कौशलेन्द्र झा
बात 75 साल पुरानी है। 16 अगस्त 1942 का दिन था। हरका के पं. सहदेव झा के नेतृत्व में स्वतंत्रता सैनानियों ने न सिर्फ मीनापुर थाने से
बतातें चलें कि आठ अगस्त 1942 को कांग्रेस ने भारत छोड़ो आंदोलन की घोषणा की। इसके आलोक में 11 अगस्त को हरका के पं. सहदेव झा के दरवाजे पर देशभक्तों ने गुप्त बैठक की। इसमें मीनापुर थाने पर तिरंगा फहराने की योजना बनी। लेकिन, इसकी भनक अंग्रेजों को लग गई। ब्रिटिश हुकूमत ने आंदोलनकारियों को कुचलने के लिए नेपाल की सीमा से फौज की एक टुकड़ी को मीनापुर रवाना कर दिया।
अंग्रेजी फौज पर बोला हमला
15 अगस्त 1942 को ब्रिटिश फौज के रामपुरहरि पहुंचते ही आजादी के दीवानों ने फौज पर हमला बोल दिया। इस संघर्ष में विसनदेव पटवा, चतर्भुज मिश्र, रमण राय, केशव शाही और बिन्देश्वर पाठक मौके पर ही शहीद हो गए और दो दर्जन से अधिक लोग जख्मी हुए। इससे लोगों का आक्रोश और भड़क गया। देर रात क्रांतिवीरों ने गुपचुक तरीके से हरका में एक बैठक करके जो रणनीति बनाई, वह इतिहास में दर्ज हो गई।
मीनापुर थाने पर किया हमला
योजना के मुताबिक 16 अगस्त 1942 की दोपहर स्वतंत्रता सैनानियों ने मीनापुर थाना पर धावा बोल दिया। थानेदार लुइस वालर को जिंदा जलाने के बाद लोगों ने यूनियन जैक उतारकर थाना पर तिरंगा फहराया। इस दौरान अंग्रेजों की गोली से चैनपुर के बांगूर सहनी शहीद हो गए। वहीं, झिटकहियां के जगन्नाथ सिंह, भिखारी सिंह, रीझन सिंह, पुरैनिया के राजदेव सिंह, रामदहाउर सिंह, चैनपुर के बिगन सहनी, हसनपुर के दुलार सिंह व चाकोछपरा के रौशन साह गोली लगाने से बुरी तरह जख्मी हो गए थे।
पुलिस प्रताड़ना से दो की मौत
पुलिस ने थानेदार की हत्या के आरोप में 14 व थाने में तोड़फोड़ करने के आरोप में 27 लोगों पर एफआईआर की। बाद में आरोपितों की संख्या बढ़ाकर 87 कर दी। अंग्रेजी हुकूमत ने छापामरी के नाम पर दर्जनों गांव में कहर बरपाया। महदेईया को आग के हवाले कर दिया। लोग अंग्रेजों के भय से घर छोड़कर भागने लगे। इसी बीच नेपाल के जलेसर जेल में पुलिस की प्रताड़ना से मुस्तफागंज के बिहारी ठाकुर व हरका के सुवंश झा की मौत हो गई।
जुब्बा सहनी ने वालर को मारने की बात स्वीकारी
वालर हत्याकांड की सुनवाई पूरी हो चुकी थी। चैनपुर के जुब्बा सहनी ने जूरी की मंशा को पहले ही भांप लिया। फैसला आने से पहले ही उन्होंने अदालत में स्वीकार कर लिया कि वालर को मैंने मारा। अंग्रेजी हुकूमत ने 11 मार्च 1944 को भागलपुर सेंट्रल जेल में जुब्बा सहनी को फांसी दे दी। वहीं, पुरैनिया के राजदेव सिंह, रामधारी सिंह, मुस्तफागंज के बिहारी साह व मुसलमानीचक के रुपन भगत को आजीवन कारावास की सजा दी गई। आठ लोगों को रिहा कर दिया गया। इनमें रौशन साह, लक्ष्मी सिंह, जनक भगत, पलट भगत, नारायण महतो, संतलाल महतो, अकलू बैठा व गोविंद महतो का नाम शामिल थे। बाकी 73 आरोपितों को पांच वर्ष के कारावास की सजा दी गई थी।
This post was published on अगस्त 15, 2017 00:21
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