भारत ने अपनी वायु रक्षा प्रणाली को और अधिक मजबूत करने की दिशा में बड़ा कदम उठाया है। रूस से प्राप्त अत्याधुनिक इग्ला-एस (Igla-S) मिसाइल सिस्टम अब भारतीय सेना की अग्रिम चौकियों पर तैनात किया जा रहा है। यह प्रणाली विशेष रूप से कम ऊँचाई पर उड़ने वाले विमानों, ड्रोन और हेलीकॉप्टरों को निशाना बनाने में सक्षम है।
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रूस द्वारा निर्मित यह पोर्टेबल एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम अब भारत की सीमाओं की सुरक्षा के लिए तैनात किया जा रहा है, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहाँ दुश्मन के ड्रोन और हवाई गतिविधियों की आशंका अधिक है।
इग्ला-एस मिसाइल क्या है?
इग्ला-एस, जिसे SA-24 ‘Grinch’ के नाम से भी जाना जाता है, एक कंधे पर रखकर चलाने वाली सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली (MANPADS) है। इसे एक सैनिक द्वारा आसानी से संचालित किया जा सकता है।
मुख्य विशेषताएं:
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मारक क्षमता: 6 किलोमीटर तक
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उड़ान ऊँचाई: 3.5 किलोमीटर तक
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मार्गदर्शन प्रणाली: इन्फ्रारेड होमिंग
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प्रतिक्रिया समय: बहुत तेज और तत्काल उपयोग के लिए तैयार
यह प्रणाली खासकर उन क्षेत्रों में उपयोगी है जहाँ दुश्मन की हवाई घुसपैठ की संभावना अधिक होती है, जैसे लद्दाख, जम्मू-कश्मीर, और राजस्थान के सीमावर्ती क्षेत्र।
सेना की अग्रिम चौकियों पर तैनाती: रणनीतिक निर्णय
भारतीय सेना ने इग्ला-एस सिस्टम को सीमा पर अग्रिम चौकियों पर तैनात करना शुरू कर दिया है। इस तैनाती का उद्देश्य है दुश्मन के ड्रोन, हेलीकॉप्टर और कम ऊँचाई पर उड़ने वाले विमानों से रक्षा करना।
इस तैनाती के लाभ:
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दुश्मन की हवाई गतिविधियों पर त्वरित जवाब
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रणनीतिक स्थानों की सुरक्षा
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सीमावर्ती सैनिकों को आत्मनिर्भर और शक्तिशाली बनाना
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भारत की मल्टी-लेयर वायु रक्षा प्रणाली को मजबूत करना
क्यों चुना गया इग्ला-एस?
भारतीय सेना ने इग्ला-एस को बहुप्रतीक्षित VSHORAD (Very Short Range Air Defence) प्रोग्राम के अंतर्गत चुना है। इसमें फ्रांस और स्वीडन जैसी कंपनियों की पेशकशें भी थीं, लेकिन इग्ला-एस ने प्रदर्शन, कीमत और तेजी से उपलब्धता के कारण बाज़ी मारी।
भारत-रूस के बीच रक्षा सहयोग ऐतिहासिक रूप से मजबूत रहा है, और इस प्रणाली को चुनना उसी का हिस्सा है।
ड्रोन युद्ध में इग्ला-एस की भूमिका
ड्रोन अब आधुनिक युद्ध का एक अहम हिस्सा बन गए हैं। सीमावर्ती क्षेत्रों में ड्रोन का उपयोग हथियार गिराने, जासूसी और बमबारी के लिए किया जा रहा है। ऐसे में इग्ला-एस एक अहम हथियार बनकर उभरा है।
इग्ला-एस की मदद से:
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दुश्मन के ड्रोन को हवा में ही गिराया जा सकता है
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सैन्य ठिकानों और सीमा चौकियों की रक्षा संभव
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मोबाइल और तेज़ प्रतिकृति प्रणाली से जवाब देने की क्षमता
‘मेक इन इंडिया’ के तहत भविष्य की योजना
हालांकि अभी जो इग्ला-एस मिसाइलें सेना को मिली हैं, वे रूस से आयातित हैं, लेकिन भविष्य में इसे भारत में ही बनाने की योजना है। यह निर्माण अडानी डिफेंस और रूसी कंपनी रोसोबोरोनएक्सपोर्ट के साझेदारी में किया जाएगा।
इससे लाभ होगा:
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भारत में रोज़गार और तकनीकी कौशल में वृद्धि
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रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता
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जल्दी आपूर्ति और मरम्मत की सुविधा
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‘मेक इन इंडिया’ पहल को बल
भारत-रूस रक्षा संबंध: एक मजबूत साझेदारी
इग्ला-एस मिसाइल सौदा भारत-रूस के मजबूत रक्षा रिश्तों का एक और प्रमाण है। भारत की लगभग 60% रक्षा प्रणाली रूस आधारित है। इसके अलावा दोनों देशों के बीच अन्य प्रमुख परियोजनाएं भी चल रही हैं, जैसे:
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S-400 मिसाइल प्रणाली
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ब्राह्मोस मिसाइल निर्माण
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T-90 टैंक अपग्रेड
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INS विक्रमादित्य एयरक्राफ्ट कैरियर
भारत की नीति रणनीतिक स्वतंत्रता की है, जिसमें वह रूस के साथ साथ अमेरिका, फ्रांस और इज़राइल जैसे देशों के साथ भी रक्षा संबंध बनाए रखता है।
भारतीय सेना को इग्ला-एस मिसाइलों की आपूर्ति देश की वायु सुरक्षा प्रणाली में एक निर्णायक मोड़ है। यह न केवल सीमाओं की सुरक्षा को सशक्त करेगा, बल्कि सेना को तेज और प्रभावी हवाई प्रतिक्रिया की क्षमता भी प्रदान करेगा।
ड्रोन और कम ऊंचाई वाले हवाई हमलों के बढ़ते खतरों के बीच, इग्ला-एस जैसी प्रणालियों की तैनाती अब महज विकल्प नहीं बल्कि जरूरत बन चुकी है।
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