KKN न्यूज ब्यूरो। बिलकिस बानो मामले के 11 दोषियों को जेल से रिहा करने का गुजरात सरकार के फैसला को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया है। इस फैसला के बाद गैंगरेप और 7 लोगों की हत्या के सभी दोषी एक बार फिर से कानून के शिकंजे में आ गए है। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बीवी नागरत्ना की बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा कि गुजरात की सरकार के पास दोषियों की सजा माफ करने का अधिकार नहीं है। कहा कि दोषियों को महाराष्ट्र में सजा मिली थी। लिहाजा, रिहाई पर फैसला देने का अधिकार भी महाराष्ट्र सरकार की है।
जनवरी 2008 में मुंबई की सीबीआई स्पेशल कोर्ट ने बिलकिस बानो के दोषियों को उम्रकैद की सजा दी थी। इसके 14 साल बाद 15 अगस्त 2022 को गुजरात सरकार की माफी नीति के तहत सभी दोषियों को गोधरा कारागार से रिहा कर दिया गया था। जिन लोगो को रिहा किया था, उनमें राधेश्याम शाह, जसवंत नाई, गोविंद नाई, शैलेश भट्ट, विपिन चंद्र जोशी, राजूभाई सोनी, केशरभाई वोहानिया, प्रदीप मोढ़डिया, बाकाभाई वोहानिया, मितेश भट्ट और रमेश चांदना शामिल हैं।
वह 27 फरवरी 2002 का दिन था। अयोध्या से लौट रही साबरमती एक्सप्रेस के कुछ डिब्बों को गुजरात के गोधरा रेलवे स्टेशन पर आग के हवाले कर दिया गया। इस हादसे में 59 कारसेवकों की जलकर मौत हो गई थी। इसके बाद पूरे गुजरात में दंगा भड़क गया था। बिलकिस बानो गुजरात के दाहोद जिले के रंधिकपुर गांव की रहने वाली हैं। हमले से बचने के लिए बिलकिस अपनी साढ़े तीन साल की बेटी सालेहा और 15 दूसरे लोगों के साथ गांव छोड़कर चली गईं। उस समय बिलकिस की उम्र 21 साल थी और वह पांच महीने की गर्भवती थीं।
पीड़िता ने पुलिस को बताया कि 3 मार्च 2002 को वह छप्परवाड़ गांव पहुंची। बिलकिस का कहना है कि वह अपने परिवार के सभी सदस्यों के साथ खेत में छिपी थी। तभी तलवार और लाठियां लेकर आए 20-30 लोगों की भीड़ ने उनपर हमला कर दिया। दंगाईयों ने महिलाओं को बुरी तरह से पीटा और उनके साथ रेप किया। इनमें बिलकिस बानो की मां भी शामिल थीं। हमलावरो ने रंधिकपुर के 7 लोगों की बेरहमी से हत्या कर दी। इसमें बिलकिस की बेटी भी शामिल थी। हालांकि, इस हमले में छह लोग अपनी जान बचाकर भागने में कामयाब हो गए थे। बिलकिस बानो का कहना है कि इस हादसे के बाद कुछ घंटों तक वह बेहोश पड़ी रहीं। होश आने के बाद आसपास मौजूद लोगों ने उनकी मदद की। अपराधियों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने के लिए उन्हें नजदीकी लिमखेड़ा पुलिस स्टेशन ले जाया गया।
बिलकिस बानो और उनके समर्थकों ने न्याय के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी। आरोप है कि जघन्य अपराध होने के बावजूद पुलिस ने मामले को गंभीरता से नहीं लिया। शुरुआत में एफआईआर लिखने से मना कर दिया गया। बाद में एफआईआर लिखी गई। पर, ठीक से जांच नहीं की गई। कई रोज बाद मेडिकल जांच की गई। सबूतों से भी छेड़छाड़ की गई। हालांकि, यह भी सच है कि बाद में अपराधियों को बचाने के आरोप में तीन पुलिसवालों को तीन साल की सजा मिली थी।
घटना के करीब एक साल बाद गुजरात पुलिस ने केस की फाइल बंद कर दी। इसके बाद बिलकिस बानो ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) से गुहार लगाई। एनएचआरसी के हस्तक्षेप से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई। सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात पुलिस की क्लोजर रिपोर्ट को खारिज कर दिया और सीबीआई को पूरे मामले की नए सिरे से जांच करने का आदेश दिया। सीबीआई ने बिलकिस बानो के मारे गए परिवार के सदस्यों का शव कब्र से निकाल कर जांच शुरू कर दी। जांच में पुलिस की लापरवाही सामने आ गई। इसके बाद वर्ष 2004 में सीबीआई ने 18 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दायर किया। इस दौरान कुल 12 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया।
सीबीआई की जांच शुरू होते ही बिलकिस बानो और उनके परिवार को परेशान किया जाने लगा। उन्हें जान से मारने की धमकियां मिलने लगीं। इसका नतीजा ये हुआ है कि दो साल के भीतर बिलकिस बानो को करीब 20 बार अपना ठिकाना बदलना पड़ा। इस बीच बिलकिस बानो ने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई कि केस को गुजरात के बाहर किसी दूसरे राज्य में ट्रांसफर कर दिया जाये। अगस्त 2004 में मामला मुंबई के स्पेशल सीबीआई कोर्ट में आ गया।
सीबीआई कोर्ट में ट्रायल के दौरान बिलकिस बानो ने एक-एक आरोपी की पहचान कर ली। इसके बाद 21 जनवरी 2008 को मुंबई की सीबीआई स्पेशल कोर्ट ने गर्भवती महिला से रेप और हत्या के आरोप में 11 दोषियों को उम्रकैद की सजा सुना दी। कोर्ट ने सबूत के अभाव में सात अन्य लोगों को रिहा कर दिया। इनमें पांच पुलिसवाले और दो डॉक्टर भी शामिल थे। बतातें चले कि एक दोषी की ट्रायल के दौरान ही मौत हो गई थी। दोषियों ने सीबीआई कोर्ट के फैसले को मुंबई हाईकोर्ट में चुनौती दी। दिसंबर 2016 में मुंबई हाईकोर्ट ने 11 अपराधियों की सजा को बरकरार रखा।
करीब 14 साल से अधिक की सजा काट चुके एक सजायाफ्ता ने वर्ष 2022 में गुजरात हाईकोर्ट में रीमिशन के लिए याचिका दायर की। गुजरात हाईकोर्ट ने कहा इस मामले में रीमिशन का अधिकार महाराष्ट्र सरकार के पास है। क्योंकि, केस वहीं चल रहा है। सजायाफ्ता ने फिर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। मई 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को इस मामले में विचार करने का आदेश दिया। इसके बाद गुजरात सरकार ने सुजल मायात्रा की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया। समिति ने सभी दोषियों को रिहा करने का फैसला दे दिया। इसके बाद 15 अगस्त 2022 को सभी दोषियों को रिहा कर दिया था।
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