KKN ब्यूरो। टू नेशन थ्योरी (Two-Nation Theory) भारत के विभाजन की वैचारिक नींव मानी जाती है। इसके अनुसार, भारतीय उपमहाद्वीप में रहने वाले हिंदू और मुस्लिम दो अलग-अलग “कौमें” हैं, जिनकी धार्मिक मान्यताएं, सांस्कृतिक परंपराएं, और सामाजिक ढांचे इतने भिन्न हैं कि वे एक राष्ट्र के रूप में साथ नहीं रह सकते।
1947 में पाकिस्तान के निर्माण का औपचारिक आधार यही थ्योरी बनी। लेकिन इस विचार की शुरुआत और इसके पीछे की राजनीति का सच कहीं अधिक जटिल है।
अक्सर यह समझा जाता है कि टू नेशन थ्योरी के जनक मोहम्मद अली जिन्ना थे, लेकिन ऐतिहासिक रूप से यह विचार सबसे पहले सर सैयद अहमद खान ने 19वीं सदी में रखा था।
“हिंदू और मुसलमान दो अलग सभ्यताएं हैं। इनका एक ही राज्य में रहना न तो न्यायसंगत है और न ही संभव।”
टू नेशन थ्योरी एक ऐसा विचार था जिसने भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास की दिशा बदल दी। यह सिद्धांत एक राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल हुआ, जिसने साम्प्रदायिक खाई को गहरा किया और अंततः विभाजन की त्रासदी का रास्ता खोला।
आज, इतिहासकार मानते हैं कि अगर औपनिवेशिक नीतियों, सांप्रदायिक राजनीति और नेताओं की कट्टर बयानबाजी को रोका जाता, तो शायद यह थ्योरी कभी जमीन पर न उतरती।
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