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बिहार रोल संशोधन के लिए चुनाव आयोग का बड़ा फैसला, विपक्ष ने उठाए सवाल

Election Commission’s Major Decision on Voter Verification for Bihar Roll Revision

चुनाव आयोग ने बिहार में चल रहे निर्वाचन रजिस्टर संशोधन प्रक्रिया के दौरान एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है, जो विपक्षी दलों के तीव्र आलोचनाओं का कारण बना है। चुनाव आयोग ने कहा है कि अगर कोई मतदाता आवश्यक दस्तावेज़ प्रस्तुत नहीं करता है, तो भी उसका सत्यापन किया जा सकता है। ऐसे मामलों में, निर्वाचक रजिस्ट्रार अधिकारी (ERO) स्थानीय जांच के आधार पर सत्यापन कर सकते हैं। यह निर्णय बिहार विधानसभा चुनाव से पहले किए जा रहे विशेष गहन संशोधन (Special Intensive Revision – SIR) के संदर्भ में लिया गया है, जो विपक्षी दलों द्वारा भारी विरोध का सामना कर रहा है।

विशेष गहन संशोधन (SIR) और विपक्ष का विरोध

विशेष गहन संशोधन प्रक्रिया बिहार विधानसभा चुनावों से पहले चल रही है, जिसका उद्देश्य निर्वाचन रजिस्टर को अपडेट करना और मतदाता सूची को सही करना है। हालांकि, इस प्रक्रिया ने विपक्षी दलों में चिंता और विरोध उत्पन्न कर दिया है। मुख्य रूप से, विपक्षी दलों ने आरोप लगाया है कि यह प्रक्रिया करोड़ों मतदाताओं को चुनावी प्रक्रिया से बाहर कर सकती है, और इसे भाजपा के पक्ष में चुनावी लाभ प्राप्त करने के लिए एक षड्यंत्र करार दिया है।

विपक्ष का मुख्य आरोप यह है कि चुनाव आयोग ने मतदाता सत्यापन के लिए 11 दस्तावेजों में से एक दस्तावेज़ की अनिवार्यता तय की है। ये दस्तावेज़ में जन्म प्रमाण पत्र, पासपोर्ट, सरकारी कर्मचारियों या पेंशनभोगियों द्वारा जारी पेंशन भुगतान आदेश, स्थायी निवास प्रमाण पत्र, वन अधिकार प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र, परिवार रजिस्टर, भूमि या घर आवंटन प्रमाण पत्र आदि शामिल हैं। विपक्ष का कहना है कि अधिकांश ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोग इन दस्तावेज़ों को नहीं रखते हैं, और यह प्रक्रिया लाखों लोगों को मतदाता सूची से बाहर कर सकती है।

विपक्ष के आरोप: दस्तावेज़ों की अनुपस्थिति को लेकर चिंता

राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता तेजस्वी यादव ने इस पर विरोध जताते हुए कहा कि केंद्र सरकार के अनुसार, केवल दो से तीन प्रतिशत लोग ही इन दस्तावेज़ों को रखते हैं। यादव ने कहा, “यह स्पष्ट रूप से एक षड्यंत्र है, जिसका उद्देश्य करोड़ों लोगों को मतदाता सूची से बाहर करना है। संविधान ने सभी नागरिकों को वोट देने का अधिकार दिया है।”

उनकी बातों का समर्थन कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, एनसीपी (शरद पवार), शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट), और वाम दलों ने भी किया है। उनका कहना है कि यह संशोधन प्रक्रिया चुनावी फायदा उठाने के लिए एक राजनीतिक साजिश है।

चुनाव आयोग का जवाब: बिना दस्तावेज़ के सत्यापन की प्रक्रिया

विपक्ष की आलोचनाओं का जवाब देते हुए, चुनाव आयोग ने एक नया निर्देश जारी किया है, जिसमें कहा गया कि यदि मतदाता आवश्यक दस्तावेज़ों को प्रस्तुत नहीं करते हैं, तो भी उनका सत्यापन किया जा सकता है। चुनाव आयोग के इस नए फैसले के अनुसार, निर्वाचक रजिस्ट्रार अधिकारी (ERO) को अब स्थानीय जांच के आधार पर सत्यापन करने का अधिकार मिलेगा।

चुनाव आयोग द्वारा जारी किए गए एक पोस्टर में यह स्पष्ट किया गया है कि अगर किसी मतदाता के पास दस्तावेज़ या फोटो उपलब्ध नहीं हैं, तो वह केवल एन्यूमरेशन्स फॉर्म भरकर बूथ लेवल अधिकारी (BLO) को जमा कर सकता है। इसके बाद, निर्वाचक रजिस्ट्रार अधिकारी स्थानीय स्तर पर जाकर इन मतदाताओं की जांच करेंगे और सत्यापन प्रक्रिया पूरी करेंगे।

स्थानीय जांच की प्रक्रिया: कैसे होगा सत्यापन?

