अभी तक महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, हरियाणा और राजस्थान के किसान आंदोलन कर रहे थे। अब हरिद्वार से दिल्ली तक किसान क्रांति यात्रा के जरिए किसानों ने अपनी मांग दिल्ली दरबार तक पहुंचा दी है। दरअसल, कर्ज माफी की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे किसानों की कई मांगों पर सरकार सहमति जता चुकी है। सरकार ने डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश तो जरूर की, पर आंदोलन सियासी संदेश देने में कामयाब रहा है।
कहतें हैं कि किसान सरकार पर दबाव बना कर चुनावी साल में अपनी कितनी मांगों को पूरा कराने में सफल रहते हैं, यह तो वक्त तय करेगा। बहरहाल, भारतीय किसान यूनियन के संस्थापक महेंद्र सिंह टिकैत के बाद किसानों का यह पहला बड़ा आंदोलन है। इस किसान क्रांति यात्रा में कई प्रदेशों के किसान शामिल हुए। गौरतलब बात यह है कि इसमें जाट किसानों की संख्या अधिक थी।
पुलिस का किसानों के साथ टकराव के बीच सरकार ने जिस तेजी के साथ सुलह-सफाई की कोशिश की है, उससे साफ है कि भाजपा को भी इसके सियासी परिणाम का अंदाजा है। पश्चिमी यूपी में लोकसभा की करीब दो दर्जन सीट हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में सभी सीट पर भाजपा ने जीत दर्ज की थी। पर कैराना उपचुनाव में राष्ट्रीय लोकदल की तबस्सुम हसन ने भाजपा को शिकस्त दी थी। इस जीत में जाट मतदाताओं की भूमिका अहम मानी जा रही है।
जानकार मानते है कि इस किसान क्रांति यात्रा का सियासी लाभ सबसे अधिक राष्ट्रीय लोकदल को मिल सकता है। यही वजह है कि चौधरी अजित सिंह ने आंदोलन कर रहे किसानों से मिलने में देर नहीं की। अजित सिंह मानते हैं कि किसान भाजपा के खिलाफ मन बना चुका है। वर्ष 2014 और कैराना चुनाव के बाद सरकार ने कई घोषणा की है। पर कोई पूरी नहीं हुई है। किसान यह समझ चुका है। भाजपा के बड़े नेता भी मानते हैं कि किसान आंदोलन पश्चिमी यूपी में भाजपा की मुश्किलें बढ़ा सकता है। किसान नाराज हैं। खासकर जाट मतदाता काफी सीट पर निर्णायक फैसला करते रहें हैं।
This post was published on अक्टूबर 3, 2018 19:08
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