हम सभी भारत के निवासी हैं और भारत एक ऐसा देश है जहां किसी भी जाति-धर्म, संप्रदाय के लोगों को रहने की पूरी आजादी है। यहां रहने वाले लोगों को अपना पर्व-त्योहार धूम-धाम से मनाने की पूरी छूट है।
हिन्दू धर्म में पूरे साल पर्व-त्योहारों का क्रम लगा रहता है। जिसमे होली, दिवाली, छठ, दुर्गा पूजा और सरस्वती पूजा प्रमुख हैं। यहाँ हर त्योहार को बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है। विक्रम संवत कैलेंडर के अनुसार हमारा नया साल चैत्र से शुरू होकर फाल्गुन में समाप्त हो जाता है। लेकिन ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार नया साल जनवरी से शुरू होकर दिसम्बर मे खत्म होता है। विक्रम संवत कैलेंडर के अनुसार साल का अंत फाल्गुन माह के होली पर्व के साथ होता है और चैत्र की शुरुआत हो जाती है।
सरस्वती पूजा क्या है और कब मनाया जाता है? सरस्वती पूजा क्यों और कैसे मनाया जाता है? इस पूजा का महत्व। मूर्ति का विसर्जन।
सरस्वती पूजा एक धार्मिक पर्व है और इसे हम सालों से परंपरागत तौर पर मनाते आ रहे हैं। वसंत पंचमी का यह पर्व फाल्गुन से ठीक एक माह पहले माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। सरस्वती पूजा को वसंत पंचमी या श्री पंचमी के नाम से भी जाना जाता है।
सरस्वती पूजा का यह पर्व माँ शारदे के जन्म दिवस के रूप मे मनाया जाता है। माँ शारदे को ज्ञान, कला और संगीत की देवी कहा जाता है। इस दिन को काफी शुभ माना जाता है और किसी नये काम के शुरुआत के लिए इस दिन का खास महत्व होता है।
हर साल वसंत पंचमी के दिन माँ शारदे की बड़े ही धूम-धाम से पूजा-अर्चना की जाती है। ऐसी मान्यता है कि माँ को सफेद या पीला रंग काफी प्रिय है इसलिए उनका वस्त्र भी पीला या सफेद ही देखा जाता है। इस दिन माँ को पीले या सफेद रंग का फूल और मिठाईयां अर्पित की जाती है। माँ के चरणों मे गुलाल भी चढ़ाया जाता है। इस दिन श्वेत या पीले रंग के वस्त्र पहनने का भी प्रचलन है।
भारत के घर-घर मे माँ शारदे की पूजा की जाती है। चूंकि माँ शारदा विद्या की देवी है इसलिए विद्यार्थियों के लिये इस पर्व का और भी ज्यादा महत्व हो जाता है, सभी धर्म के लोग इस पर्व मे सम्मिलित होते हैं। आजकल हर शिक्षण संस्थानों मे बड़े ही धूम-धाम से यह पूजा की जाती है। यह पूजा हमारी संस्कृति का एक बहुत ही अहम हिस्सा है, जिसकी झलक हर जगह देखने को मिल जाती है। वैसे तो सरस्वती पूजा शांति का पर्व है लेकिन आजकल कुछ लोगों ने इस पर्व को भी अशांत कर दिया है। पूजा के दिन तेज आवाज मे लाउड-स्पीकर या डीजे बजाकर लोग शांत माहौल मे अशान्ति फैला रहे हैं।
सरस्वती पूजा के अगले दिन, माँ शारदे की मूर्ति को बड़े धूम-धाम के साथ नदी मे विसर्जित किया जाता है। विसर्जन के दिन लोग एक-दूसरे को अबीर-गुलाल लगाते है और इसी दिन से होली के उत्सव का भी शुभारंभ हो जाता है।
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