Vice Presidential Election 2025 ने एक बार फिर देश की राजनीति को चर्चा में ला दिया है। भारतीय जनता पार्टी (BJP) की अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) ने महाराष्ट्र के राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किया है। यदि वे जीतते हैं तो जगदीप धनखड़ की जगह लेंगे, जिन्होंने पिछले महीने संसद के मॉनसून सत्र शुरू होने से पहले अचानक इस्तीफा दे दिया था।
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सीपी राधाकृष्णन का नाम सामने लाकर भाजपा ने अपने रुख में 180 डिग्री का बदलाव किया है। धनखड़ की राजनीतिक पृष्ठभूमि समाजवादी और कांग्रेस से जुड़ी रही थी, जबकि राधाकृष्णन सीधे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और जनसंघ से निकलकर भाजपा में उभरे नेता हैं।
जगदीप धनखड़ की पृष्ठभूमि
जगदीप धनखड़ को 2022 में NDA की ओर से उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया गया था। उस समय भाजपा की रणनीति उत्तर भारत के जाट समुदाय को साधने की थी। किसान आंदोलन की पृष्ठभूमि में उनका नाम उम्मीदवार के रूप में घोषित करना एक बड़ा राजनीतिक संदेश माना गया।
धनखड़ की छवि एक आक्रामक वकील और मुखर नेता की रही है। पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रहते हुए उनका लगातार ममता बनर्जी सरकार से टकराव सुर्खियों में रहा। जब वे Rajya Sabha Chairman बने तो उनकी तीखी टिप्पणियाँ और आक्रामक रुख विपक्ष के निशाने पर रहे। विपक्ष ने उन्हें अक्सर पक्षपाती कहा और उनकी भूमिका को लेकर सवाल उठाए।
भाजपा का 180 डिग्री बदलाव
तीन साल पहले जाट राजनीति साधने के लिए धनखड़ को चुना गया था, लेकिन अब भाजपा ने अपना फोकस बदल लिया है। इस बार पार्टी ने तमिलनाडु से आने वाले सीपी राधाकृष्णन को आगे किया है।
राधाकृष्णन ओबीसी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं और उन्हें “तमिलनाडु का मोदी” भी कहा जाता है। यह चयन भाजपा की OBC Social Engineering और दक्षिण भारत में पार्टी के विस्तार की रणनीति को साफ दर्शाता है। कर्नाटक के अलावा भाजपा अभी तक तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों में मजबूत पकड़ नहीं बना पाई है। ऐसे में यह कदम राजनीतिक रूप से अहम माना जा रहा है।
सीपी राधाकृष्णन: भाजपा का नया दांव
सीपी राधाकृष्णन 68 वर्ष के हैं और उनका सफर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से शुरू हुआ था। 17 साल की उम्र से ही वह संघ और जनसंघ से जुड़े रहे। लंबे समय तक संगठन में काम करते हुए उन्होंने एक संतुलित और सौम्य नेता की छवि बनाई।
महाराष्ट्र के गवर्नर के तौर पर उन्होंने अपनी कार्यशैली से सभी को प्रभावित किया। उनके शांत और संतुलित स्वभाव को उपराष्ट्रपति पद के लिए उपयुक्त माना जा रहा है। पार्टी का मानना है कि Rajya Sabha में अध्यक्ष की भूमिका निभाने के लिए ऐसा ही संतुलित नेता चाहिए।
धनखड़ बनाम राधाकृष्णन: शैली और दृष्टिकोण
जगदीप धनखड़ और सीपी राधाकृष्णन के बीच स्पष्ट अंतर देखा जा सकता है।
धनखड़ आक्रामक और टकराव वाली राजनीति के लिए जाने जाते रहे हैं।
राधाकृष्णन सौम्य और समावेशी शैली के लिए पहचाने जाते हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि Rajya Sabha को आक्रामकता नहीं बल्कि संतुलन की आवश्यकता है। इसी कारण राधाकृष्णन को धनखड़ की तुलना में अधिक उपयुक्त माना जा रहा है।
विचारधारा और पृष्ठभूमि का फर्क
धनखड़ की सियासी पृष्ठभूमि समाजवादी और कांग्रेसी रही, जबकि उनका आरएसएस से कोई पुराना नाता नहीं था। भाजपा में उनका आना राजनीतिक रणनीति का हिस्सा माना गया।
इसके उलट राधाकृष्णन पूरी तरह RSS Ideology से उपजे नेता हैं। उनकी पहचान पार्टी के वैचारिक ढांचे से लंबे समय तक जुड़ी रही है। यही कारण है कि उन्हें भाजपा का नैसर्गिक चेहरा माना जाता है।
भाजपा का संदेश
सीपी राधाकृष्णन को उम्मीदवार बनाकर भाजपा ने एक साथ कई संदेश देने की कोशिश की है।
दक्षिण भारत में अपनी पकड़ मजबूत करने की मंशा।
ओबीसी समुदाय को साधने की रणनीति।
Rajya Sabha Chairman की भूमिका में संतुलन और निष्पक्षता लाने का प्रयास।
पार्टी की वैचारिक जड़ों के प्रति प्रतिबद्धता का प्रदर्शन।
विपक्ष की रणनीति और असर
विपक्ष राधाकृष्णन की उम्मीदवारी को ध्यान से देख रहा है। उनका सौम्य और सरल स्वभाव विपक्ष के लिए आक्रामक हमले करना कठिन बना सकता है।
जगदीप धनखड़ की तरह राधाकृष्णन विवादों में नहीं रहते। ऐसे में उनके खिलाफ मोर्चा खोलना विपक्ष के लिए आसान नहीं होगा। संभावना यह भी जताई जा रही है कि भाजपा consensus candidate की रणनीति अपनाकर विपक्ष को निर्विरोध चुनाव के लिए मजबूर कर सकती है।
Vice Presidential Election 2025 भाजपा की बदलती प्राथमिकताओं को स्पष्ट करता है। 2022 में जाट राजनीति को साधने के लिए जगदीप धनखड़ चुने गए थे, जबकि 2025 में पार्टी ने दक्षिण और ओबीसी को साधने के लिए सीपी राधाकृष्णन को मैदान में उतारा है।
धनखड़ की राजनीति टकराव और आक्रामकता पर आधारित रही, जबकि राधाकृष्णन की पहचान समावेशिता और संतुलन की है। यही कारण है कि भाजपा को लगता है कि Rajya Sabha में सभापति की भूमिका निभाने के लिए राधाकृष्णन अधिक उपयुक्त साबित होंगे।
यह चुनाव केवल उपराष्ट्रपति चुनने का मामला नहीं है, बल्कि भाजपा की आने वाले समय की राजनीतिक रणनीति और वैचारिक संदेश को भी सामने लाता है।
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