पाकिस्तान में अहमदिया के स्तित्व को लेकर छिड़ी वहस

मीनार और गुबंद तोड़ने से भड़का असंतोष

KKN न्यूज ब्यूरो। इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में पिछले शुक्रवार को अहमदिया समुदाय के 67 साल पुराने धार्मिक स्थल की मीनार और गुंबद को तोड़ दिया गया है। इसके बाद से यह चर्चा जोर पकड़ने लगा है कि अहमदिया समुदाय मुसलमान है या नहीं ?  जमात-ए-अहमदिया के एक अधिकारी आमिर महमूद ने मीनार तोड़ने की जानकारी मीडिया से साझा की है। आमिर महमूद ने बताया कि लाहौर से करीब 130 किमी दूरी पर फैसलाबाद के पुलिस अधिकारियों ने मीनारों को ध्वस्त कर दिया है। बताया कि पुलिस अधिकारी ने ध्वस्त हुए मीनार का मलबा भी उठा कर अपने साथ ले गए हैं। महमूद ने बताया कि इस मीनार को 1956 में बनाया गया था। पिछले साल से कट्टरपंथी इसे ढहाने की लगातार धमकी दे रहे थे। उनके मुताबिक इस साल अब तक करीब 42 अहमदिया स्थलों को अपवित्र किया जा चुका है। इनमें से ज्यादातर घटनाएं पंजाब की है।

पाकिस्तान में अहमदिया गैर मुस्लिम

बतातें चलें कि पाकिस्तान समेत पूरे दुनिया में रहने वाले अहमदिया खुद को मुस्लिम मानते हैं। लेकिन पाकिस्तान की संसद ने 1974 में समुदाय को गैर-मुस्लिम घोषित कर दिया है। इसके करीब एक दशक बाद पाकिस्तान में अहमदिया समुदाय को खुद को मुस्लिम कहने या इस धर्म से जुड़ी किसी भी चीज का पालन करने पर बैन लगा दिया गया है। इसमें कुरान की आयतें लिखना,  मस्जिद या गुंबद वाले धार्मिक स्थल बनाना जैसी अन्य बातें शामिल है। लाहौर हाईकोर्ट के फैसले के मुताबिक 1984 में जारी अध्यादेश से पहले बनाए गए अहमदिया पूजा स्थल वैध है। लिहाजा, उन्हें गिराया नहीं जाना चाहिए। अहमदियों के ज्यादातर धार्मिक स्थलों को पाकिस्तान के तहरीक-ए-लब्बैक (TLP) के कार्यकर्ताओं ने ध्वस्त किया है। टीएलपी का मानना है कि अहमदिया लोगो का स्थल मस्जिद जैसा होता हैं और उनमें गुम्बद बना रहता है। लिहाजा, यह ठीक नहीं हैै।

कौन है तहरीक-ए-लब्बैक

वर्ष 2017 में तहरीक-ए-लब्बैक को पाकिस्तान की खादिम हुसैन रिजवी ने स्थापित की थी। खादिम हुसैन रिजवी पाकिस्तान के धार्मिक विभाग के कर्मचारी हुआ करते थे और लाहौर की एक मस्जिद के मौलवी भी थे। कहा जाता है कि वर्ष 2011 में जब पंजाब पुलिस के एक गार्ड मुमताज कादरी ने गवर्नर सलमान तासीर की हत्या कर दी थी, तब उस गार्ड ने मुमताज कादरी का समर्थन किया था। इसके बाद पाकिस्तान की सरकार ने खादिम हुसैन रिजवी को पंजाब के धार्मिक विभाग की नौकरी से निकाल दिया था।

पाकिस्तान ने तहरीक-ए-लब्बैक पर लगाया प्रतिबंध

बतातें चलें कि वर्ष 1974 से ही पाकिस्तान में अहमदिया को मुस्लिम नहीं मानने का प्रचलन शुरू हो गया था। साल 1974 में पाकिस्तान में दंगे भड़क गया था। इसमें अहमदिया समुदाय के करीब 27 लोगों की हत्या हो गई थी। इस घटना के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने अहमदिया मुसलमानों को ‘नॉन-मुस्लिम माइनॉरिटी’ बताया था। उस समय इसका अहमदिया समुदाय के लोगों ने खूब विरोध किया। हालांकि, बाद में पाकिस्तान दंड संहिता की धारा 298 के जरिए अहमदिया को मुस्लिम कहना जुर्म करार दे दिया गया। अगर कोई अहमदिया खुद को मुस्लिम बताता है तो उसे 3 साल तक की सजा हो सकती है। वर्ष 2002 में अहमदिया लोगों के लिए पाकिस्तान सरकार ने अलग वोटर लिस्ट प्रिंट करवाई। इसमें अहमदिया को गैर-मुस्लिम माना गया। आज आलम ये है कि पाकिस्तान में अहमदिया समुदाय के लोगों का कब्रिस्तान से लेकर मस्जिद तक अलग है।

किसको कहतें हैं अहमदिया

साल 1889 में पंजाब के लुधियाना जिले के कादियान गांव में मिर्जा गुलाम अहमद ने अहमदिया समुदाय की शुरुआत की थी। उन्होंने एक बैठक बुलाकर खुद को खलीफा घोषित कर दिया था। उन्होंने शांति, प्रेम, न्याय और जीवन की पवित्रता जैसे शिक्षाओं पर जोर दिया। इसके बाद यह माना गया कि मिर्जा गुलाम अहमद ने इस्लाम के अंदर पुनरुत्थान की शुरुआत की है। कादियान गांव में जन्में मिर्जा गुलाम अहमद ने अहमदिया समुदाय की स्थापना की थी। लिहाजा कालांतर में अहमदिया को कादियानी भी कहा जाने लगा। अहमदिया की ऑफिशियल वेबसाइट के मुताबिक अल्लाह ने मिर्जा गुलाम अहमद को धार्मिक युद्ध और कट्टर सोच को समाप्त करके शांति बहाल करने के लिए धरती पर भेजा था।

अहमदिया पर पैगम्बर को नहीं मानने का है आरोप

इधर, पाकिस्तान समेत पूरे दुनिया में इस्लाम को मानने वाले अहमदिया समुदाय के लोगों पर यह आरोप लगाते हैं कि अहमदिया लोग मोहम्मद साहब को आखिरी पैगंबर नहीं मानते हैं। जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के राष्ट्रीय सचिव मौलाना नियाज फारूकी ने पिछले दिनों मीडिया को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि ‘अहमदिया के साथ मुसलमान शब्द जोड़ना ही गलत है। सारी दुनिया में मुस्लिमों के हर तबके ने अहमदिया को गैर-मुस्लिम माना है। इसकी वजह बाततें हुए मौलाना नियाज फारूकी कहतें है कि पैगंबर मोहम्मद हमारे आखिरी नबी हैं और जो उन्हें आखिरी नबी नहीं मानता है, वह काफिर है।’ नतीजा, आज पूरे दुनिया में इस्लाम को मानने वाले अहमदिया समुदाय को मुसलमान नहीं मानते हैं।

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