बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है और राज्य की राजनीतिक परिस्थितियां तेजी से बदल रही हैं। NDA (नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस) ने अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है, जिसमें नीतीश कुमार को एक बार फिर मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में पेश किया गया है। वहीं, महागठबंधन के खेमे में स्थिति अभी पूरी तरह से साफ नहीं है। महागठबंधन में शामिल दलों के बीच सीएम चेहरे को लेकर असमंजस बना हुआ है। सवाल यह है कि विपक्ष का चेहरा कौन होगा? क्या यह तेजस्वी यादव होंगे, जिनकी RJD 2020 के चुनाव में मुख्य ताकत बनी थी? या फिर कांग्रेस राष्ट्रीय नेता राहुल गांधी को अपना चेहरा बनाने की कोशिश करेगी?
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तेजस्वी यादव: महागठबंधन का सबसे मजबूत उम्मीदवार
महागठबंधन में RJD (राष्ट्रीय जनता दल) पहले ही तेजस्वी यादव को अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित कर चुका है। तेजस्वी ने इस बारे में कोई संकोच नहीं किया है और अपनी सीएम बनने की इच्छा कई बार सार्वजनिक रूप से जाहिर की है। इस साल अप्रैल 2025 में पटना में आयोजित ‘मुसहर-भूमिहा महासम्मेलन’ में उन्होंने खुले तौर पर सीएम पद की दावेदारी पेश की।
2020 में तेजस्वी यादव महागठबंधन के चेहरें थे, जब RJD ने 75 सीटें जीतीं, जो किसी एक पार्टी की सबसे बड़ी जीत थी। उस समय तेजस्वी ने NDA को कड़ी टक्कर दी थी। इसके बाद से उनकी लोकप्रियता लगातार बढ़ी है, खासकर युवाओं में। उन्होंने नीतीश कुमार और मोदी सरकार को लगातार रोजगार और शिक्षा जैसे मुद्दों पर घेरा है, जो बिहार के वोटर्स के बीच काफी महत्वपूर्ण हैं। इसके अलावा, यादव-मुस्लिम वोट बैंक पर तेजस्वी की मजबूत पकड़ बिहार के राजनीतिक गणित में अहम भूमिका निभाती है।
हालांकि, बावजूद इसके महागठबंधन में सीएम चेहरे को लेकर असमंजस है, और यह स्थिति अब तक पूरी तरह से साफ नहीं हो पाई है।
कांग्रेस की ओर से राहुल गांधी का समर्थन
कांग्रेस का मानना है कि अगर NDA मोदी फैक्टर पर ज्यादा निर्भर हो, तो विपक्ष को भी एक मजबूत काउंटरवेट की जरूरत है। कांग्रेस के अनुसार, वह काउंटरवेट राहुल गांधी हो सकते हैं।
हाल के महीनों में राहुल गांधी की बिहार में सक्रियता बढ़ी है। उन्होंने कई रैलियों में हिस्सा लिया है और 9 जुलाई बिहार बंद में भी सक्रिय रूप से भाग लिया। इस दौरान राहुल गांधी ने तेजस्वी यादव के साथ मंच साझा किया, जो एक महत्वपूर्ण राजनीतिक घटना थी। कांग्रेस का यह मानना है कि राहुल गांधी का नेतृत्व विपक्ष को राष्ट्रीय चेहरा देगा और इससे महागठबंधन को एक सांप्रदायिक सद्भाव बनाने में मदद मिलेगी।
राहुल गांधी का नेतृत्व: एक रणनीतिक कदम
कांग्रेस पार्टी के सूत्रों का कहना है कि राहुल गांधी को सीएम चेहरा नहीं बनाया जाएगा, बल्कि उन्हें महागठबंधन के राहुल गांधी को राष्ट्रीय चेहरा के रूप में पेश करने की योजना है। उनका यह कदम महागठबंधन के लिए संगठित और सशक्त संदेश देने के लिए है। कांग्रेस का कहना है कि इससे विपक्ष की छवि एकजुट और सशक्त बनेगी, और इससे वोटों के विभाजन को भी रोका जा सकेगा।
