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दिल्ली के बाद अब बिहार की बारी

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क्षेत्रीय राजनीति का हो जायेगा लिमटस टेस्ट

KKN न्यूज ब्यूरो। बिहार में इस वर्ष के अंतिम तीमाही में विधानसभा का चुनाव होना है। दिल्ली विधानसभा से उत्साहित होकर, बीजेपी ने बिहार में पूरा फोकस कर दिया है। दूसरी ओर मुख्य विपक्षी दल आरजेडी पहले से ही चुनावी मोड में है। यानी, सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही अपने-अपने मोर्चे पर रणनीतियां बनाने में व्यस्त हैं। इस बार का चुनाव न केवल पार्टियों की राजनीतिक क्षमता की परीक्षा होगी, बल्कि जनता के मुद्दों, जातिगत समीकरणों और क्षेत्रीय राजनीति का मिजाज भी इस चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। आइए जानते हैं कि बिहार के प्रमुख राजनीतिक दलों की तैयारियां और रणनीतियां किस दिशा में काम कर रही है।

एनडीए की रणनीति: विकास के मुद्दे पर दांव

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुआई वाली एनडीए सरकार ने इस बार चुनावी नैया को “विकास” के नारे पर चलाने की योजना बनाई है।

नीतीश कुमार का मुख्य फोकस उनकी विकास योजनाओं और सुशासन के ब्रांड पर है। “हर घर नल का जल” और “सात निश्चय” योजनाओं को आगे रखकर सरकार अपने रिपोर्ट कार्ड के जरिए जनता का विश्वास जीतने की कोशिश कर रही है।

वहीं, भाजपा के लिए यह चुनाव खास महत्व रखता है, क्योंकि पार्टी अपने संगठन के बलबूते पूरे बिहार में अपनी पकड़ मजबूत करना चाहती है। भाजपा के नेता धार्मिक और राष्ट्रवाद के मुद्दों को भी उभार सकते हैं, ताकि पार्टी का कोर वोट बैंक पूरी तरह से सक्रिय हो सके।

लेकिन एनडीए गठबंधन के भीतर सीटों के बंटवारे को लेकर हलचल की स्थिति बनी हुई है। जदयू और भाजपा के बीच इस मुद्दे को लेकर समझौता करना आसान नहीं होगा, खासकर तब जब लोजपा जैसे छोटे दल भी अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने की मांग कर रहे हैं।

महागठबंधन: एकता में है चुनौती

दूसरी ओर, महागठबंधन (आरजेडी, कांग्रेस, वाम दल और अन्य सहयोगी दल) इस बार के चुनाव में जनता के सामने एकजुटता की छवि पेश करना चाहता है। हालांकि, अंदरूनी मतभेद और नेतृत्व को लेकर अनिश्चितता उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती है।

आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं जैसे मुद्दों को प्राथमिकता देने की बात कही है। उनका “10 लाख नौकरी” का वादा फिर से चर्चा का विषय है। तेजस्वी के पास युवा और अल्पसंख्यक वोटरों को आकर्षित करने की क्षमता है, लेकिन पार्टी के पुराने नेताओं और नए नेतृत्व के बीच संतुलन बनाना एक बड़ी चुनौती है।

कांग्रेस की स्थिति भी कुछ खास मजबूत नहीं है। पार्टी के पास न तो स्पष्ट नेतृत्व है और न ही चुनावी रणनीति। वाम दल अपने पारंपरिक जनाधार वाले क्षेत्रों में सक्रिय हैं, लेकिन उनकी भूमिका महागठबंधन में सीमित ही है।

तीसरा मोर्चा: क्षेत्रीय दलों का दांव

बिहार की राजनीति में छोटे और क्षेत्रीय दल भी अहम भूमिका निभाते हैं। लोजपा (रामविलास), वीआईपी और एआईएमआईएम जैसे दल अपने-अपने क्षेत्रों में प्रभाव डालने की कोशिश कर रहे हैं। इन दलों की रणनीति मुख्य रूप से गठबंधन की राजनीति पर निर्भर करती है।

लोजपा नेता चिराग पासवान अपनी पार्टी को बिहार की राजनीति में निर्णायक भूमिका में देखना चाहते हैं। उन्होंने नीतीश कुमार की सरकार पर तीखे हमले किए हैं, लेकिन भाजपा से उनके रिश्ते अभी भी संतुलित हैं।

एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में अपनी पकड़ को और मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि, उनकी पार्टी के विस्तार की सीमाएं साफ हैं और वे अधिकतर सीटों पर महागठबंधन के वोट काट सकते हैं।

जातिगत समीकरण: अब भी प्रभावी

बिहार की राजनीति में जातिगत समीकरण हमेशा से निर्णायक रहे हैं। यादव, कुर्मी, दलित, मुस्लिम और अन्य पिछड़े वर्गों के वोट बैंक को साधने के लिए सभी दल पूरी तैयारी में हैं।

आरजेडी अपनी परंपरागत यादव-मुस्लिम समीकरण को और मजबूत करने में जुटी है, जबकि भाजपा-नीतीश गठबंधन ने पिछड़े और अति पिछड़े वर्गों को साधने की रणनीति बनाई है।

इस बार के चुनाव में महिला वोटरों की भी अहम भूमिका होगी। नीतीश कुमार ने महिलाओं के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं, जिससे उनकी सरकार को महिला वोटरों का समर्थन मिलने की उम्मीद है।

जनता के मुद्दे: चुनावी नैरेटिव का निर्धारण

इस बार बिहार के चुनाव में जनता के मुद्दे जातिगत राजनीति के साथ-साथ अहम भूमिका निभाएंगे।

  • बेरोजगारी और शिक्षा: बिहार में बेरोजगारी का मुद्दा सबसे बड़ा चुनावी विषय हो सकता है।
  • मूलभूत सुविधाएं: बिजली, पानी और सड़कों की स्थिति भी चर्चा में रहेगी।
  • महंगाई और भ्रष्टाचार: इन मुद्दों पर विपक्ष सरकार को घेरने की तैयारी में है।

दिलचस्प और चुनौतीपूर्ण होगा मुकाबला

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का परिदृश्य बेहद दिलचस्प और चुनौतीपूर्ण है। सत्ता पक्ष अपने “विकास” के एजेंडे के सहारे मैदान में है, जबकि विपक्ष बेरोजगारी और मूलभूत सुविधाओं को लेकर सरकार को घेरने की तैयारी में है।

आखिरकार, यह देखना रोचक होगा कि जातिगत समीकरणों, जनता के मुद्दों और गठबंधन की राजनीति के बीच कौन सी पार्टी बाजी मारती है। बिहार की जनता के फैसले पर सभी की नजरें टिकी हुई हैं।

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Kaushlendra Jha

कौशलेन्द्र झा, KKN Live के संपादक हैं और हिन्दुस्तान (हिन्दी दैनिक) के लिए लगातार लेखन कर रहे हैं। बिहार विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने पत्रकारिता में तीन दशकों से अधिक का अनुभव अर्जित किया है। वे प्रात:कमल, ईटीवी बिहार-झारखंड सहित कई प्रतिष्ठित संस्थानों से जुड़े रहे हैं। सामाजिक कार्यों में भी उनकी सक्रिय भूमिका रही है—वे अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संघ (भारत) के बिहार प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं और “मानवाधिकार मीडिया रत्न” सम्मान से सम्मानित किए जा चुके हैं। पत्रकारिता में उनकी गहरी समझ और सामाजिक अनुभव उनकी विश्लेषणात्मक लेखन शैली को विशेष बनाती हैं।

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