बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारियां जोरों पर हैं। दोनों प्रमुख गठबंधन चुनावी रणनीति और सीट बंटवारे पर बातचीत कर रहे हैं, लेकिन इस दौरान एनडीए के अंदर दबाव की राजनीति भी सामने आने लगी है। इस समय एनडीए में ही चिराग पासवान और जीतनराम मांझी के बीच एक तकरार देखने को मिल रही है। दोनों ने गठबंधन धर्म को लेकर अलग-अलग बयान दिए हैं, जिससे राजनीतिक हलकों में चर्चाएं तेज हो गई हैं।
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चिराग पासवान का बयान: नीतीश कुमार पर हमला
चिराग पासवान, जो एलजेपी के नेता हैं, बिहार की वर्तमान सरकार पर लगातार हमलावर रहे हैं। उन्होंने नीतीश कुमार का नाम लिए बिना पुलिस और शासन व्यवस्था पर निशाना साधा है। चिराग ने कई बार 243 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात की है, जिससे उनके राजनीतिक महत्वाकांक्षा को साफ तौर पर देखा जा सकता है। साथ ही, चिराग ने यह भी कहा कि वह बिहार की राजनीति में और अधिक सक्रिय रूप से काम करने की इच्छा रखते हैं।
जीतनराम मांझी का बयान
इस बढ़ती राजनीतिक हलचल के बीच, जीतनराम मांझी, जो हम पार्टी के प्रमुख हैं, ने चिराग पासवान को गठबंधन धर्म निभाने की नसीहत दी है। मांझी का कहना है कि एनडीए में रहते हुए गठबंधन के भीतर किसी भी प्रकार का विघटन बिहार के हित में नहीं होगा। हालांकि, चिराग पासवान ने मांझी के इस बयान पर कोई खास प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन उनकी बहनोई, अरुण भारती, ने सोशल मीडिया पर इस पर अपनी प्रतिक्रिया दी है।
अरुण भारती का तंज
अरुण भारती, जो जमुई से सांसद हैं और चिराग के बहनोई भी हैं, ने मांझी पर एक ट्वीट किया, जिसमें उन्होंने कहा कि “एक चिंटू होता है जो चाय से ज्यादा केतली गर्म की कहावत को सच करता है।” इस ट्वीट में किसी का नाम नहीं लिया गया, लेकिन इसे मांझी के संदर्भ में ही देखा जा रहा है। अरुण भारती का यह तंज सीधे तौर पर मांझी की ओर था, और यह सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बन गया है।
एनडीए के भीतर बढ़ती समस्याएं
चिराग पासवान और जीतनराम मांझी के बीच यह तकरार एनडीए के भीतर के राजनीतिक संकट को उजागर करती है। हालाँकि, दोनों नेताओं ने यह स्पष्ट किया है कि वे एनडीए में रहते हुए चुनाव लड़ेंगे, लेकिन उनके बयानों और राजनीतिक स्वार्थों के कारण आंतरिक विवाद और बढ़ सकता है।
चिराग की ओर से कभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात करना और कभी नीतीश कुमार की आलोचना करना, एनडीए में उनकी वफादारी पर सवाल खड़ा करता है। हालांकि, जीतनराम मांझी और चिराग दोनों ही कह चुके हैं कि वे एक साथ चुनाव लड़ेंगे, लेकिन राजनीतिक बयानबाजी ने इसे चुनौतीपूर्ण बना दिया है।
राजनीतिक धारा में विरोधाभास
चिराग पासवान ने कभी एनडीए के भीतर की राजनीति पर अपने बयान दिए हैं, तो कभी अपने अलग चुनावी आस्थाओं की बात की है। इन विरोधाभासी बयानों ने उनके राजनीतिक रुख को स्पष्ट करने में मुश्किलें खड़ी की हैं। वहीं, जीतनराम मांझी का यह बयान कि वह गठबंधन धर्म निभाना चाहते हैं, एनडीए में एक सहज और मजबूत संबंध बनाए रखने का संदेश देता है।
चुनावी रणनीति और सीट बंटवारे की चुनौतियां
जैसे-जैसे बिहार विधानसभा चुनाव पास आ रहा है, एनडीए और अन्य गठबंधनों के बीच सीट बंटवारे को लेकर असहमति बढ़ रही है। पार्टी के छोटे सहयोगी, जैसे एलजेपी (आर) और हम, मुख्य दलों के साथ अपने हिस्से की सीटों को लेकर चर्चा कर रहे हैं। इससे पार्टी में वर्चस्व की लड़ाई और गहरी होती जा रही है।
चिराग का महत्वाकांक्षी रुख और जीतनराम मांझी की गठबंधन के प्रति वफादारी ने इस राजनीतिक संघर्ष को और जटिल बना दिया है। एनडीए के भीतर सीट बंटवारे को लेकर सभी पार्टी के नेताओं को अपने-अपने हिस्से की सीटों पर जोर देना पड़ रहा है, जिससे समन्वय की आवश्यकता और बढ़ गई है।
सामाजिक मीडिया पर प्रतिक्रिया
अरुण भारती का सोशल मीडिया पर किया गया ट्वीट चर्चा का विषय बन गया है। कई राजनीतिक विश्लेषक इसे जोड़ते हुए मांझी के राजनीतिक दृष्टिकोण पर विचार कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर आ रहे प्रतिक्रियाओं से यह साफ है कि राजनीतिक विरोधाभास और बयानबाजी ने एनडीए के अंदर तनाव बढ़ा दिया है।
बिहार में सियासी समीकरण
बिहार में एनडीए और महागठबंधन के बीच की सियासी जंग अब अपने चरम पर है। सीटों की बंटवारे को लेकर बढ़ते विवाद और नेताओं के बयानों ने 2025 चुनाव की दिशा को प्रभावित किया है। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि इन भीतर की लड़ाइयों का बिहार के वोटरों पर क्या असर पड़ेगा।
बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान एनडीए की विभिन्न पार्टियों के बीच तनाव और महागठबंधन के साथ उनकी सुरक्षात्मक राजनीति को देखते हुए इस चुनावी माहौल में विभिन्न सियासी हलचलें सामने आएंगी।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले एनडीए के अंदर यह तनावपूर्ण स्थिति किसी भी राजनीतिक गठबंधन के लिए एक चुनौतीपूर्ण समय है। चिराग पासवान और जीतनराम मांझी के बीच के तकरार ने यह साफ कर दिया है कि एनडीए को अपनी राजनीतिक रणनीतियों को लेकर गंभीरता से पुनः विचार करना होगा।
जहां चिराग पासवान ने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं स्पष्ट की हैं, वहीं जीतनराम मांझी के गठबंधन के प्रति विश्वास ने दिखाया है कि किसी भी गठबंधन को संगठित रखने के लिए सामूहिक हितों को प्राथमिकता देनी होगी।
आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि एनडीए कैसे इन आंतरिक संघर्षों को हल करता है और बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए अपनी सीट-बंटवारे की रणनीति को किस प्रकार प्रस्तुत करता है।
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