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पूर्वांचल के समीकरण में छिपा है यूपी के सिंहासन का रहस्य

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KKN न्यूज ब्यूरो। उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में पूर्वांचल का अपना महत्व है। महंगाई, बेरोजगारी, विकास और सुशासन के दावो से इतर, पूर्वांचल के मतदाताओं का अपना अंदाज है। पूर्वांचल का यह इलाका बिहार से सटा है। जाहिर है यहां जातीय क्षत्रपो का अपना मजबूत संसार है। बेशक, गुजिश्ता दशको में यहां की राजनीति ने करबट बदली है। बावजूद इसके क्षत्रपो की स्वीकारता में कोई कमी नहीं आई है। जानकार मानते है कि विकास की राह में पूर्वांचल के पिछड़ जाने का यह सबसे बड़ा कारण माना जाता है।

विकास की बाट जोह रहा है पूर्वांचल

आजादी के करीब सात दशक बाद, आज भी पूर्वांचल विकास की बाट जोह रहा है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि गुजिश्ता वर्षो में पूर्वांचल का तेजी से विकास हुआ है। पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे इसका बड़ा उदाहरण है। यह बात दीगर है कि इसके श्रेय को लेकर बीजेपी और सपा में तलवारे खींच गई है। इसके अतिरिक्त गंगा एक्सप्रेस-वे का काम भी शुरू हो चुका है। अय़ोध्या, काशी और प्रयागराज के पूर्णनिर्माण की दिशा में भी वेशक कई बड़े काम हुए है। स्वास्थ्य सेवा और विधि व्यवस्था को लेकर बीजेपी के रणनीतिकार चुनाव की वैतरणी को पार करना चाहतें है। वाराणसी को पूर्वांचल का गेटवे कहा जाता है। पीएम मोदी का संसदीय क्षेत्र होने का वाराणसी को भरपुर लाभ मिला है। दूसरी ओर सपा की गढ़ होने के बाद भी आजमगढ़ को इसका बहुत लाभ नहीं मिल सका है।

पूर्वांचल में अगड़ा पिछड़ा का असर

कहतें है कि पूर्वांचल की राजनीति अगड़ा और पिछड़ा में बंटा है। जातीय समीकरण को साधे बिना पूर्वाचल को पार पाना मुश्किल होगा। दरअसल, पूर्वांचल में करीब 25 जिला है और विधानसभा की यहां 142 से अधिक सीटें है। इस जोन की पॉलिटिक्स मुख्य रूप से अगड़ा-पिछड़ा… सर्वण और दलित की आइडोलॉजी पर टिका है। लिहाजा, इस इलाके में दशको से समीकरण का बोलबाला रहा है। यहां की राजनीति में एक ओर जहां विकास के छौक की खुशबू है। वहीं, दूसरी ओर जातीय छत्रपो का मजबूत किला भी है।
वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने पूर्वांचल की 115 सीटें जीत कर सभी को चौका दिया था। तब सपा को 17 और बसपा को केवल 14 सीटो पर जीत मिली थी। यहां आपको समझ लेना जरुरी है कि वर्ष 2017 में बीजेपी ने पूर्वांचल की कई छोटी-छोटी पार्टियों के साथ मिल कर चुनाव लड़ा और उसे कामयाबी मिली। गौर करने वाली बात ये है कि इस बार यहीं काम सपा कर रही है।

पूर्वांचल की कास्ट क्रॉनोलॉजी

अब पूर्वाचल की कास्ट क्रॉनोलॉजी को समझिए। पूर्वांचल की कई सीटों पर राजभर मतदाताओं की संख्या 12 से 22 फीसदी है। सपा ने ओम प्रकाश राजभर से हाथ मिला कर पूर्वाचंल में बीजेपी को चुनौती पेश कर दी है। पूर्वी यूपी के गाजीपुर, चंदौली, मऊ, बलिया, देवरिया, आजमगढ़, लालगंज, अंबेडकरनगर, जौनपुर, वाराणसी, मिर्जापुर और भदोही में राजभर मतदाताओं की अच्छी आबादी है। सपा को इन सीटो से बहुत उम्मीदें टीकी है। दूसरी ओर पूर्वांचल में यादव के बाद ओबीसी कोटे में कुर्मी मतदाताओ का दबदबा माना जाता है। यूपी में 6 फीसदी कुर्मी बोटर है। किंतु, पूर्वांचल के कई जिलो में कुर्मी और पटेल वोटर की संख्या 6 से 12 फीसदी है। जानकारी के मुताबिक मिर्जापुर, सोनभद्र, बरेली, उन्नाव, जालौन, फतेहपुर, प्रतापगढ़, कौशांबी, इलाहाबाद, सीतापुर, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, सिद्धार्थनगर और बस्ती के करीब चार दर्जन विधानसभा सीटों पर कुर्मी वोटर की बाहुलता है। बीजेपी ने वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में अनुप्रिया पटेल से समझौता करके इस वोट को साधने में कामयाब हुई थीं। अनुप्रिया पटेल इस बार भी एनडीए के साथ मिल कर चुनाव लड़ रही है। बीजेपी को बेशक इसका लाभ मिलेगा। किंतु, सपा ने यहां सेंधमारी की तैयारी कर ली है।

