बात वर्ष 1947 की है। ब्रिटिश हुकूमत भारत को आजाद करने का मन बना लिया था। इधर, कई देशी राजे- रजवाड़े भारत में विलय को लेकर मुश्किलें खड़ी कर रहे थे। इधर, जवाहर लाल नेहरू आजाद भारत में राजशाही को खत्म करना चाहते थे। इससे चिढ़ कर कई देशी रजवाड़ा भारत में विलय से इनकार कर दिया और खुद को आजाद मुल्क होने का दंभ भरने लगा। इस बीच वायसराय का एक आदेश, आग में घी का काम कर गया। दरअसल हुआ ये कि वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने राजे रजवाड़ो को अपनी स्वेच्छा से भारत या पाकिस्तान में विलय करने की छूट दे दी। इतना ही नहीं, वायसराय ने रियासत को अपनी इच्छा से आजाद रहने का अधिकार भी दे दिया। यह एक ऐसा अधिकार था, जिससे आजाद भारत के सैकड़ो टूकड़ो में बंटने का रास्ता खुल गया। आजादी के अमृत महोत्सव के मौके पर आजादी की पृष्टभूमि को समझना आज के युवाओं के लिए जरुरी हो गया है।
KKN न्यूज ब्यूरो। वह 25 जुलाई 1947 का दिन था। वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने दिल्ली में राजे-रजवाड़ों की बैठक बुलाई। इसमें करीब 75 राजा और नवाबो ने हिस्सा लिया। इसके अतिरिक्त करीब 74 राजा ने बैठक में अपने प्रतिनिधि भेजे। हालांकि, बैठक में कोई ठोस निर्णय नहीं हुआ। उल्टे, बैठक से निकल कर भोपाल, हैदराबाद, जूनागढ़ और कश्मीर के राजा ने भारत में शामिल होने से साफ-साफ इनकार करते हुए खुद को आजाद मुल्क घोषित कर दिया। इससे आजाद भारत के स्वरुप को लेकर असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो गई। सवाल उठने लगा कि देशी रियासत का विलय नहीं हुआ तो अखंड भारत का क्या होगा? स्मरण रहें कि उनदिनो करीब 562 राजा और नवाबों की अपनी रियासत थीं। समस्या ये कि यदि ये सभी रियासतें आजद हो गई। तो देश खंड-खंड में बंट जायेगा।
इधर, सरदार वल्लभ भाई पटेल ने हिम्मत नहीं हारी और प्रयास शुरू कर दिया। उन्होंने 6 मई 1947 को वरिष्ठ नौकरशाह बी.के. मेनन को अपना मुख्य सचिव नियुक्त किया। इसके तुरंत बाद देशी रियासत के भारत में विलय का मुश्किल काम शुरू हो गया। सरदार पटेल ने विलय के बदले राजाओं के सामने प्रिवीपर्स के माध्यम से उन्हें आर्थिक मदद देने का प्रस्ताव रखा। इसका असर हुआ और आजादी के दिन यानी 15 अगस्त तक करीब 136 राजाओं ने अपनी रियासत को भारत में शामिल कर दिया। सहमती पत्र पर सबसे पहला हस्ताक्षर त्रिपुरा की महारानी कंचन प्रभा देवी ने किया। उन्होंने 13 और 14 अगस्त 1947 की दरम्यानी रात हस्ताक्षर कर दिया था। हालांकि संविधान सभा में शामिल होने वाला पहला राज्य बड़ौदा था। वह फरवरी 1947 में ही संविधान सभा का हिस्सा बन चुका था। आपको जान कर हैरानी होगी कि 15 अगस्त को मिली आजादी के बाद इंदौर स्टेट भी भारत का हिस्सा नहीं था। लेकिन, आजादी के कुछ घंटों बाद ही महाराजा होलकर का संदेशा आया और इंदोर का भारत में विलय हो गया।
भारत को गुलामी से मुक्त होने में अब सिर्फ एक रात का फासला शेष बचा था। इस बीच त्रावणकोर के महाराजा उथरादोम तिरुनल मार्तंड वर्मा ने भारत में विलय से इनकार करते हुए खुद को आजाद मुल्क घोषित कर दिया। आजाद भारत में उनको अपना बंदरगाह और यूरेनियम का भण्डार छिन जाने का डर था। उधर, त्रावणकोर के महराजा के इस घोषणा का मो. अली जिन्ना ने स्वागत किया और त्रावणकोर के राजा को पत्र भेजकर उनको पाकिस्तान से रिश्ते बनाने की पेशकश कर दी। इधर, केरल के प्रदर्शकारी ने त्रावणकोर के दीवान सर सी.पी. रामास्वामी अय्यर पर जानलेवा हमला कर दिया। माना जाता था कि अय्यर ही त्रावणकोर के असली शासक थे। वहां के महाराजा उनके हाथों की कठपुतली हुआ करते थे। इस घटना से महाराजा इतने डर गए कि उन्होंने 14 अगस्त को भारत में विलय पर हस्ताक्षर कर दिया।
