KKN गुरुग्राम डेस्क | 2021 में आई फिल्म छोरी ने नारी भ्रूण हत्या जैसे गंभीर सामाजिक विषय को हॉरर के जरिए पेश कर दर्शकों से सराहना बटोरी थी। लेकिन इस फिल्म की अगली कड़ी छोरी 2, जो 11 अप्रैल को अमेज़न प्राइम वीडियो पर रिलीज हुई, दर्शकों को वह रोमांच और डर नहीं दे पाई जिसकी उम्मीद थी।
Article Contents
फिल्म का मुख्य उद्देश्य समाज में फैले कुप्रथाओं को उजागर करना था, जैसे कि बाल विवाह, अंधविश्वास और पुरुष प्रधान मानसिकता। लेकिन इन सब विषयों को समेटते हुए फिल्म खुद उलझ जाती है और न तो डर पैदा कर पाती है, न ही मनोरंजन।
कहानी: सामाजिक संदेश के बीच डर खो गया
इस बार भी नुसरत भरुचा ‘साक्षी’ की भूमिका में नजर आती हैं। वह न केवल अंधविश्वास और पितृसत्ता के खिलाफ लड़ती हैं, बल्कि बाल विवाह जैसी कुप्रथा के खिलाफ भी खड़ी होती हैं। गांव के लोग ‘आदि मानव’ की पूजा करते हैं, जो युवतियों की ‘सेवा’ और ‘समर्पण’ चाहता है। इस भूमिका में सोहा अली खान ‘दासी’ बनी हैं, जो आदि मानव की सेवा करती है।
फिल्म का सेटअप – गन्ने के खेतों में बने अंधेरे गुफा जैसे स्थान – काफी प्रभावशाली हो सकता था, लेकिन निर्देशक इसका पूरा उपयोग नहीं कर पाए। दर्शक सिर्फ एक-दो दृश्यों में ही डर का आभास महसूस करते हैं। अधिकांश समय फिल्म सामाजिक मुद्दों में उलझी नजर आती है और हॉरर का मूल उद्देश्य कहीं खो जाता है।
कमजोर हॉरर और पूर्वानुमानित पटकथा
जहां एक तरफ ‘स्त्री’ जैसी फिल्में दर्शकों को सीट से चिपकाए रखने में सफल रही हैं, वहीं छोरी 2 में वह तीव्रता नहीं है। फिल्म में न तो कोई असली डरावना पल आता है, न ही कोई जंप स्केयर। यहां तक कि जब सुपरनैचुरल एलिमेंट्स और आत्माएं भी आती हैं, तो वह मात्र औपचारिकता लगती हैं, न कि कहानी का महत्वपूर्ण हिस्सा।
पटकथा जैसे-जैसे आगे बढ़ती है, दर्शकों को आसानी से अंदाजा हो जाता है कि अब आगे क्या होगा। साक्षी अपनी बेटी को बचाने के लिए संघर्ष करती है और ‘दासी’ भी धीरे-धीरे बच्ची से जुड़ने लगती है। यह दोनों महिला पात्रों के बीच संबंध को दिखाने का अच्छा प्रयास है, लेकिन फिल्म की गति धीमी पड़ जाती है।
दिल को छू जाने वाला एक दृश्य
फिल्म में एक दृश्य ऐसा आता है जो वाकई दिल को झकझोर देता है। कुछ छोटे लड़के, जो शायद सात-आठ साल के हैं, एक कमरे में घुसते हैं जहां एक लड़की बैठी है। वे पहली बार किसी लड़की को देख रहे हैं और उसके बारे में बहुत ही आपत्तिजनक बातें करते हैं। वे एक ट्रांसजेंडर बच्चे को भी तंग करते हैं। यह दृश्य दर्शाता है कि कैसे बचपन से ही लड़कों को विषाक्त पौरुष (टॉक्सिक मस्क्युलिनिटी) सिखाई जाती है, जो भविष्य में अपराध की ओर ले जाती है।
अभिनय: नुसरत भरुचा का दमदार प्रदर्शन, सोहा अली खान को मिला अधूरा किरदार
नुसरत भरुचा ने एक बार फिर अपने अभिनय से प्रभावित किया है। एक साधारण स्कूल टीचर से मां के रूप में उनके चरित्र का ग्राफ प्रभावशाली है। वे उस दृढ़ता और जुनून को जीवंत करती हैं, जो एक मां अपने बच्चे को बचाने के लिए रखती है।
सोहा अली खान का किरदार काफी संभावनाओं से भरपूर था, लेकिन पटकथा ने उन्हें पूर्ण रूप से उभरने नहीं दिया। वह प्रतिभाशाली अभिनेत्री हैं और उन्हें और गहराई वाले किरदार दिए जाने चाहिए। मराठी और टीवी जगत के स्टार गश्मीर महाजनी हिंदी फिल्मों में छोरी 2 से डेब्यू करते हैं, लेकिन उन्हें ज्यादा करने का मौका नहीं दिया गया।
फिल्म की कमियां
-
कमजोर पटकथा और धीमी रफ्तार
-
डरावने दृश्य का अभाव
-
संपादन में कसावट की कमी
-
अधिक सामाजिक संदेशों के चलते कहानी का मूल स्वरुप भटक गया
क्या छोरी 2 देखनी चाहिए?
यदि आप नुसरत भरुचा के अभिनय या सामाजिक मुद्दों पर आधारित फिल्मों के शौकीन हैं, तो छोरी 2 एक बार देखने लायक है। हालांकि, यदि आप एक सस्पेंस और डर से भरपूर हॉरर फिल्म की उम्मीद कर रहे हैं, तो यह फिल्म आपको निराश कर सकती है।
छोरी 2 एक बेहतरीन सोच और मजबूत विषय के साथ आई थी, लेकिन उसे पर्दे पर उतारने में फिल्म असफल रही। फिल्म के लोकेशन, महिला सशक्तिकरण का संदेश और कलाकारों की कड़ी मेहनत तो दिखती है, लेकिन डर और रोमांच की अनुपस्थिति इसे अधूरा बना देती है। अगर फिल्म की एडिटिंग को कसाव मिलता, हॉरर एलिमेंट्स को बेहतर तरीके से प्रस्तुत किया जाता, तो यह एक बेहतरीन सीक्वल बन सकता था।



