पिछले चार साल में देश और बीजेपी के अंदर आए राजनीतिक बदलाव की वजह से आडवाणी हाशिये पर चले गए। लेकिन आज बीजेपी जो कुछ भी है और जिस भी ऊंचाई पर है, वह सब वाजपेयी और आडवाणी की डाली हुई बुनियाद की वजह से ही है। वाजपेयी और आडवाणी ने
आडवाणी की भूमिका बीजेपी में महज एक वरिष्ठ नेता भर की नहीं है। बल्कि, एक ऐसे नेता की रही है जो अपने हाथों से न जाने कितने नेताओं को गढ़ा और बड़ा बनाया। कौन नहीं जानता कि स्वयं नरेंद्र मोदी भी आडवाणी के ही गढ़े हुए राजनेता हैं। हिन्दू राजनीति की अगुवाई करने वाली इस पार्टी के अधिकांश नेताओं के करियर में आडवाणी ऩे पिता और गुरू दोनों की भूमिका निभाई है।
आडवाणी तुलनात्मक रूप से ईमानदार माने जाते रहे हैं। हवाला मामले में उनपर आरोप लगे, तो उन्होंने संसद की सदस्यता से इस्तीफा देकर अपने बेदाग सिद्ध होने का इंतजार किया और राजनीति में शुचिता की एक अमिट मिसाल कायम की। दबी जुबान ही सही, पर अब यह चर्चा भी जोर पकड़ने लगी है कि बाबरी विध्वंस के मामले में सीबीआई का इस्तेमाल कर केंद्र सरकार आडवाणी के राष्ट्रपति बनने के रास्ता को जान बूझ कर मुश्किल बना दिया। क्या बीजेपी राम जन्मभूमि आंदोलन से जुड़े राजनीतिक मामले को अब उसके नायक आडवाणी के खिलाफ इस्तेमाल करेगी? आने वाले दिनो में यह सवाल और भी जोर पकड़ सकता है। बहरहाल, राष्ट्रपति उम्मीदवार को लेकर बीजेपी के इस मास्टर स्ट्रॉक का राजनीति के गलियारे में कई मायने निकाले जा रहें है। अब देखना है कि इस मास्टर स्ट्रॉक का दूरगामी असर क्या होता है? फिलहाल तो आडवाणी और उनके लोगो का राजनीतिक भविष्य बीजेपी में समाप्त होता प्रतीत होने लगा है।
This post was published on जून 20, 2017 23:31
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