उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदाओं का कहर लगातार जारी है। राज्य हर साल भारी बारिश, भूस्खलन और बादल फटने जैसी घटनाओं से जूझता है। शुक्रवार देर रात Chamoli Cloudburst ने थराली क्षेत्र को बुरी तरह प्रभावित किया। अचानक हुई भारी बारिश से पानी और मलबा तेज़ी से घरों, दुकानों और सरकारी परिसरों में घुस गया। इस घटना ने लोगों में दहशत पैदा कर दी और बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ।
थराली में बादल फटने से तबाही
चमोली जिले के थराली में बादल फटने से हालात बेहद खराब हो गए। तेज बारिश का पानी और मलबा लोगों के घरों व दुकानों में घुस आया। तहसील परिसर और उपजिलाधिकारी के आवास तक मलबे से भर गए। कई मकान ढह गए, गाड़ियां बह गईं और सड़कें टूटकर बर्बाद हो गईं।
सगवाड़ा गांव में मलबा एक घर में घुस गया। इसमें एक लड़की दब गई और एक अन्य व्यक्ति लापता हो गया। प्रशासन को राहत कार्य में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा क्योंकि रास्ते अवरुद्ध थे और बारिश लगातार जारी थी।
अलकनंदा नदी का जलस्तर खतरे के करीब
Alaknanda River Flood की स्थिति भी गंभीर हो गई। शनिवार सुबह केंद्रीय जल आयोग के अनुसार अलकनंदा का जलस्तर सुबह 7 बजे 462.74 मीटर था। केवल दो घंटे में यह 464 मीटर तक पहुँच गया, जो चेतावनी स्तर से ऊपर था।
गंगा नदी का जलस्तर भी 461.30 मीटर तक पहुँच गया। यह खतरे के निशान से महज 70 सेंटीमीटर कम था। प्रशासन ने तुरंत नदी किनारे जाने पर पाबंदी लगा दी और आसपास की इमारतों को खाली कराया गया।
लोगों की सुरक्षा के लिए उठाए कदम
अलकनंदा का जलस्तर बढ़ने से नदी किनारे के घर असुरक्षित हो गए। प्रशासन ने लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाना शुरू कर दिया। नए पुल पर आवाजाही बंद कर दी गई। टोडेश्वर टापू पूरी तरह डूब गया।
स्थानीय प्रशासन ने आपदा प्रबंधन टीमों को तैनात किया। पुलिस और स्वयंसेवक लगातार लोगों को सुरक्षित निकालने में लगे रहे।
श्रद्धालुओं के लिए मुश्किल हालात
रुद्रप्रयाग के संगम स्थल पर भी हालात बिगड़ गए। अलकनंदा और मंदाकिनी का मुख्य संगम हिस्सा पानी में डूब गया। गंगा स्नान और पूजा करने आए श्रद्धालुओं को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा।
चेतावनी के बावजूद कई श्रद्धालु बढ़े हुए जलस्तर में पूजा-अर्चना करते दिखे। इससे उनकी जान को खतरा पैदा हो गया। रामकुंड, जिसे भगवान राम की तपस्थली माना जाता है, भी पूरी तरह गंगा में डूब गया।
दहशत में स्थानीय लोग
तेज़ बहाव और लगातार बढ़ते जलस्तर से लोग दहशत में हैं। पिछली विनाशकारी आपदाओं की यादें लोगों को परेशान कर रही हैं। ग्रामीणों ने रातें जागकर गुजारीं। कई परिवार ऊँचे इलाकों में रिश्तेदारों के घर चले गए। किसान अपनी फसलें डूबने की आशंका से परेशान रहे।
प्रशासन की तत्परता
Chamoli Cloudburst के बाद जिला प्रशासन ने राहत कार्य तेज़ किया। प्रभावित इलाकों से मलबा हटाने और लोगों को सुरक्षित स्थानों तक पहुँचाने की कोशिशें जारी रहीं। स्वास्थ्य टीमों को अलर्ट पर रखा गया।
केंद्रीय जल आयोग लगातार जलस्तर पर नज़र बनाए रहा। आपदा प्रबंधन कंट्रोल रूम से अपडेट दिए जा रहे थे। हेलीकॉप्टर भी ज़रूरत पड़ने पर एयरलिफ्ट के लिए तैयार रखे गए।
जलवायु परिवर्तन और उत्तराखंड की चुनौतियाँ
उत्तराखंड बार-बार प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित हो रहा है। विशेषज्ञ मानते हैं कि Uttarakhand Cloudburst 2025 जैसी घटनाओं की संख्या जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ रही है। बढ़ते तापमान और अनियमित बारिश पैटर्न ने खतरे को और गहरा कर दिया है।
हर साल मानसून में राज्य को जान-माल और बुनियादी ढांचे का बड़ा नुकसान होता है। सड़कें टूटती हैं, पुल बह जाते हैं और गाँव कट जाते हैं।
बचाव और जागरूकता की ज़रूरत
विशेषज्ञों का मानना है कि आपदा से निपटने के लिए बेहतर तैयारी और जागरूकता जरूरी है। सुरक्षित मकान, मजबूत तटबंध और वनों की सुरक्षा पर ध्यान देना होगा। स्थानीय लोगों को निकासी प्रक्रिया के बारे में शिक्षित करना भी अहम है।
इस बार भी समय पर निकासी से कई जानें बचीं, लेकिन संपत्ति का नुकसान बहुत बड़ा हुआ।
Chamoli Cloudburst और Alaknanda River Flood ने एक बार फिर उत्तराखंड की नाजुक स्थिति को उजागर कर दिया। पानी और मलबे से घर, दुकानें और सरकारी भवन तबाह हुए। श्रद्धालुओं के लिए पूजा और स्नान मुश्किल बन गया और स्थानीय लोग भयभीत रहे।
हालांकि प्रशासन ने तेज़ी से राहत कार्य शुरू किए, लेकिन यह साफ है कि उत्तराखंड को लंबे समय तक आपदा प्रबंधन और जलवायु अनुकूल विकास पर ध्यान देना होगा। जब तक स्थायी समाधान नहीं निकलेगा, तब तक राज्य हर मानसून ऐसी त्रासदियों से जूझता रहेगा।
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