बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र की स्मृतिशेष

साम्प्रदायिक सौहार्द के मिशाल

KKN लाइव न्यूज ब्यूरो। बिहार की राजनीति में साम्प्रदायिक सौहार्द के पुरोधा रहें डॉ. जगन्नाथ मिश्र का सोमवार को निधन हो गया। डा. मिश्र ने करीब 82 वर्ष की अवस्था में दिल्ली स्थित आवास पर अपनी अंतिम सांस ली। वे पिछले काफी समय से बीमार चल रहे थे और इलाज कराने के सिलसिले में इन दिनों दिल्ली में थे। डा. मिश्र अपने पीछे तीन पुत्र और तीन पुत्रियों समेत भरापूरा परिवार छोड़ गये हैं। उनका जन्म आजादी से पहले 24 जून, 1937 को सुपौल जिले के बलुआ बाजार गांव में हुआ था।

श्रद्धांजलि सभा

मंगलवार को डा. मिश्र का पार्थिव शरीर दोपहर 12.30 बजे पटना लाया गया। बिहार विधानमंडल में श्रद्धांजलि के बाद पार्थिव शरीर आम लोगों के दर्शनार्थ उनके शास्त्रीनगर आवास पर रखा जाएगा। बुधवार को उनका अंतिम संस्कार बलुआ बाजार स्थित पैतृक गांव या सिमरिया घाट पर किया जाएगा, हालांकि इसका फैसला सभी परिजनों के जुटने के बाद होगा।

उर्दू के विकास के लिए जाने जायेंगे

बिहार के मुख्यमंत्री रहतें हुए डा. मिश्र ने कई ऐसे नीतिगत फैसले लिए जिससे उनकी लोकप्रियता का अंदाजा लगाया जा सकता है। उन्होंने उर्दू भाषा को बिहार में राजभाषा का दर्जा दिया। मदरसों के विकास के लिए उन्होंने कई महती कार्य किये। मदरसा शिक्षा बोर्ड का भी उन्होंने ने ही गठन किया था। सभी सरकारी विद्दालयों में उर्दू शिक्षक का पद सृजित किया और उर्दू अनुबादको की बहाली करवाई। मुसलमान समाज में उनकी लोकप्रियता का अंदाज इसी लगाया जा सकता है कि उन्हें ‘मौलाना’ जगन्नाथ कहा जाने लगा। डॉ. जगन्नाथ मिश्र ने बिहार के चौकीदार और दफादारो की सेवा को नियमित किया था। उन्होंने सूबे में परिवहन के विकास के लिए परिवहन निगम की स्थापना की। डॉ. मिश्र ने बिहार में पहली बार पुल निगम बनायी। किसान और अंतिम पादान पर खड़े लोगो के लिए कई योजनाएं बनाई।

अर्थशास्त्र के थे बड़े जानकार

डा. जगन्नाथ मिश्र ने अपने करियर की शुरुआत बतौर लेक्चरर की। इसके बाद वह बिहार विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र विषय के प्रोफेसर नियुक्त हुये। शिक्षण तथा पठन-पाठन एवं लेखन में उनकी रुचि जीवन के अंतिम दिनों में भी बरकरार रही। उन्होंने करीब 40 शोध-पत्र लिखे हैं और उनके मार्गदर्शन में 20 लोगों ने अर्थशास्त्र विषय में पीएचडी पूरी की है। इसके अलावा उन्होंने विभिन्न विषयों पर दो दर्जन से अधिक किताबें लिखीं और कई पुस्तकों का संपादन भी किया है।

राजनीतिक सफर

पूर्व रेल मंत्री स्वर्गीय ललित नारायण मिश्र के अनुज डा. जगन्नाथ मिश्र का बिहार की राजनीति में चार दशकों का एक पूरा युग रहा है। वर्ष 1968 में पहली बार मुजफ्फरपुर, चंपारण एवं सारण स्नातक निर्वाचन क्षेत्र से बिहार विधान परिषद के सदस्य चुने गये। वर्ष 1972, 1977, 1980, 1985 और 1990 में पांच बार लगातार मधुबनी जिले के झंझारपुर विधानसभा क्षेत्र से जीते। वर्ष 1997 में डा. मिश्र पहली बार स्व. केदारनाथ पांडेय की कांग्रेस सरकार में मंत्री बने। अब्दुल गफूर की सरकार में भी मंत्री बने। जगन्नाथ मिश्र दो बार वे राज्यसभा के भी सदस्य रहे। सन 1988 और सन् 1994 में डा. मिश्र राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुए। केन्द्र की पीवी नरसिम्हा राव मंत्रिमंडल में उन्हें पहले ग्रामीण विकास मंत्री और फिर केन्द्रीय कृषि मंत्री का जिम्मा दिया गया।

तीन बार रहे मुख्यमंत्री

वह 8 अप्रैल 1975 को पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने और पहले कार्यकाल में करीब 2 साल तक सीएम रहे। वहीं, 8 जून 1980 को दूसरी बार मुख्यमंत्री बने और 13 अगस्त 1983 तक इस पद रहे। तीसरी बार 6 दिसम्बर, 1989 को मुख्यमंत्री बने और 10 मार्च 1990 तक सीएम के रूप में राज्य की सेवा की। दो बार वे बिहार प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी बने। पहली बार मार्च 1989 में जबकि दूसरी बार अप्रैल 1992 में उन्हें पार्टी अध्यक्ष बनाया गया।

फिलहाल किसी दल से नहीं थे सम्बद्ध

डा. जगन्नाथ मिश्र फिलहाल किसी दल से सम्बद्ध नहीं थे। कांग्रेस पार्टी में करीब चार दशक बिताने के बाद एक समय उन्हें इस दल से मोहभंग हो गया। इसके बाद जन विकास मंच नाम से एक सामाजिक संगठन बनाया। फिर शरद पवार के नेतृत्व में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) में शामिल हो गये। बाद में इसे भी छोड़ दिया। फिर नीतीश कुमार के नेतृत्व में जदयू में शामिल हुए। वर्तमान में वे किसी दल से जुड़े नहीं थे। लेकिन बिहार की तरक्की और खुशहाली के लिए हमेशा चिंतित रहते थे। उनका आखिरी सामाजिक कार्यक्रम इसी साल 21 जनवरी को राजधानी के एक होटल में हुआ जिसमें उनकी किताब ‘बिहार बढ़कर रहेगा’ का लोकार्पण पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने किया था।

KKN लाइव WhatsApp पर भी उपलब्ध है, खबरों की खबर के लिए यहां क्लिक करके आप हमारे चैनल को सब्सक्राइब कर सकते हैं।

One thought on “बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र की स्मृतिशेष”

Leave a Reply