हैदराबाद के निजाम विलय की राह में सबसे बड़ा अरचन खड़ा कर रहे थे। निजाम मीर उस्मान अली बहादुर ने 12 जून 1947 को हैदराबाद को आजाद देश घोषित कर दिया था। उन्होंने रजाकार के नाम से अपनी निजी सेना बना लिया और किसी भी सूरत पर भारत में विलय को तैयार नही थे। खबर आई कि निजाम ने हैदराबाद को पाकिस्तान में विलय करने की योजना बना ली है। इधर, सरदार पटेल ने 13 सितंबर 1948 को ‘ऑपरेशन पोलो’ लॉच कर दिया। तीन रोज तक चली मामुली लड़ाई के बाद निजाम ने अपने हथियार डाल दिए और हैदराबाद का भारत में विलय हो गया।
जूनागढ़ के नबाब ने जूनागढ़ को पाकिस्तान में विलय करने की तैयारी कर ली थी। इस बीच भारतीय सेना ने जूनागढ़ रियासत को चारो ओर से घेर लिया। घबरा कर नबाब पाकिस्तान भाग गए और जूनागढ़ को पाकिस्तान में विलय की घोषणा कर दी। इधर, पटेल ने जूनागढ़ की सीमाओं पर फौज की नाकेबंदी कर दिया। आखिरकार 7 नवंबर 1947 को जूनागढ़ का भारत में विलय हो गया।
भोपाल के नवाब हमीदुल्ला खान ने भारत सरकार के सामने शर्त रखी कि उन्हें या तो एक आजाद मुल्क बनने दिया जाए या सेक्रेटरी जनरल बनकर पाकिस्तान जाने दिया जाए। वह भोपाल की कमान अपनी बेटी को सौपना चाहते थे। हालांकि, उनकी बेटी ने इससे इनकार कर दिया। इसके बाद 1948 में नवाब ने भोपाल को आजाद मुल्क घोसित कर दी। विरोध में लोगो ने प्रदर्शन शुरू कर दिया। नबाब ने आंदोलनकारियो को कुचलने के लिए बल प्रयोग किया और गोली चलावा दी। इससे प्रदर्शनकारी और भड़क गये और आखरिकार 30 अप्रैल 1949 को नवाब ने हार मान ली। इसके बाद 1 जून को भोपाल का भारत में विलय हो गया।
इधर, कश्मीर को लेकर अभी भी असमंजश बनी हुई थी। महाराजा हरि सिंह कश्मीर को आजाद रखना चाहते थे। उधर, पाकिस्ता की नजर कश्मीर पर थी। इस बीच 24 अक्टूबर 1947 की तड़के पाकिस्तान की सह पर कबायली पठानों ने कश्मीर पर हमला कर दिया। कबायली जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर की ओर तेजी से बढ़ने लगा। महाराजा हरि सिंह की फौज में बगावत हो गयी। अधिकांश मुस्लिम सिपाही कबायली के साथ हो गए। संकट बढ़ता देख महराजा हरि सिंह ने भारत से मदद मांगी और 26 अक्टूबर 1947 को हरि सिंह ने जम्मू कश्मीर का भारत में विलय कर दिया। इसके बाद भारत सरकार ने जम्मू कश्मीर में फौज उतार दी। बाजी पलटने लगा। इस बीच जम्मू कश्मीर का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में चला गया। आज भी उस हिस्से पर पाकिस्तान का अवैध कब्जा है। यह भारत और पाकिस्तान के बीच आज भी विवाद का विषय बना हुआ है।
ऐसा नहीं था कि विलय की समस्या सिर्फ भारत को परेसान कर रहा था। उधर, पाकिस्तान के हुक्मरान भी इस बाबत खासे परेसान थे। पाकिस्तान के हिस्से में कुल नौ प्रिंसली स्टेट गया था। बहावलपुर स्टेट के नवाब मो. सादिक ने ठीक 15 अगस्त 1947 को खुद को स्वतंत्र देश घोषित कर दिया। इस घोषणा के बाद मो. अली जिन्ना सकते में आ गए थे। हालांकि, उनदिनो उनकी दिलचस्पी भारत के रियासत पर अधिक हुआ करता था। वो पाकिस्तान के रियासत को तबज्जो नहीं दे रहे थे। भारत के मोर्चे पर मुहंकी खाने के बाद पाकिस्तान को अपनी रियासत की समस्या सुलझाने में काफी वक्त लग गया। वर्ष 1955 तक इसके लिए पाकिस्तान को मशक्कत करना पड़ा था।
This post was published on फ़रवरी 28, 2022 18:49
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