KKN गुरुग्राम डेस्क | भारतीय खगोल विज्ञान और सौर अनुसंधान के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक अवसर के रूप में, इंटरनेशनल सोलर कॉन्फ्रेंस 2025 का आयोजन किया गया है। यह सम्मेलन भारतीय सौर भौतिकी के जन्म और विकास का उत्सव है और कोडईकनाल सोलर ऑब्जर्वेटरी (KSO) की 125वीं वर्षगांठ को समर्पित है।
1899 में स्थापित, KSO भारत में सौर अनुसंधान की नींव है और सौर खगोल भौतिकी के विकास में अग्रणी भूमिका निभा रहा है। इस अवसर पर, भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (IIA), जो विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) के अधीन एक स्वायत्त संस्थान है, ने “सूर्य, अंतरिक्ष मौसम और सौर-तारकीय संबंध” विषय पर एक भव्य सम्मेलन का आयोजन किया।
कोडईकनाल सोलर ऑब्जर्वेटरी (KSO) ने पिछले 125 वर्षों में सौर अनुसंधान के क्षेत्र में असाधारण योगदान दिया है। यह सौर गतिविधियों, जैसे सूर्य के धब्बे (sunspots), सौर ज्वालाएं (solar flares), और कोरोनल मास इजेक्शन (coronal mass ejections), का गहन अध्ययन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है।
प्रो. अन्नपूर्णी सुब्रमण्यम, निदेशक, IIA, ने इस ऐतिहासिक उपलब्धि पर कहा:
“यह सम्मेलन भारतीय सौर खगोल विज्ञान और सौर भौतिकी के विकास का उत्सव है। दुनिया भर के विशेषज्ञ यहां इकट्ठा हुए हैं, जो सूर्य और अंतरिक्ष मौसम से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करेंगे।”
KSO ने सौर भौतिकी की मजबूत नींव रखी और भारत के सौर अनुसंधान के इतिहास को समृद्ध किया है।
बेंगलुरु, कर्नाटक में 20 से 25 जनवरी तक आयोजित इस सम्मेलन में विश्वभर के वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने भाग लिया। इस दौरान सौर अनुसंधान और अंतरिक्ष मौसम से जुड़े प्रमुख विषयों पर चर्चा हुई।
सम्मेलन में KSO के ऐतिहासिक फोटो डेटा को डिजिटाइज करने की परियोजना को भी सराहा गया। यह डेटा, जो पिछले 100 वर्षों से अधिक समय का है, सौर गतिविधियों और उनके दीर्घकालिक प्रभावों का अध्ययन करने के लिए अमूल्य है।
प्रो. अभय करंदीकर, सचिव, DST, ने इस पहल की सराहना करते हुए कहा:
“KSO के ऐतिहासिक डेटा का डिजिटलीकरण वैज्ञानिक समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। यह भविष्य की पीढ़ियों को अनुसंधान के लिए उपयोगी होगा और IIA के योगदान को और अधिक मजबूत बनाएगा।”
डिजिटलीकरण के इस प्रयास से सौर अनुसंधान के क्षेत्र में नई संभावनाओं के द्वार खुलेंगे।
इस सम्मेलन में भारत के अंतरिक्ष आधारित सौर अनुसंधान मिशन, आदित्य-एल1 पर भी चर्चा हुई। यह ISRO का पहला सौर मिशन है, जिसका उद्देश्य सूर्य की कोरोना, सौर हवाएं (solar winds), और उनके पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र पर प्रभावों का अध्ययन करना है। इस मिशन में IIA की भूमिका को भी सराहा गया।
पैंगोंग त्सो, लद्दाख के पास प्रस्तावित नेशनल लार्ज सोलर टेलीस्कोप (NLST) की परियोजना भी चर्चा में रही। यह टेलीस्कोप अत्याधुनिक तकनीक से लैस होगा और सूर्य के उच्च-रिज़ॉल्यूशन अवलोकन प्रदान करेगा। यह परियोजना सौर भौतिकी के क्षेत्र में नए आयाम स्थापित करेगी।
सम्मेलन के दौरान, ISRO के पूर्व चेयरमैन और IIA की गवर्निंग काउंसिल के अध्यक्ष ए.एस. किरण कुमार ने सौर अनुसंधान में ISRO की क्षमताओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने वैज्ञानिक समुदाय को नए उपकरणों और विचारों के साथ आने की चुनौती दी।
उन्होंने कहा:
“ISRO के पास सौर अनुसंधान को अंतरिक्ष से समर्थन देने की पूरी क्षमता है। अब समय आ गया है कि वैज्ञानिक नए उपकरण और तकनीकी विचारों के साथ आगे आएं।”
ISRO की भागीदारी और भारत का सौर अनुसंधान के प्रति बढ़ता ध्यान, इस क्षेत्र में नई ऊंचाइयों को छूने का वादा करता है।
तमिलनाडु के खूबसूरत हिल स्टेशन कोडईकनाल में स्थित, KSO का स्थान सौर अवलोकन के लिए आदर्श है। आधुनिक उपकरणों से लैस यह वेधशाला कई प्रमुख खोजों में सहायक रही है, जैसे:
KSO के लंबे समय तक किए गए अवलोकनों ने सूर्य की गतिविधियों और उनके प्रभावों को समझने में वैज्ञानिकों की मदद की है।
इंटरनेशनल सोलर कॉन्फ्रेंस ने सौर भौतिकी में वैश्विक सहयोग के महत्व को रेखांकित किया। दुनिया भर के विशेषज्ञों ने इस मंच पर अपने विचार और खोजें साझा कीं। यह सम्मेलन न केवल सौर अनुसंधान के क्षेत्र में चुनौतियों को समझने का अवसर देता है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वैज्ञानिक नवाचार को भी बढ़ावा देता है।
कोडईकनाल सोलर ऑब्जर्वेटरी (KSO) की 125वीं वर्षगांठ केवल उसके ऐतिहासिक योगदान का जश्न नहीं है, बल्कि सौर अनुसंधान के उज्ज्वल भविष्य की ओर एक कदम है। KSO ने भारतीय सौर भौतिकी की नींव रखी है और वैश्विक परियोजनाओं में योगदान देकर इस क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभाई है।
IIA, ISRO, और वैश्विक वैज्ञानिक समुदाय के समर्थन से, भारत सौर भौतिकी में नई खोजों के लिए तैयार है। जैसा कि प्रो. अन्नपूर्णी सुब्रमण्यम ने कहा:
“यह सम्मेलन सौर अनुसंधान के विकास और उसकी अपार संभावनाओं का प्रतीक है।”
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