योग गुरु बाबा रामदेव और पतंजलि आयुर्वेद को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। अदालत ने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) द्वारा दायर उस याचिका को समाप्त कर दिया है, जिसमें पतंजलि पर एलोपैथी को निशाना बनाकर भ्रामक विज्ञापन चलाने का आरोप लगाया गया था। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में पहले ही कई अहम आदेश दिए जा चुके हैं और याचिका का उद्देश्य पूरा हो चुका है।
यह मामला सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने सुना। बेंच ने साफ कहा कि कई आदेशों के बाद अब आगे सुनवाई की जरूरत नहीं है। साथ ही, अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि अगर भविष्य में किसी भी तरह की समस्या आती है, तो पक्षकार हाईकोर्ट का रुख कर सकते हैं।
बीते साल 27 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण के खिलाफ कोर्ट की अवमानना का मामला शुरू किया था। आरोप था कि पतंजलि ने कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन करते हुए विज्ञापन जारी रखे। हालांकि, अगस्त में दोनों ने बिना शर्त माफी मांगी, जिसके बाद अदालत ने कार्यवाही को समाप्त कर दिया था।
IMA ने आरोप लगाया था कि पतंजलि ने अपने विज्ञापनों में एलोपैथी को बदनाम करने और जनता को भ्रमित करने की कोशिश की। संगठन का कहना था कि ऐसे विज्ञापन न केवल मेडिकल प्रोफेशन की छवि को नुकसान पहुंचाते हैं, बल्कि मरीजों को गुमराह भी करते हैं। कोर्ट ने पहले ही इस मुद्दे पर कई निर्देश जारी किए थे, जिनके बाद अब केस को समाप्त किया गया।
सुप्रीम कोर्ट से राहत मिलने के बावजूद पतंजलि एक अन्य मामले में कानूनी पचड़े में है। जुलाई में दिल्ली हाईकोर्ट ने डाबर इंडिया की याचिका पर पतंजलि के विज्ञापनों को लेकर अंतरिम आदेश दिया था। डाबर ने आरोप लगाया था कि पतंजलि ने टीवी और प्रिंट में डाबर च्यवनप्राश के खिलाफ अपमानजनक विज्ञापन चलाए।
न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा की पीठ ने कहा कि डाबर द्वारा प्रस्तुत सामग्री प्रथम दृष्टया अपमान का स्पष्ट मामला बनाती है। कोर्ट ने पतंजलि को विवादित विज्ञापन बंद करने और उसमें संशोधन करने के निर्देश दिए।
हाईकोर्ट ने प्रिंट विज्ञापनों से “40 जड़ी-बूटियों से बने साधारण च्यवनप्राश से क्यों संतुष्ट हों?” पंक्ति हटाने का आदेश दिया। टीवी विज्ञापनों से भी “जिनको आयुर्वेद या वेदों का ज्ञान नहीं है…” और “तो साधारण च्यवनप्राश क्यों” जैसी पंक्तियों को हटाने को कहा गया। कोर्ट ने कहा कि बदलाव के बाद ही इन विज्ञापनों को प्रसारित किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला पतंजलि के लिए एक बड़ी कानूनी जीत है, क्योंकि अब यह मामला शीर्ष अदालत में बंद हो गया है। हालांकि, कंपनी को विज्ञापन से जुड़े नियमों का पालन करना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि भविष्य में किसी भी तरह की प्रतिस्पर्धात्मक या उपभोक्ता संरक्षण कानून की अवहेलना न हो।
पतंजलि भारत के FMCG और आयुर्वेद मार्केट में मजबूत पकड़ बनाए हुए है, लेकिन ऐसे हाई-प्रोफाइल मामलों में कानूनी स्पष्टता उसके ब्रांड इमेज और विकास के लिए अहम है।
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