चुनाव आयोग के सूत्रों के अनुसार, निर्वाचक रजिस्ट्रार अधिकारी उन क्षेत्रों में जाएंगे जहां मतदाताओं ने दस्तावेज़ प्रस्तुत नहीं किए हैं। वे स्थानीय लोगों से बातचीत करेंगे और यह सुनिश्चित करेंगे कि जो व्यक्ति फॉर्म भर रहा है, वह 18 वर्ष से अधिक आयु का है। इसके साथ ही, उनके निवास का पता, समयावधि और स्थानीय निवासियों से पूछताछ करके सत्यापन किया जाएगा। अगर अन्य दस्तावेज़ उपलब्ध होंगे, तो उनका भी सत्यापन किया जाएगा।

यह प्रक्रिया सुनिश्चित करेगी कि जिन लोगों के पास दस्तावेज़ नहीं हैं, वे भी मतदाता सूची में शामिल हो सकें, बशर्ते वे अन्य सबूत प्रदान करें।

मतदाता पंजीकरण की स्थिति और समय सीमा

चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, अब तक बिहार में 1.21 करोड़ मतदाताओं ने एन्यूमरेशन्स फॉर्म भरे हैं, जिनमें से 23.9 लाख फॉर्म अपलोड किए जा चुके हैं। इन फॉर्म्स को 25 जुलाई तक जमा करना आवश्यक है। चुनाव आयोग ने यह भी स्पष्ट किया है कि 2003 के विशेष गहन संशोधन में शामिल 4.96 करोड़ मतदाताओं को कोई अतिरिक्त दस्तावेज़ प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं होगी।

चुनाव आयोग ने आश्वासन दिया है कि इस प्रक्रिया को पूरी पारदर्शिता के साथ किया जाएगा और सभी योग्य नागरिकों को मतदाता सूची में शामिल किया जाएगा। आयोग ने कहा कि यह प्रक्रिया पूरी तरह से निष्पक्ष है और इसमें किसी भी प्रकार की पक्षपाती कार्यवाही नहीं की जाएगी।

बिहार विधानसभा चुनाव: क्या है इस संशोधन का महत्व?

बिहार विधानसभा चुनावों के निकट आने के साथ ही, विशेष गहन संशोधन (SIR) प्रक्रिया अत्यधिक महत्वपूर्ण हो जाती है। यदि यह प्रक्रिया बिना किसी बदलाव के जारी रहती है, तो विपक्षी दलों को चिंता है कि यह लाखों मतदाताओं को मतदाता सूची से बाहर कर सकती है, खासकर उन लोगों को जिनके पास आवश्यक दस्तावेज़ नहीं हैं। हालांकि, चुनाव आयोग के द्वारा दिया गया आश्वासन कि बिना दस्तावेज़ के भी सत्यापन किया जाएगा, विपक्ष की चिंताओं को कुछ हद तक शांत कर सकता है।

चुनाव आयोग के द्वारा उठाए गए इस कदम के बाद, यह देखने की बात होगी कि स्थानीय स्तर पर सत्यापन कैसे होता है और इसकी पारदर्शिता कितनी मजबूत है। विपक्ष की चिंता यह है कि यदि इस प्रक्रिया में कोई भी गलतफहमी या पक्षपाती कार्रवाई होती है, तो यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया को खतरे में डाल सकता है। दूसरी ओर, चुनाव आयोग का यह निर्णय यह सुनिश्चित करता है कि बिना दस्तावेज़ों के भी पात्र मतदाता चुनावी प्रक्रिया में भाग ले सकें।

अब सभी की निगाहें इस पर होंगी कि चुनाव आयोग इस प्रक्रिया को किस तरह से निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से लागू करता है। इस समय, बिहार के मतदाता इस प्रक्रिया को लेकर जागरूक हैं और हर कदम की निगरानी कर रहे हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी योग्य मतदाता अपनी मतदान प्रक्रिया में भाग ले सकें।


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