अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीति इस बार उन्हीं पर भारी पड़ती दिख रही है। 2025 में लागू की गई आक्रामक टैरिफ पॉलिसी ने BRICS देशों — भारत, चीन, रूस, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका — को एकजुट कर दिया है। ये पांचों देश अब न सिर्फ अमेरिकी टैरिफ का मुकाबला करने की रणनीति बना रहे हैं, बल्कि डॉलर के वर्चस्व को भी चुनौती देने की दिशा में बढ़ रहे हैं।
टैरिफ वार का नया दौर
ट्रंप ने भारत और ब्राजील पर 50% टैरिफ लगाया है। चीन पर 30% का टैरिफ लागू किया गया, जबकि पहले इसे 245% तक बढ़ाने की धमकी दी गई थी। दक्षिण अफ्रीका को भी 30% टैरिफ झेलना पड़ रहा है, वहीं रूस पर पहले से ही 100% टैरिफ और कड़े प्रतिबंध लागू हैं। खासकर भारत को रूस से तेल आयात करने की वजह से 25% अतिरिक्त शुल्क देना पड़ रहा है, जिससे कुल टैरिफ 50% हो गया है।
ट्रंप का दावा है कि ये कदम अमेरिकी व्यापार घाटा घटाने और रूस से तेल खरीदने वाले देशों को सबक सिखाने के लिए उठाए गए हैं। लेकिन इसके असर ने BRICS देशों को मजबूती से एक मंच पर ला खड़ा किया है।
BRICS की आर्थिक ताकत
भारत, चीन, रूस, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका की संयुक्त जीडीपी 26.6 ट्रिलियन डॉलर है, जो अमेरिका की 27.36 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के लगभग बराबर है। वैश्विक जीडीपी में इन देशों का योगदान 35.6% है, जबकि ये दुनिया के कुल व्यापार का एक चौथाई हिस्सा नियंत्रित करते हैं। इस आर्थिक ताकत ने ट्रंप की नीतियों के खिलाफ इन देशों को और साहस दिया है।
ब्राजील का सख्त जवाब
ब्राजील के राष्ट्रपति लूला डी सिल्वा ने ट्रंप की धमकियों को सिरे से खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि वे ट्रंप से तभी बात करेंगे जब ट्रंप सम्मानजनक तरीके से बातचीत के लिए तैयार होंगे। लूला ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ सहयोग बढ़ाने पर जोर दिया। भारत और ब्राजील ने 2030 तक आपसी व्यापार को 20 अरब डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य रखा है, जो अमेरिकी नीतियों के खिलाफ एकजुटता का संकेत है।
भारत की कूटनीतिक चाल
ट्रंप के 50% टैरिफ का सबसे बड़ा असर भारत पर पड़ा है। भारत ने इसे अनुचित और अन्यायपूर्ण बताया है। विदेश मंत्रालय का कहना है कि रूस से तेल आयात देश की ऊर्जा सुरक्षा और 1.4 अरब की आबादी की जरूरत है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस महीने चीन में होने वाले शंघाई सहयोग संगठन (SCO) सम्मेलन में जिनपिंग से मुलाकात करेंगे, जहां अमेरिकी टैरिफ का तोड़ निकालने पर चर्चा होगी। साथ ही, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की हालिया मॉस्को यात्रा और पुतिन की प्रस्तावित भारत यात्रा ने दोनों देशों के रिश्ते और मजबूत किए हैं।
रूस की रणनीति
रूस, जो पहले से अमेरिकी प्रतिबंध झेल रहा है, BRICS को एकजुट करने में अहम भूमिका निभा रहा है। पुतिन ने 2022 में BRICS की साझा मुद्रा का विचार रखा था, जो अब गति पकड़ रहा है। रूस की ऊर्जा आपूर्ति BRICS देशों के लिए रीढ़ की हड्डी है और अमेरिकी टैरिफ भी इसे रोक नहीं पा रहे।
भारत-चीन की नजदीकी
चीन, जो पहले से ही ट्रंप के टैरिफ वार का शिकार रहा है, अब भारत के साथ खड़ा है। चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने ट्रंप के कदम को WTO नियमों का उल्लंघन बताया है। मोदी की आगामी चीन यात्रा BRICS की एकजुटता को और मजबूत कर सकती है।
दक्षिण अफ्रीका की नाराज़गी
दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा ने ट्रंप के आरोपों और 30% टैरिफ को कड़ी निंदा के साथ खारिज किया है। देश की रणनीतिक धातु निर्यात क्षमता BRICS को अमेरिकी प्रभाव से लड़ने में मदद देती है।
डॉलर को चुनौती
BRICS देशों का सबसे बड़ा हथियार है अपनी मुद्राओं में व्यापार करने की योजना। रुपये, युआन और रूबल में लेन-देन बढ़ाने से डॉलर की 80% हिस्सेदारी को सीधी चुनौती मिल सकती है। अगर यह योजना सफल होती है, तो वैश्विक आर्थिक परिदृश्य बदल सकता है।
ट्रंप की दादागीरी का अंत?
ट्रंप का टैरिफ वार अब उन्हीं पर उलटा पड़ने की आशंका है। BRICS की एकजुटता ने न सिर्फ अमेरिकी नीतियों को चुनौती दी है, बल्कि एक नई आर्थिक व्यवस्था की नींव रख दी है। अगर ये पांच देश अपनी रणनीति पर कायम रहे, तो अमेरिकी आर्थिक प्रभुत्व को बड़ा झटका लग सकता है।