मैले वस्त्र और बेतरतीब बिखरे बाल। माथे पर गट्ठर और पीठ पर बैग लिए, नंगे पांव निकल पड़ा है, मिलो की सफर पर। कोई अपनी बूढ़ी मां को सहारा देने में लगा है तो किसी को अपने मासूम को धूप से बचाने की चिंता है। पांव में पड़े छाले हो या पेट में लगी भूख। हौसला ऐसा कि इन्हें रोक पाना मुश्किल है। यह नजारा है राष्ट्रीय राजमार्ग पर पैदल सफर करने वाले प्रवासी मजदूरो की। दरअसल, ये वहीं मजदूर है, जो इन दिनो अपने ही देश में प्रवासी होने का दंश झेल रहें है। यह कोरोना काल की सबसे बड़ी बिडम्बना है। देखिए, पूरी रिपोर्ट…
This post was published on मई 29, 2020 17:04
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