कांग्रेस पार्टी ने सोमवार को एक बार फिर चीन विवाद को लेकर मोदी सरकार पर तीखा हमला बोला। पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि वर्ष 2020 में गलवान घाटी की घटना के बाद से हर देशभक्त भारतीय वास्तविक स्थिति को लेकर सरकार से जवाब मांग रहा है, लेकिन केंद्र सरकार तथ्यों को छिपाने के लिए सिर्फ प्रचार और भ्रम की नीति पर चल रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार की यह नीति ‘DDLJ Policy’ है, जिसमें ‘Denial, Distract, Lie और Justify’ यानी इनकार, ध्यान भटकाना, झूठ और सही ठहराना शामिल है।
यह बयान उस समय आया जब सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस सांसद राहुल गांधी को सेना को लेकर कथित आपत्तिजनक बयान देने पर फटकार लगाई थी। हालांकि, अदालत ने लखनऊ की निचली अदालत में उनके खिलाफ चल रही कार्यवाही पर अस्थायी रोक भी लगा दी।
DDLJ Policy, जिसे कांग्रेस बार-बार दोहराती रही है, के तहत जयराम रमेश ने कहा कि मोदी सरकार सीमा विवाद पर जवाब देने से बच रही है। उनका आरोप है कि सरकार गलवान में भारतीय सैनिकों के बलिदान के बाद भी चीन के सामने कमजोर रुख अपनाए हुए है। रमेश ने कहा कि 15 जून 2020 को 20 जवानों के शहीद होने के बाद प्रधानमंत्री ने मात्र चार दिन बाद यह क्यों कहा कि “न कोई हमारी सीमा में घुसा है, न कोई घुसा हुआ है”?
उनका दावा है कि यह बयान चीन को Clean Chit देने जैसा था, और इससे हमारी कूटनीतिक स्थिति भी कमजोर हुई।
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को राहुल गांधी के उस बयान को लेकर नाराज़गी जताई जिसमें उन्होंने Bharat Jodo Yatra के दौरान भारतीय सेना के प्रति आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। अदालत ने कहा कि अगर आप सच्चे भारतीय हैं तो ऐसी बात नहीं कहेंगे। हालांकि, अदालत ने लखनऊ कोर्ट में उनके खिलाफ चल रहे मामले को फिलहाल स्थगित कर दिया।
इस घटनाक्रम के तुरंत बाद कांग्रेस ने फिर से China Issue को उठाया और सरकार से जवाब मांगा कि आखिर अब तक क्या कदम उठाए गए हैं।
जयराम रमेश ने दावा किया कि 2020 में यह व्यापक रूप से रिपोर्ट हुआ था कि पूर्वी लद्दाख का लगभग 1,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र, जिसमें 900 वर्ग किलोमीटर Depsang शामिल है, अब चीनी नियंत्रण में है। उन्होंने यह भी कहा कि Leh के एसपी ने डीजीपी कॉन्फ्रेंस में एक शोधपत्र प्रस्तुत किया था, जिसमें बताया गया था कि भारत ने पूर्वी लद्दाख के 65 में से 26 Patrolling Points तक पहुंच खो दी है।
रमेश का कहना है कि यह सारी जानकारी सरकार की ही सुरक्षा एजेंसियों द्वारा दी गई थी, लेकिन सरकार ने कभी इस पर सार्वजनिक रूप से स्वीकार नहीं किया।
उन्होंने सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी के बयान का भी हवाला दिया, जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत अप्रैल 2020 की यथास्थिति पर लौटना चाहता है। इसके आधार पर रमेश ने सवाल उठाया कि क्या 21 अक्टूबर 2024 को हुआ समझौता इस यथास्थिति को पुनः स्थापित करता है? उन्होंने कहा कि भारतीय गश्ती दल को Depsang, Demchok और Chumar जैसे इलाकों में पहुंचने के लिए चीन की सहमति की जरूरत नहीं होनी चाहिए।
सरहद पर तनाव के बावजूद, रमेश ने कहा कि भारत का China Import तेजी से बढ़ा है। उन्होंने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक्स, बैटरियां, सोलर सेल और दवाइयों जैसे Critical Sectors आज भी चीन से भारी मात्रा में सामान मंगवा रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार की Economic Priorities पूरी तरह गड़बड़ हैं।
उन्होंने बताया कि 2024-25 में भारत का Trade Deficit चीन के साथ 99.2 अरब डॉलर तक पहुंच गया है, जो एक रिकॉर्ड घाटा है। रमेश ने कहा कि इससे यह स्पष्ट होता है कि सरकार एक तरफ चीन के खिलाफ देशभक्ति की बात करती है और दूसरी तरफ उस पर आर्थिक रूप से निर्भर होती जा रही है।
कांग्रेस नेता ने यह भी दावा किया कि 1962 के बाद से भारत को जो सबसे बड़ा Territorial Setback मिला है, उसके लिए मोदी सरकार ज़िम्मेदार है। उन्होंने कहा कि यह सिर्फ सैन्य विफलता नहीं है, बल्कि रणनीतिक कायरता और नीतिगत विफलता का परिणाम है। उनके मुताबिक, सरकार ने वास्तविकता को स्वीकार करने की जगह, प्रचार और बयानबाजी का सहारा लिया।
उन्होंने सवाल उठाया कि क्या यही है राष्ट्रवाद, जहां सैनिकों के बलिदान को राजनीतिक चुप्पी से जवाब दिया जाए? उन्होंने कहा कि एक लोकतंत्र में सच्चाई को छिपाने की नहीं, जवाब देने की परंपरा होनी चाहिए।
कांग्रेस ने दोहराया कि राष्ट्रीय सुरक्षा, सैन्य बलों की गरिमा और सरहदी सच्चाई पर सवाल उठाना Deshdroh नहीं है। यह एक लोकतांत्रिक देश में विपक्ष की जिम्मेदारी है। जयराम रमेश ने कहा कि सरकार को विपक्ष के सवालों का जवाब देना चाहिए, ना कि उन्हें देशविरोधी करार देकर खारिज करना चाहिए।
उन्होंने अंत में कहा कि सच को दबाया जा सकता है, पर मिटाया नहीं जा सकता। भारत की जनता जानना चाहती है कि अप्रैल 2020 के बाद क्या बदला और भारत ने क्या खोया।
कांग्रेस ने इस पूरे विवाद में सरकार से सिर्फ एक बात कही — सच बोलिए। सीमा सुरक्षा, राष्ट्रीय गरिमा और आर्थिक आत्मनिर्भरता जैसे मुद्दों पर जनता को भ्रम में रखना अब संभव नहीं है। जब देश जानता है कि गलवान में 20 जवान शहीद हुए थे, तो वह यह भी जानना चाहता है कि उनका बलिदान क्या रंग लाया।
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