पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली सरकार ने राज्य में मतदाता सूची तैयार करने की प्रक्रिया में शामिल दो अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की है। इन दोनों अधिकारियों को तुरंत उनकी Election Duty से हटा दिया गया है, लेकिन उन्हें निलंबित (Suspend) नहीं किया गया।
चुनाव आयोग (Election Commission of India) के निर्देश के बावजूद Suspension से इनकार करना राज्य सरकार और आयोग के बीच एक नए टकराव का कारण बन गया है।
राज्य के मुख्य सचिव मनोज पंत ने भारत निर्वाचन आयोग को भेजे गए पत्र में स्पष्ट किया कि जिन अधिकारियों ने लगातार ईमानदारी और क्षमता का प्रदर्शन किया है, उनके खिलाफ Suspension जैसी कड़ी कार्रवाई अनुचित होगी।
मुख्य सचिव ने बताया कि संबंधित अधिकारियों को केवल मतदाता सूची पुनरीक्षण और चुनाव से जुड़ी सभी जिम्मेदारियों से हटा दिया गया है। साथ ही, इस मामले की आंतरिक जांच भी शुरू कर दी गई है, जो पूरी प्रक्रिया और नियमों की गहन समीक्षा करेगी।
राज्य सरकार का कहना है कि इस समीक्षा का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि भविष्य में मतदाता सूची (Voter List) तैयार करने में किसी भी तरह की अनियमितता न हो।
चुनाव आयोग ने चार अधिकारियों को Suspend करने और उनके खिलाफ FIR दर्ज करने का आदेश दिया था। आयोग का आदेश 5 अगस्त को जारी हुआ था, जिसमें दो Electoral Registration Officer (ERO), दो Assistant Electoral Registration Officer (AERO) और एक अस्थायी डेटा एंट्री ऑपरेटर के नाम शामिल थे।
इन पर दक्षिण 24 परगना जिले के बरुईपुर पूर्व और पूर्व मेदिनीपुर जिले के मोयना विधानसभा क्षेत्रों में मतदाता सूची तैयार करते समय अनियमितताएं करने का आरोप है।
राज्य सरकार ने आयोग को 11 अगस्त दोपहर 3 बजे की डेडलाइन से दो घंटे पहले ही जवाब भेज दिया था।
आरोपियों में देबोत्तम दत्ता चौधरी और बिप्लब सरकार का नाम प्रमुख है, जो पश्चिम बंगाल लोक सेवा (कार्यकारी) रैंक के अधिकारी हैं और ERO के रूप में कार्यरत थे।
चुनाव आयोग ने 8 अगस्त को नया नोटिस जारी करते हुए राज्य को चार अधिकारियों के Suspension का आदेश लागू करने और अनुपालन रिपोर्ट जमा करने के लिए समय सीमा तय की थी।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र पर सवाल उठाते हुए कहा कि आयोग इस आदेश के माध्यम से राज्य सरकार के अधिकारियों को डराने की कोशिश कर रहा है।
उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (BJP) पर आरोप लगाया कि वह आयोग का इस्तेमाल राजनीतिक लाभ के लिए कर रही है। बनर्जी ने साफ कर दिया कि वह इन अधिकारियों को Suspend नहीं करेंगी।
चुनाव आयोग का मानना है कि मतदाता सूची तैयार करने में हुई अनियमितताओं की गंभीरता को देखते हुए संबंधित अधिकारियों का Suspension जरूरी है। आयोग ने यह भी कहा कि केवल Election Duty से हटाना पर्याप्त नहीं है, बल्कि FIR दर्ज कर कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए।
आयोग ने यह भी चेतावनी दी कि मतदाता सूची में गड़बड़ी चुनाव की निष्पक्षता को प्रभावित कर सकती है, जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए खतरनाक है।
राज्य सरकार की आंतरिक जांच टीम इस पूरे मामले की बारीकी से जांच कर रही है। इसमें मतदाता सूची सत्यापन प्रक्रिया, आपत्तियों और दावों का निपटारा, और डेटा एंट्री के नियमों की समीक्षा शामिल है।
मुख्य सचिव के अनुसार, इस जांच के बाद प्रक्रियाओं को और मजबूत करने के लिए सुझाव दिए जाएंगे। इसमें अफसरों को विशेष प्रशिक्षण देना, सख्त सत्यापन नियम लागू करना और Data Entry पर बेहतर निगरानी रखना शामिल हो सकता है।
इस मामले ने राज्य में राजनीतिक बहस को तेज कर दिया है। तृणमूल कांग्रेस नेताओं का कहना है कि आयोग का आदेश संघीय ढांचे (Federal Structure) के खिलाफ है। उनका आरोप है कि BJP सरकार आयोग के माध्यम से राज्य प्रशासन को कमजोर करना चाहती है।
वहीं, बीजेपी नेताओं ने सरकार पर आरोप लगाया कि वह चुनावी गड़बड़ी को गंभीरता से नहीं ले रही है। उनका कहना है कि सरकार को आयोग के आदेश का पालन करना चाहिए ताकि जनता का भरोसा चुनाव प्रक्रिया में बना रहे।
फिलहाल, दोनों अधिकारियों को Election Duty से हटा दिया गया है लेकिन वे अपनी नियमित प्रशासनिक जिम्मेदारियां निभा रहे हैं। आंतरिक जांच पूरी होने में कुछ सप्ताह लग सकते हैं, जिसके बाद आगे की कार्रवाई तय होगी।
चुनाव आयोग ने अभी तक यह स्पष्ट नहीं किया है कि अगर राज्य सरकार Suspension आदेश नहीं मानती तो वह अगला कदम क्या उठाएगा। हालांकि, आयोग ने संकेत दिए हैं कि वह इस मामले पर कड़ी निगरानी रखेगा।
इस विवाद का नतीजा न केवल संबंधित अधिकारियों के भविष्य पर असर डालेगा, बल्कि यह भी तय करेगा कि राज्य और आयोग के बीच प्रशासनिक अधिकारों का संतुलन कैसे बनेगा।
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