कुदरत लेता रहा परीक्षा और उतीर्ण होती रही सुनिता/ सात रोज तक भूखे प्यासे रह कर दूसरे के घर लिया शरण/ बच्चो के खुशी मे भूल गया अपना दर्द/ 14 साल तक दूसरे के मकान मे शरण लेकर किया गुजर बसर/ उड़द का बरी बेचकर बच्चे को बनाया ग्रेजुएट
संतोष कुमार गुप्ता
मीनापुर। माई के दूधवा अइसन केहूं के मीठाई ना होई.जे अभागा होई हे उनका घर मे माई ना होई। आज मदर्स डे है। ग्रामीण इलाको मे आज भी मां की ममता की कोई सानी नही है। लेकिन टेंगरारी गांव के सुनिता देवी की जिंदगी की कहानी सुनकर आपके रोगंटे खड़े हो जायेंगे।
सुनिता के ममता का कुदरत लगातार परीक्षा ले रहा था। वह इस परीक्षा मे पास होती रही। सुनिता देवी अब खुशी सीएलएफ से जुड़कर दीपक जीविका ग्राम संगठन के अंतर्गत नारायण स्वंय सहायता समूह के सदस्य के रूप मे महिलाओ के लिए नजीर बन गयी है। अब वह दुखो के पहाड़ से निकल चुकी है। घर से निकाले जाने के बाद वह 14 साल दूसरे के मकान मे रहने के बाद उसने पांच लाख रूपये की लागत से नया आशियाना तैयार कर लिया है। बस गृहप्रवेश करना बाकी है। खराब समय को झेलते हुए उसने बड़ी बेटी प्रियंका को स्नातक फाइनल करा लिया है। दूसरी बेटी प्रिया इंटर द्वितिय वर्ष की छात्रा है। गोलू दसम व सुप्रिया सातंवा वर्ग मे पढती है। वह खुद कष्ट काट कर बच्चे को उंचे ओहदे तक पहुंचाना चाहती है।
बेटे के इलाज मे हो गयी कंगाल
सुनिता की शादी वर्ष 1990 मे टेंगरारी के राजेंद्र साह से हुई थी। सुनिता के जेठ नेपाल व देवर अन्य प्रदेशो मे रहते थे। सुनिता को एक लड़की के जन्म के दो साल बाद मायके वैशाली के महुआ मे लड़का का जन्म हुआ। सुनिता के दुख के कहानी यहीं से शुरूआत होती है। उसके तबियत खराब होने के कारण सुनिता का मायके से ससुराल आना जाना लगा रहा। छह महिना का जब लड़का हो गया तो वह ससुराल आ गयी। घर वाले के लापरवाही के कारण वह बच्चा सड़क किनारे गिर कर जख्मी हो गया। सुनिता ने गांव से लेकर शहर तक इलाज करवाया। कर्ज पर कर्ज लेता रहा किंतु कोई सुधार नही हुआ। आइजीएमएस पटना से दिल्ली एम्स रेफर कर दिया गया.सुनिता को दिल्ली जाने के लिए फूटी
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