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केरल की बाढ़ से सबक लेंगे या इसे भूल कर बड़ी मुसीबत का इंतजार करेंगे?

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भारत के राज्य केरल में आई प्रलयंकरकारी बाढ़ में डूब कर अब तक करीब 400 लोगों की मौत हो चुकी है। करीब 10 लाख लोगों को बेघर होना पड़ा है और निजी व सरकारी संपत्तियों के नुकसान का आंकड़ा आना अभी बाकी है। किंतु, मोटे अनुमान के मुताबिक नुकसान हजारों करोड़ में पहुंचेगा। स्थति सामान्य होने के बाद राज्य की सरकार को अपनी अर्थव्यवस्था, आधारभूत संरचना और जन-स्वास्थ्य को फिर से पटरी पर लाने की जबरदस्त मशक्कत करनी पड़ेगी। कहा जा रहा है कि पिछले 100 वर्षों में ऐसी मूसलाधार बारिश नहीं हुई थी। नतीजा केरल के सभी बांध, जलाशय, झील और तालाब पानी से लबालब भर गए। हालात ऐसी बिगड़ी कि करीब 80 बांधों के गेट खोलने पड़े, जिसके कारण निचले इलाकों में सैलाब उमड़ आया। पानी के तेज बहाव ने अपने साथ मिट्टी बहा ले गई। इसने भू-स्खलन हुआ और गांवों व शहरो में तबाही कहर बन गई। कहतें है कि केरल के 14 जिले बाढ़ से त्रस्त हैं। लिहाजा, हम सभी के मन में एक सवाल तैरने लगा है कि क्या केरल की इस विनाशकारी बाढ़ से हमारी सरकारें कुछ सबक सिखेंगी? क्या हम विकास के नाम पर प्राकृति का अंधाधूंध दोहन करना बंद कर देंगे या इस महाविनाश को हम वक्त के साथ भूला देंगे?

मदद हेतु एकजुट हुए लोग

बहरहाल, केरल के सभी राजनीतिक दल और नेता पूरी एकजुटता के साथ इस अभूतपूर्व कुदरती संकट का सामना कर रहे हैं। मुख्यमंत्री पी विजयन ने राज्य के पुनर्निर्माण का वादा किया है। वर्दीधारी जवानों की दिलेरी, आपदा राहत में जुटे लोगों के पराक्रम, पायलटों के साहस, मछुआरों व विभिन्न समूहों के स्वयंसेवकों की नि:स्वार्थ सेवा की जैसी-जैसी कहानियां सुनने को मिल रही हैं, वे सचमुच दिल को छू लेने वाली हैं। केरल वासियों की मदद के लिए चौतरफा अपील का असर देश भर में दिख रहा है। अनेक राज्य सरकारों ने अपनी तरफ से बाढ़ राहत कोष में धन जमा कराया है। मुख्यमंत्री ने प्राथमिक राहत के तौर पर केंद्र सरकार से 2,250 करोड़ रुपये की मांग की है। इधर, केंद्र ने प्रथम किस्त में 750 करोड़ की मदद का एलान भी कर दिया है। कॉग्रेस ने केरल की बाढ़ को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की मांग की है।

महामारी को फैलने से रोकने की चुनौती

दरअसल, केरल के लोगों को कपड़ों और घरेलू सामान से ज्यादा पीने के साफ पानी, दवा, डॉक्टर और अन्य सहायकों की इस वक्त अधिक दरकार है। जरुरी है कि केरल के बाढ़ प्रभावित इलाको में किसी भी प्रकार की महामारी को पांव पसारने से पहले ही उसे रोका जा सके। राज्य को बड़ी संख्या में प्लंबर, बिजली मिस्त्री, राज मिस्त्री और कामगारों की भी जरूरत होगी। ताकि, उनकी मदद से जनोपयोगी सेवाएं शीघ्र चालू की जा सकें और यह सूबा फिर से पटरी पर लौट पाए।

खतरे का बड़ा संकेत

सवाल वही कि प्रकृतिक आपदाओं से कैसे निपटा जाये? ऐसी आपदाएं अब रूटीन का हिस्सा नहीं बनने लगी हैं। आपको याद ही होगा कि बादल-फटने से उत्तराखंड में कैसी विध्वंसकारी बाढ़ आई थी और श्रीनगर, मुंबई व चेन्नई की बाढ़ को भी हम अभी भूलें नहीं हैं। राजस्थान से उठी धूल भरी आंधी के कारण दिल्ली का वायु प्रदूषण हो या मृदा प्रदूषण से बढ्ते कैंसर का खतरा? भूल गए कया? क्या हमारी याददाश्त इतनी कमजोर हो गई है? यह स्थिति सिर्फ भारत की नहीं है। बल्कि, यूरोप, जापान, यहां तक कि उत्तरी ध्रुव के कई देशों में भी इस साल भयंकर गरमी पड़ी। इनमें से कुछ जगहों पर तो तापमान 109 डिग्री फारेनहाइट तक पहुंच गया था। अमेरिका के कई इलाकों में भी इस साल भयानक बाढ़ आई। आखिर ये घटनाएं और आपदाएं क्या संकेत दे रही हैं?

सरकारे उदासीन है आबाम लापरबाह

शायद आपको याद हो कि पर्यावरण विज्ञानी लंबे वक्त से ग्लोबल वार्मिंग के बारे में हमें आगाह करते आ रहे हैं। बताया जा रहा है कि इसके कारण समुद्र का जलस्तर बढ़ेगा और कई तटीय इलाके अगले दो दशक में डूब जाएंगे। लेकिन क्या इस आसन्न स्थिति से निपटने के लिए हमारे पास कोई ठोस योजना है? हरेक प्राकृतिक आपदा के बाद राजनेता बेबस हो अपने हाथ खड़े कर देते हैं। अक्सर आम आदमी ही अपने इलाके की त्रासदी से जूझने का साहस दिखाता है। वैज्ञानिक माधव गाडगिल ने वर्षों पहले अपनी रिपोर्ट में इन स्थितियों के बारे में हम सभी को आगाह कर दिया था। बावजूद इसके खनन माफिया, रेत माफिया और स्टोन माफिया पूरे देश में अपनी कारस्तानी जारी रखे हुए हैं। क्या आपको लगता है कि राजनेताओं और सरकारी अधिकारियों से मिलीभगत के बगैर ही यह मुमकिन हो रहा है?

खतरा और बढ़ने का संकेत

कहतें हैं कि साफ हवा और स्वच्छ जल इंसान के वजूद की बुनियादी जरूरतें हैं। पर, संसार भर के सत्ताधारी वर्ग द्वारा ग्लोबल वार्मिंग के बारे में बरती जा रही उदासीनता को देखकर पर्यावरणविद और बौद्धिक वर्ग हैरान हैं। दरअसल, कड़वी हकीकत को हम तभी समझते हैं, जब किसी आपदा के शिकार हो जाए। लिहाजा, आज हम कह सकतें है कि आने वाले दिनों में ऐसी कुदरती आपदाओं की संख्या और बढ़ने वाली हैं। पिछली एक सदी में आबादी कई गुना बढ़ी है, ऐसे में जान-माल का नुकसान भी बढ़ना लाजमी हो गया है। मालथस्य का सिद्धांत तो याद ही होगा? यही वह बड़ी वजह है जो, हमे केरल की त्रासदी के बाद भी नींद से जागने के लिए झकझोर नहीं रही है।

 

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