नालंदा विश्वविद्दालय का खंडहर
आज भारत के नागरिकों में देश को एक बार फिर से विश्व गुरु बनाने का जुनून सिर पर चढने लगा है। यह एक साहसी सोच का नतीजा है। सदियों तक गुलामी की जंजीर में जकड़े रहने के बाद, आज हम इस मुकाम पर हैं कि भारत को फिर से विश्व गुरु के रूप में देखने का हौसला मन में पनपने लगा है। वर्तमान हुकूमतों के रहते इस सपने में पंख लगाने लगा है। परन्तु, इन सबके बीच सबसे अधिक चिंता कि बात यह है कि आखिर हम अपने सपनों के भारत में सबसे महत्वपूर्ण मसला यानी शिक्षा को सफलता की सीढ़ी कैसे बनायें?
हमें यह बिलकुल नहीं भूलना चाहिए कि भारत के जिस स्वर्णिम इतिहास को सुनकर हमारा कलेजा गर्व से चौड़ा हो जाता है, उस काल में देश की शिक्षा प्रणाली एवं उसका स्तर पुरे विश्व में शीर्ष पर था। नालंदा, तक्षशिला और बिक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय हमारे देश की गौरव था। ज्ञान का पताका पुरे विश्व में फहरा रहा था। ज्ञान के दम पर हमने अपनी मजबूत अर्थव्यवस्था के बल पर दुनिया को राह दिखाई और विश्व गुरु की भूमिका का निर्वहन किया। क्योंकि, शिक्षा के स्तर के आधार पर ही किसी भी सभ्यता, संस्कृति या सुदृढ़ समाज का मूल निर्भर करता है। इसकी गुणवत्ता को सुदृढ़ किए बिना विकास कि गति को तेज करना किसी भी मूल्क के लिए संभव नहीं होता है।
दूसरी ओर वर्तमान का सच ये है कि आज भारत का एक भी विश्वविद्यालय, दुनिया के शीर्ष सौ विश्वविद्यालयों की सूची में शामिल होने के लिए निरंतर संघर्षरत हैं। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो कुछ दशकों से देश में सरकारी एवं निजी विद्यालयों तथा महाविद्यालयों का निर्माण काफी तेजी से हुआ है। इसमें बड़ी संख्या में देश के युवा दाखिला लेते है और डिग्रीयां इकट्ठा करते हैं। परन्तु, उन्हे रोजगार नहीं मिल पाता है और बेरोजगारी दर में निरंतर वृद्धि दर्ज होने से यह सवाल भी उठने लगा हैं कि क्या ये तमाम शैक्षणिक संस्थानों के अंदर सिर्फ डिग्रीयां बांटने के अलावे भी युवाओं को कुछ रोजगार के योग्य बनाया जा रहा है?
सरकार की मनसा भी संदेह के घेरे में है। यदि देश की शिक्षा प्रणाली दोषपूर्ण अथवा विश्वस्तरीय नहीं है तो उनके द्वारा इस क्षेत्र में सुधार के लिए कौन-कौन से कदम उठाए जा रहे हैं? आज यह यक्ष प्रश्न बन गया है। लाखों की संख्या में देश के युवा डिग्रीयां लेकर बेरोजगारी का दंश झेल रहे हैं और सरकार आंख बंद करके तमाशा देख रही है। शायद, इसी वजह से हमारे देश के करोड़ों युवा रोजगार के लिए लालायित हैं और चीन, युरोप, एवं अमेरिका समेत विदेशों से लोग आकर हमारे यहां व्यापार करके भारत को अपने रोजगार का चारागाह बना रहे हैं। दरअसल, यही वह बड़ी कारण है जो हमारे देश को आत्मनिर्भर बनाने में सबसे बड़ी बाधा खड़ी करती है।
विकसित देशों की बात कि जाए तो वहां बजट का बड़ा हिस्सा शिक्षा के क्षेत्र में खर्च किया जाता है। दूसरी ओर विकासशील होने के बाद भी हमारे देश के कुल बजट का तीन फीसदी हिस्सा भी शिक्षा पर नहीं खर्च हो पा रही है। सरकारी संस्थानों में सिर्फ नाम के लिए ही बच्चे दाखिला लेते हैं। लेकिन वे अपनी पढाई को निजी संस्थानों में पूरा करने को विवश हैं। समय-समय पर सरकार द्वारा शिक्षा नीति में बदलाव की बाते कही जाती है। किंतु, सच ये है कि किसी भी सरकार ने शिक्षा के सुधार की दिशा में कोई ठोस पहल नहीं की है। प्रशिक्षित एवं शिक्षक पात्रता परीक्षा पास करके शिक्षक बनने की राह मुश्किल हो चुका है और अप्रशिक्षित अथवा टाल-मटोल कर जबरदस्ती प्रशिक्षण का डिग्री देकर बिना शिक्षक पात्रता परीक्षा पास कराए लोगों के हाथों में ही देश का भविष्य सौंपा जा रहा है। इस प्रकार ये सवाल आज भी मन में तैर रहा हैं कि क्या इसी तरह से हमारा भविष्य सुरक्षित हो पाएगा? क्या शिक्षा में गुणवत्ता लाए बगैर ही भारत को फिर से विश्व गुरु बनाने का अति महत्वाकांक्षी सपना पूरा हो पायेगा?
इस आर्टिकल को ऋषिकेश राज द्वारा लिखा गया है।
This post was last modified on अप्रैल 28, 2020 6:43 अपराह्न IST 18:43
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने छात्रों को राहत देते हुए ओपन डिस्टेंस लर्निंग (ODL) और… Read More
KKN ब्यूरो। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में NDA बनाम महागठबंधन की जंग, जन सुराज का… Read More
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को अपने बिहार दौरे पर गयाजी और बेगूसराय पहुंचे। इस दौरान… Read More
ChatGPT बनाने वाली कंपनी OpenAI ने भारत में अपना पहला दफ्तर खोलने का ऐलान कर… Read More
समस्तीपुर जिले के उजियारपुर थाना क्षेत्र में शनिवार को एक सनसनीखेज वारदात हुई। सातनपुर गांव… Read More
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को बिहार पहुंचे और गयाजी से राज्य को ₹13,000 करोड़ की… Read More