श्रीकृष्ण जन्माष्टमी भगवान कृष्ण के जन्म दिवस के रूप में पूरे देश में धूमधाम से मनाई जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान कृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को आधी रात में हुआ था। इस अवसर पर मंदिरों को सजाया जाता है, भजन-कीर्तन होते हैं और भक्त विशेष पूजा-अर्चना करते हैं।
इस साल अष्टमी तिथि के हिसाब से जन्माष्टमी का पर्व 16 अगस्त 2025 को मनाया जाएगा। खास बात यह है कि इस बार गृहस्थ और वैष्णव संप्रदाय के लोग एक ही दिन व्रत रखेंगे।
अष्टमी तिथि की शुरुआत 15 अगस्त 2025 को रात 12:58 बजे होगी और यह 16 अगस्त 2025 को रात 9:34 बजे समाप्त होगी। पूजा का समय तय करते समय अष्टमी तिथि के साथ चन्द्रोदय और रोहिणी नक्षत्र को विशेष महत्व दिया जाता है।
इस साल 16 अगस्त को सुबह 8:08 बजे कृतिका नक्षत्र प्रारंभ होगा, जो 17 अगस्त की सुबह तक चलेगा। इसके बाद 17 अगस्त को सुबह 4:38 बजे रोहिणी नक्षत्र शुरू होगा, जो 18 अगस्त की सुबह 3:17 बजे तक रहेगा।
जन्माष्टमी पर चन्द्रोदय का समय इस साल 16 अगस्त को रात 11:32 बजे रहेगा। स्मार्त संप्रदाय के लोग चन्द्रोदय व्यापिनी अष्टमी में निशीथ काल के दौरान पूजा करते हैं। वहीं, वैष्णव परंपरा में उदयकाल के रोहिणी नक्षत्र के समय पूजा करने की परंपरा है। इस बार दोनों ही संप्रदाय एक ही दिन व्रत और पूजा करेंगे।
इस साल निशीथ काल में पूजा का सबसे शुभ समय 17 अगस्त की रात 12:04 बजे से 12:47 बजे तक रहेगा। पंचामृत स्नान का समय 12:25 AM निर्धारित है। इस स्नान के बाद भगवान कृष्ण को नए वस्त्र, आभूषण और विशेष भोग अर्पित किया जाएगा।
जन्माष्टमी का व्रत रखने वाले भक्त 17 अगस्त की सुबह 5:51 बजे व्रत का पारण करेंगे। व्रत के दौरान अन्न का सेवन नहीं किया जाता और फलाहार, दूध तथा अन्य व्रत-उपयुक्त आहार लिया जाता है।
भौगोलिक अंतर के कारण अलग-अलग शहरों में निशीथ काल के समय में हल्का बदलाव होता है। प्रमुख शहरों में पूजा का समय इस प्रकार है:
पुणे: 12:16 AM से 1:01 AM
नई दिल्ली: 12:04 AM से 12:47 AM
चेन्नई: 11:50 PM से 12:36 AM
जयपुर: 12:09 AM से 12:53 AM
हैदराबाद: 11:58 PM से 12:43 AM
गुड़गांव: 12:04 AM से 12:48 AM
मुंबई: 12:20 AM से 1:05 AM
नोएडा: 12:03 AM से 12:46 AM
इस दिन मंदिरों और घरों में भगवान कृष्ण की मूर्ति को नए वस्त्र और आभूषण पहनाए जाते हैं। फूलों और लाइट्स से सजावट की जाती है। पंचामृत से अभिषेक किया जाता है और माखन-मिश्री, मिठाई व फल भोग के रूप में अर्पित किए जाते हैं।
पूरी रात भजन-कीर्तन और श्रीकृष्ण के जीवन से जुड़े प्रसंगों का वाचन किया जाता है। कई जगह रासलीला और झांकियों का आयोजन भी होता है। महाराष्ट्र और अन्य राज्यों में अगले दिन दही हांडी उत्सव मनाया जाता है।
स्मार्त परंपरा के लोग चन्द्रोदय व्यापिनी अष्टमी के दौरान पूजा करते हैं, जबकि वैष्णव परंपरा रोहिणी नक्षत्र के उदयकाल को प्राथमिकता देती है। इस साल तिथि और नक्षत्र के विशेष संयोग के कारण दोनों परंपराएं एक ही दिन व्रत और पूजा करेंगी।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी केवल एक धार्मिक त्योहार नहीं, बल्कि आस्था और भक्ति का उत्सव है। सही तिथि, नक्षत्र और मुहूर्त में पूजा करने से सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है। इस साल 16 अगस्त को देशभर में एक साथ उत्सव मनाना भक्तों के लिए विशेष अवसर होगा।
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