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शंकराचार्य और रामानुजाचार्य की जयंती पर उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने किया ट्वीट

भारत के उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने मंगलवार को भारतीय दर्शन में अध्यात्म परंपरा के महान दार्शनिक शंकराचार्य और रामानुजाचार्य की जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुये उनके दर्शन को सार्वभौमिक रूप से प्रासंगिक बताया। उपराष्ट्रपति ने अपने संदेश में कहा कि भारत की महान आध्यात्मिक परम्परा के मूर्धन्य प्रतिनिधि, ब्रह्म और आत्मा के अद्वैत दर्शन के प्रणेता जगतगुरू आदि शंकराचार्य और विशिष्टाद्वैत दर्शन के प्रणेता, स्वामी रामानुजाचार्य की जयंती पर उनकी पुण्य स्मृति को कोटिशः नमन करता हूं।

उन्होंने और भी कई ट्वीट किये

आदि शंकराचार्य के कुछ अनमोल विचार…

  • मंदिर वही पहुंचता है जो धन्यवाद देने जाता हैं, मांगने नहीं।
  • आनंद उन्हें मिलता है जो आनंद कि तलाश नहीं कर रहे होते हैं।
  • मोह से भरा हुआ इंसान एक सपने की तरह है, यह तब तक ही सच लगता है जब तक आप अज्ञान की नींद में सो रहे होते हैं। जब नींद खुलती है तो इसकी कोई सत्ता नही रह जाती है।
  • जिस तरह एक प्रज्वलित दीपक के चमकने के लिए दूसरे दीपक की जरुरत नहीं होती है। उसी तरह आत्मा जो खुद ज्ञान स्वरूप है उसे और किसी ज्ञान कि आवश्यकता नही होती है, अपने खुद के ज्ञान के लिए।
  • तीर्थ करने के लिए कहीं जाने की जरूरत नहीं है। सबसे अच्छा और बड़ा तीर्थ आपका अपना मन है, जिसे विशेष रूप से शुद्ध किया गया हो।
  • जब मन में सच जानने की जिज्ञासा पैदा हो जाए तो दुनिया की चीजे अर्थहीन लगती हैं।
  • धर्म की किताबे पढ़ने का उस वक़्त तक कोई मतलब नहीं, जब तक आप सच का पता न लगा पाए। उसी तरह से अगर आप सच जानते है तो धर्मग्रंथ पढ़ने कि कोइ जरूरत नहीं है। सत्य की राह पर चले।
  • हर व्यक्ति को यह समझना चाहिए कि आत्मा एक राजा के समान है जो शरीर, इंद्रियों, मन, बुद्धि से बिल्कुल अलग है। आत्मा इन सबका साक्षी स्वरुप है।
  • अज्ञान के कारण आत्मा सीमित लगती है, लेकिन जब अज्ञान का अंधेरा मिट जाता है, तब आत्मा के वास्तविक स्वरुप का ज्ञान हो जाता है, जैसे बादलों के हट जाने पर सूर्य दिखाई देने लगता है।
  • एक सच यह भी है की लोग आपको उसी वक्त तक याद करते हैं जब तक सांसें चलती हैं। सांसों के रुकते ही सबसे करीबी रिश्तेदार, दोस्त, यहां तक की पत्नी भी दूर चली जाती है।
  • आत्मसंयम क्या है? आंखो को दुनिया की चीजों कि ओर आकर्षित न होने देना और बाहरी ताकतों को खुद से दूर रखना।
  • सत्य की कोई भाषा नहीं है। भाषा सिर्फ मनुष्य का निर्माण है, लेकिन सत्य मनुष्य का निर्माण नहीं आविष्कार है। सत्य को बनाना या प्रमाणित नहीं करना पड़ता, सिर्फ उघाड़ना पड़ता है।

This post was published on अप्रैल 28, 2020 13:17

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Published by
Shaunit Nishant

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