नई दिल्ल्ाी। सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने अडल्ट्री या व्यभिचार के क़ानून को रद्द कर दिया है। गुरुवार की सुबह एक ऐतिहासिक फ़ैसले में 150 साल पुराने इस कानून का अब कोई औचित्य नहीं रहा। इटली में रहने वाले एक प्रवासी भारतीय जोसेफ़ शाइन के जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने यह फ़ैसला सुनाया। न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि ऐसा कोई भी क़ानून जो व्यक्ति कि गरिमा और महिलाओं के साथ समान व्यवहार को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है, वह संविधान के ख़िलाफ़ है। भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी की धारा 497 को अप्रासंगिक घोषित करते हुए जस्टिस मिश्रा ने कहा कि अब यह कहने का वक़्त आ गया है कि शादी के बाद पति, पत्नी का मालिक नहीं होता है। स्त्री या पुरुष में से किसी पर भी एक की दूसरे पर सम्प्रभुता सिरे से ग़लत है।
क्या था अडल्ट्री क़ानून
दरअसल, भारत में अडल्ट्री क़ानून 1860 में बना था। अब यह क़ानून लगभग 150 साल पुराना हो चुका था। इसके तहत आईपीसी की धारा 497 में इसे परिभाषित करते हुए कहा गया था कि यदि कोई मर्द किसी दूसरी शादीशुदा औरत के साथ उसकी सहमति से शारीरिक संबंध बनाता है, तो उसके पति की शिकायत पर इस मामले में पुरुष को अडल्ट्री क़ानून के तहत आरोप लगाकर मुक़दमा चलाया जा सकता था। आरोप साबित होने पर आरोपित पुरुष को पांच साल की क़ैद और जुर्माना या फिर दोनों ही सज़ा का प्रवाधान था। हालांकि इस क़ानून में एक पेंच यह भी था कि अगर कोई शादीशुदा मर्द किसी कुंवारी या विधवा औरत से शारीरिक संबंध बनाता है तो वह अडल्ट्री के तहत दोषी नहीं माना जाता था। अदालत ने यह भी कहा की दो वयस्कों के बीच चार दीवारों के बीच क्या होता है, यह उनका निजी मामला है और यदि यह आपसी सहमति के आधार पर होता है, तो इसे अपराध नहीं माना जा सकता है।