सेंधमारी की है तैयारी

सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने अनुप्रिया पटेल की मां कृष्णा पटेल से गठबंधन करके बीजेपी की मुश्किलें बढ़ा दी है। इसी तरह बीजेपी ने निषाद पार्टी के संजय निषाद से समझौत करके पूर्वांचल के समीकरण को साधने की कोशिश की है। दूसरी ओर वीआईपी के मुकेश सहनी यूपी में बीजेपी की मुश्किलें बढ़ा रहें हैं। मुकेश सहनी बिहार के एनडीए सरकार में मंत्री है। लिहाजा, इसका साइड इफेक्ट बिहार की राजनीति में दिखने लगा है।
पूर्वांचल की राजनीति में नोनिया बोटर का अपना दबदबा है। ये अति पिछड़ी जाति से ताल्लुक रखते है और अपना टाइटल चौहान रखते है। पूर्वांचल की दस से ज्यादा सीटों पर इनका मजबूत असर से इनकार नहीं किया जा सकता हैं। मऊ जिले में नोनिया समाज का करीब 50 हजार से अधिक वोटर हैं। इसी प्रकार गाजीपुर के जखनियां में करीब 70 हजार वोटर हैं। बलिया, देवरिया, कुशीनगर, आजमगढ़, महराजगंज, चंदौली व बहराइच में भी इनकी बड़ी संख्या है। यह कभी बसपा का वोट बैंक हुआ करता था। लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने फागू चौहान को साथ लेकर नोनिया समाज के 90 फीसदी वोट हासिल किए थे। किंतु, इस बार यह बोट सपा की ओर शिफ्ट करने लगा है। स्वामी प्रसाद मौर्य के साथ पूर्वांचल के कई छत्रपो के बीजपेी छोड़ कर सपा में शामिल होने के बाद समीकरण के लिहाजा से बीजेपी बैकफुट पर है।

पूर्वाचल के ब्राह्मणो पर टिकी है नजर

जाति की बिसात पर पूर्वांचल के ब्राह्मण भी इस बार सुर्खियों में है। पूर्वांचल में ब्राह्मण वोटर्स की संख्या करीब 16 फीसदी है। ऐसा कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से पूर्वांचल के ब्राह्मण नेताओं की नहीं पटती है। शिवप्रताप शुक्ला और हरिशंकर तिवारी के साथ टकराव की बात जग जाहिर है। बिकरू के खुशी दुबे की घटना के बाद योगी पर ब्राह्मण विरोधी मानसिकता के आरोप लगते रहें हैं। हालांकि, बीजेपी ने इस दूरी को पाटने के लिए ब्राह्मण नेता एके शर्मा, जतिन प्रसाद और श्रीकांश शर्मा को अपने साथ मिला लिया है। बहुजन समाज पार्टी के प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन का भी ब्राह्मण वोटर्स पर असर से इनकार नहीं किया जा सकता है।
दूसरी ओर सपा ने भगवान पश्रुराम की आर लेकर ब्राह्मणो को अपने पाले में लाने की कोशिश तेज कर दी है। संत कबीरनगर जिले में इसका असर दिखने लगा है। हरिशंकर तिवारी जैसे जनाधार वाले नेता सपा में शामिल हो गएं है। माता प्रसाद पांडेय पहले से सपा के साथ है। कहतें हैं कि पूर्वांचल में ब्राह्मण वोटर्स सपा के लिए बोनस साबित हो गया तो खेला हो जायेगा। यानी पूर्वांचल में बीजेपी को बड़ा झटका लग जाये तो आश्चर्य नहीं होगा। हालांकि, बीजेपी ने इस डैमेज को कंट्रौल करने के लिए मथुरा को चुनावी मुद्दा बना दिया है। बीजेपी के रणनीतिकार मानते है कि मथुरा के मुद्दे पर पूर्वांचल में यादव मतदाताओं का एक हिस्सा बीजेपी के साथ आ जाये तो डैमेज कंट्रौल हो सकता है। कुल मिला कर विकास की आंधी हो या सख्त विधि व्यवस्था। माफियाओं के बुलंद इमारत को ढ़ाहती बुलडोजर हो या एनकाउंटर में ढ़ेर होते अपराधी। समीकरण की नशा में मदहोश पूर्वांचल के मतदाताओं पर इसका कितना असर पड़ेगा? यह तो 10 मार्च को ही पता चलेगा।


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