सीट-शेयरिंग को लेकर बढ़ते तनाव
सीट-शेयरिंग को लेकर भी कांग्रेस और RJD के बीच खींचतान बढ़ रही है। कांग्रेस चाहती है कि उसे अधिक सीटें मिलें, खासकर लोकसभा चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर रहा था। वहीं तेजस्वी यादव, जो 2020 के चुनाव में अपनी सफलता से उत्साहित हैं, वह ज्यादा सीटें देने के लिए तैयार नहीं हैं।
कांग्रेस की स्थिति बिहार में कमजोर होने के बावजूद, वह नेतृत्व निर्णयों में ज्यादा हिस्सेदारी की मांग कर रही है। यह दबाव राजनीति का एक हिस्सा है, जिससे कांग्रेस अपनी बातों को मजबूती से रखने की कोशिश कर रही है।
कन्हैया कुमार और पप्पू यादव की भूमिका
महागठबंधन में कन्हैया कुमार और पप्पू यादव जैसे प्रभावशाली, लेकिन विवादास्पद नेता भी हैं। कन्हैया कुमार युवा वोटरों के बीच लोकप्रिय हैं, लेकिन उनकी राजनीति को लेकर कुछ विभाजनकारी नजरिया भी सामने आया है। दूसरी ओर पप्पू यादव, जिनकी बिहार में एक खास पहचान है, लेकिन उनकी स्थिति को लेकर भी कुछ विवाद हैं। दोनों नेताओं की उपस्थिति महागठबंधन के भीतर असहमति को जन्म देती है, और उनके चलते यह सवाल उठता है कि क्या महागठबंधन एकजुट रह पाएगा।
कांग्रेस और RJD के बीच असहमति
कांग्रेस बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लवारू ने जून में कहा था कि सीएम चेहरे का निर्णय सहमतिपूर्ण तरीके से किया जाएगा। इस बयान से यह साफ था कि तेजस्वी यादव के पक्ष में कोई भी पक्का फैसला नहीं लिया गया है। महागठबंधन के भीतर की यह असमंजस स्थिति और पार्टी के भीतर की गुटबाजी महागठबंधन के लिए चुनौती बन रही है।
महागठबंधन में नेतृत्व के लिए मतभेद, सीट बंटवारे और रणनीतिक असहमतियों के कारण एकजुटता की कमी हो सकती है, जिससे उन्हें आने वाले चुनावों में नुकसान हो सकता है। अगर महागठबंधन अब जल्दी अपने नेतृत्व का फैसला नहीं करता है, तो वह NDA से पिछड़ सकता है, जिसका नेतृत्व अब स्पष्ट है।
महागठबंधन का रास्ता
महागठबंधन को जल्द से जल्द सीट-शेयरिंग, नेतृत्व मुद्दे, और सांप्रदायिक समीकरणों को सुलझाना होगा। कांग्रेस और RJD के बीच के मतभेद अब चुनावी रणनीति में एक बड़ी बाधा बन गए हैं। महागठबंधन को यह समझना होगा कि अगर जल्दी से जल्दी निर्णय नहीं लिया गया, तो वह अपने हिस्से का वोट बैंक गंवा सकता है।
महागठबंधन को एक स्पष्ट और मजबूत चेहरा पेश करना होगा, ताकि वह NDA के सामने एक सशक्त विकल्प रख सके। अगर महागठबंधन अपनी नेतृत्व पर असमंजस को दूर नहीं करता, तो उसे NDA के मुकाबले चुनावी मैदान में कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 महागठबंधन और NDA दोनों के लिए महत्वपूर्ण होने वाला है। NDA पहले ही नीतीश कुमार को अपना सीएम उम्मीदवार घोषित कर चुका है, जबकि महागठबंधन अभी तक अपने नेतृत्व पर एक स्पष्ट फैसला नहीं ले सका है। कांग्रेस और RJD के भीतर नेतृत्व को लेकर असमंजस है। क्या तेजस्वी यादव महागठबंधन के सीएम चेहरा होंगे या कांग्रेस राहुल गांधी को राष्ट्रीय चेहरा बनाएगी, यह सवाल अभी तक अनुत्तरित है। महागठबंधन को जल्द से जल्द यह फैसला करना होगा, ताकि वह बिहार के चुनावी मैदान में मजबूत स्थिति में खड़ा हो सके।
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