KKN न्यूज ब्यूरो। क्या आप लाउडस्पीकर से उब चुकें है? नींद पूरा करना मुश्किल हो रहा है। बच्चो की पढ़ाई या परिजनो से बातचीत करने में हो रही कठिनाई से परेसानी में है? यह कुछ आम समस्या है, जिसको आसानी से महसूस किया जा सकता है। हकीकत इससे कई गुणा अधिक खतरनाक है। दरअसल, ध्वनि प्रदूषण आज खतरनाक मोड़ पर पहुंच गया है। लगातार अधिक शोर के कारण सिरदर्द, थकान, अनिद्रा, बहरापन, चिड़चिड़ापन, उत्तेजना, आक्रोश, ब्लड प्रेसर आदि बीमारियां हो सकती है। लकवा हो सकता है। हर्ट अटैक हो सकता है। यानी आप पूरी बात समझ लें तो शायद कभी भी, किसी भी समारोह में तेज आवाज का समर्थन नहीं करेंगे।
वैज्ञानिको ने लम्बे समय तक अध्ययन करने के बाद पाया है कि ध्वनि प्रदूषण के कारण शरीर का मेटाबॉलिक (उपापचयी) प्रक्रियाएं बुरी तरीके से प्रभावित होती हैं। इससे एड्रीनलहार्मोन का स्राव बढ़ जाता है। नतीजा, धमनियों में कोलेस्ट्रोल का जमाव होने लगता है। इससे हर्टअटैक हो सकता है। जनन क्षमता कमजोर हो सकता है। यानी नपुंसक होने का खतरा बढ़ जाता है। लकवा हो सकता है। हाल के दिनो में लाउडस्पीकर की जगह डीजे ने ले लिया है। डीजे की आवाज हृदय के रोगियों के लिए बेहद खतरनाक माना जाता है। हम पहले ही बता चुके है कि अधिक शोर के कारण सिरदर्द, थकान, अनिद्रा, श्रवण क्षमता में कमजोरी, चिड़चिड़ापन, उत्तेजना, आक्रोश ब्लड प्रेसर आदि बीमारियां होने का खतरा हमेश बना रहता है।
मनुष्य की श्रवण क्षमता अधिकतम 80 डेसिमल की होती है। इससे ज्यादा की आवाज मनुष्य बर्दास्त नहीं कर सकता है। वैज्ञानिक शोध से पता चला है कि 25 डेसिबल तक आवाज आनन्ददायक होता है। यदि आवाज की तीव्रता 80 डेसिबल से अधिक हो जाये तो मनुष्य के बीमार होने का खतरा उत्पन्न होने लगता है। अव्वल तो तकलीफ महसूस होती है। वहीं जब आवजा की तीव्रता 100 डेसिबल के उपर हो जाये तो व्यक्ति बेचैन हो जाता है। सोचिए, ऐसे में डीजे से निकलने वाली 100 डेसिबल से अधिक शोर का शरीर पर क्या असर होता होगा? लगातार इस तीव्र आवाज के बीच रहने पर व्यक्ति मेंटल डिसऑर्डर का आसानी से शिकार हो सकता है।
आधुनिक युग में मोटर गाड़ी, लाउडस्पीकर और डीजे के अतिरिक्त कल-कारखाना और कई प्रकार की मशीनों का उपयोग काफी अधिक होने लगा है। गांव भी इससे अछूता नहीं रहा। असली समस्या, बेवजह की आवाज से है। ताज्जुब की बात ये है कि धर्म या समारोह की आर लेकर देर रात तक तेज आवाज में संगीत बजाने वाले शायद नहीं जानतें है कि इसका खतरनाक असर पूरे समाज को धीरे-धीरे अपने चपेट में ले रहा है। लाउडस्पीकर को बजने से रोका नहीं गया तो निकट भविष्य में पूरा समाज बीमार हो जायेगा। बड़ा सवाल ये है कि इस बाबत हम चुप क्यों है? हर बात पर शासन, पुलिस और कानून की दुहाई देकर, आखिर हम कब तक बचते रहेंगे? समय आ गया है। समाज को खुद ही मुखर होना पड़ेगा। अन्यथा निकट भविष्य में इसके दुष्परिणाम भुगतने होंगे।
This post was published on अप्रैल 25, 2021 18:14
या आप जानते हैं कि गिद्ध क्यों विलुप्त हो गए? और इसका मानव जीवन पर… Read More
भारत और पाकिस्तान के 1947 के बंटवारे में केवल जमीन ही नहीं, बल्कि घोड़ागाड़ी, बैंड-बाजा,… Read More
7 दिसंबर 1941 का पर्ल हार्बर हमला केवल इतिहास का एक हिस्सा नहीं है, यह… Read More
सफेद बर्फ की चादर ओढ़े लद्दाख न केवल अपनी नैसर्गिक सुंदरता बल्कि इतिहास और संस्कृति… Read More
आजादी के बाद भारत ने लोकतंत्र को अपनाया और चीन ने साम्यवाद का पथ चुना।… Read More
मौर्य साम्राज्य के पतन की कहानी, सम्राट अशोक के धम्म नीति से शुरू होकर सम्राट… Read More