गर्भावस्था में सोयाबीन खाने के फायदे

गर्भावस्था में दाल, अंडॉ, दूध, दही, पनीर, हरी सब्जियां आदि फायदेमंद होता ही हैं। किंतु, सोयाबिन से गर्भवतियों को विशेष लाभ होता है। सोयाबिन में अधिक प्रोटीन होता है, जो बच्चों के विकास में कारगर माना जाता है। इतना ही नहीं सोयाबिन गर्भवती को हाई ब्लडप्रेशर में जाने और एक्लेप्सिया को नियंत्रित करने में भी कारगर माना गया है। स्त्री रोग विशेषज्ञों विशेषज्ञो की राय में एक गर्भवती को प्रतिदिन औसतन 50 ग्राम तक सोयाबिन खाना चाहिए।
गर्भावस्था में पौष्टिक आहार की भूमिका अहम होती है। जिन महिलाओं को मधुमेह है या गर्भावस्था के दौरान यह बीमारी हो गई उन्हें भी पौष्टिक आहार लेनी चाहिए लेकिन डॉक्टर की सलाह पर। गर्भधारण के 22 सप्ताह से प्रसव तक का रक्तश्राव होने की स्थिति में डॉक्टर को क्या करना चाहिए। इस विषय पर आयोजित राउंड डेबल डिस्कशन का संचालन किया। स्त्री रोग विशेषज्ञों विशेषज्ञो के मुताबिक सेप्सिस यानि प्रसव के समय संक्रमण से 15 प्रतिशत महिलाओं की मौत हो जाती है। यह संक्रमण पानी का थैला फूटने, पित की थैली में पथरी या अपेंडिक्स होने, प्रसव के बाद लगने वाले टांका से घाव होने, पहले से निमोनिया या इकोलाई से पीड़ित मरीजों में संक्रमण होने का खतरा रहता है।

इसके अलावा 15 से 20 प्रतिशत ऐसी महिलाएं होती हैं जिन्हें स्वत: गर्भपात हो जाता है। ऐसी महिलाओं में क्रोमोजोम या बच्चेदानी में गड़बड़ी होती है। गर्भवती के पेट में चोट लग जाए या उबड़ खाबड़ रास्ते में वाहन से सफर कर ले। थायरायड से पीड़ित महिलाओं का भी गर्भपात हो जाता है। कुछ ऐसी परिस्थितियां हो जाती हैं जब बच्चेदानी निकालनी पड़ती है। मसलन महिलाओं को अधिक रक्तश्राव होने, बच्चेदानी सिकुड़ने, सीजेरियन के बाद प्लेसेंटा चिपकने व बच्चेदानी के फटने जैसी स्थिति में उसे निकालना पड़ता है। ऐसी महिलाओं को समय से पहले मेनोपॉज आ जाता है। शरीर में कैल्शियम का लेवल तेजी से घटने लगता है। हड्डी की बीमारियां होने लगती हैं। इन तमाम हालातो से बचने के लिए गर्भ के दौरान पोष्टिक आहार लेना कारगर माना गया है।

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