KKN न्यूज ब्यूरो। सुबह के दस बजने को था। गांव के चौराहे पर एक बाइक आकर रूक गई। मुंह पर मास्क लगाये और हाथो में एक बड़ा सा झोला लिए, दो लोग बाइक से उतरते है और वहां पर खड़े एक अधेड़ व्यक्ति को कपड़े से बना एक मास्क और एक छोटा सा साबुन थमा देते है। फिर क्या था…? दूर खड़े लोग भी पास आ गये और अपने-आपने हिस्से का मास्क और साबुन की मांग करने लगे। पूछने पर पता चला कि ये पड़ोसी गांव के समाजसेवी है और गरीबो को मुफ्त में मास्क बांटने आयें हैं। वहीं खड़ा उनका दूसरा साथी सोशल मीडिया पर लाइव शुरू कर चुका था। खैर…
देखते ही देखते लोगो की भीड़ जुट गई। मास्क कम पड़ने लगा। अब लोग गुथ्थम-गुथ्था पर उतारू होने लगे थे। सोशल डिस्टेंसिंग और लॉकडाउन की किसी को परवाह नहीं था। सभी को मुफ्त का मास्क और साबुन चाहिए ही चाहिए। भीड़ बढ़ता ही जा रहा है। समाज सेवियों को अब यहां से निकलने की कोई जुगत, दिखाई नहीं पड़ रहा था। ऐसे में सोशल डिस्टेंसिंग याद आई और लोगो को दूर-दूर खड़ा रहने को कहा जाने लगा। पर, कोई सुनने को तैयार नहीं है। भीड़ बढ़ता ही जा रहा है। लोग एक दूसरे को रगड़ कर अपना हिस्सा लेने पर अमादा हो चुकें हैं। अब इसे आप क्या कहेंगे? समाज की सेवा या संक्रमण फैलाने का एक मौका?
बिहार के गांवो में इस तरह का नजारा गाहे-बेगाहे देखने को मिल जाता है। ऐसे लोगो को कोरोना वायरस के संक्रमण फैलने की कोई परवाह नहीं है और नाही लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंस के टूटने की परवाह है। इनको सिर्फ अपना चेहरा चमकाना है। मदद की आर में खुद का ब्रेंडिंग करना है। अखबार में फोटो छपबाना है। संक्रमण फैलता है, तो फैले… इन्हें तो सिर्फ अपनी बाहबाही चाहिए। इन्हें तो यह भी नही पता है कि ये अनजाने में खुद के लिए और खुद के परिवार के लिए भी संक्रमण का खतरा मोल रहें है।
दरअसल, इस वर्ष के आखरी तिमाही में बिहार विधानसभा का चुनाव होना है और इसके कुछ ही महीने बाद वर्ष 2021 के अप्रैल में पंचायत के चुनाव होने है। बेचैनी की असली वजह, यही है। खतरा संक्रमण का नही है। बल्कि, असली खतरा तो चुनाव हारने का है। सरकार चिंता में है। विपक्ष चिंता में है। कोराना काल के इस लॉकडाउन को भूनाने की कोशिशे शुरू हो चुकीं है। बिहार के प्रवासी मजदूर को साधने की कोशिश पहले से चल रही थी। अब बिहार से बाहर पढ़ने गये छात्र भी मुद्दा बनने लगा है। आने वाले दिनो में बेरोजगारी और भूख बड़ा मुद्दा बन जाये तो किसी को आश्चर्य नहीं होगा।
दरअसल, चिंता इस बात की नहीं है कि संक्रमण को फैलने से कैसे रोका जाये? बल्कि, चिंता इस बात की है कि अपने समर्थको की संख्या को कैसे बढ़ाया जाये? कोविड-19 से मर रहे लोगो की चिंता नहीं है। बल्कि, मरने वाले परिवार को साधने की चिंता है। लब्बोलुआब ये है कि जब जिन्दगी मौत के साये में हो… तब भी हमारे सियासतदान, नफा- नुकसान की राजनीति से इतर हटने को तैयार कयों नहीं होते है?
This post was published on अप्रैल 20, 2020 14:59
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