बेरोजगारी का खत्मा, जिसके लिये गृह उधोग, कृषि उधोग, भूमि सुधार पर जोर।
2, दोहरी शिक्षा निति यानी बड़ो के लिये बड़ा स्कूल का खात्मा।
3 नशाबन्दी, तिलक, दहेज़ एवं बाल विवाह पर रोक।
4 असीमित व असमान सम्पति अर्जन का मौलिक अधिकार का खात्मा, कालाधन की निकासी और उस पर रोक।
अब सवाल उठता है क्या यह सब हो गया? लोहियावादी, समाजवाद, गांधी, बिनोवा का सर्वोदय, ग्राम स्वराज एवं जेपी के सम्पूर्ण क्रांति के कर्ताधर्ता, क्या घोटाला रंगदारी अपहरण एवं दबंगता का सम्राज्य स्थापित करके यह सब कर लेगे? सम्पूर्ण क्रांति ही राम राज या ग्राम स्वराज है। जिसकी जड़ है, जन अदालत, यानि लोक सभा ग्राम स्वराज्य सभा आदि। इन चीजो की की नींव छोटे क्षेत्र मुजफ्फरपुर के मुशहरी में सर्वोदय नेता जयप्रकाश ने शुरू की थी। व्यवस्था को 1942 से आज तक चार बार धक्का लगने के बावजूद अभी हम मन्थर गति से ही सम्पूर्ण क्रांति की ओर बढ़ रहे है। ये माननीय कहलाने वाले कपटी नही होते तो आज सम्पूर्ण क्रांति हो गई रहती। आज तो इसके बदले स्थापित हो रहे लोकतन्त्र को ध्वस्त किया जा रहा है। चुनाव आयोग की इस पर पैनी नजर और ठोस अंकुश का आभाव है। इन सबो पर पर जमकर कुठाराघात करना हमारा धर्म है।
लेखक- डीके विधार्थी, जेपी सेनानी सलाहकार परिषद के सदस्य है।