क्या आपने कभी किसी ऐसे इंसान को देखा है… जो हर दिन अपना रंग बदलता हो? जिसके पास सब कुछ हो, लेकिन फिर भी वह अंदर से टूटा और अकेला हो? आज की यह कहानी एक ऐसे ही व्यक्ति विष्णु सहाय की है, जिसने अपने शक, कटाक्ष और तुनकमिजाजी की वजह से अपने जीवन के सबसे खूबसूरत रिश्तों को खो दिया। एक बेटी, जो दरवाजे तक आई… लेकिन बाप उसे पहचान न सका। एक पत्नी, जो वर्षों बाद वृद्धाश्रम में मिली… लेकिन लौटकर नहीं आई। क्या विश्वास का टूटना ही हर दर्द की शुरुआत है? देखिए इस इमोशनल कहानी को अंत तक, और जानिए कि क्यों “रंग बदलना” कभी-कभी इंसान को सबसे ज्यादा अकेला कर देता है।
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