सृजन घोटाला की जद में बिहार की राजनीति

शब्दो की वाण से तार तार हुआ माननीय की शाख

बिहार। बिहार की राजनीति इन दिनो सृजन घोटाले के जद में आ गई है। इसको लेकर पिछले कई दिनों से बिहार में राजनीति गरमाई हुई है। बिहार विधानसभा में विपक्ष का जोरदार हंगामा जारी है। विपक्ष मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी के इस्तीफे की मांग पर अड़ा रहा। इस बीच बयानवीर नेता एक दूसरे पर शब्दो के तीर चला रहें हैं। लिहाजा, माननीय की शाख तार- तार होने लगी है। आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने सरकार पर सृजन घोटाले की जांच में लीपापोती करने का आरोप लगाया है। दूसरी ओर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि कोई भी दोषी बचेगा नही। इसके अतिरिक्त राजद और जदयू के दूसरे पंक्ति में खड़ा नेताओं ने तो एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप की झड़ी लगा दी है। इस दौरान एक दूसरे के मर्यादा का ख्याल रखना भी जरुरी नही समझा जा रहा है।
क्या है सृजन घोटाला?
दरअसल, इन दिनों हर व्यक्ति यह जानने की कोशिश कर रहा है कि क्या है बिहार का 780 करोड़ का सृजन घोटाला। इस घोटाले में गिरफ्तार हुए एक नाज़िर महेश मण्डल की रहस्यमयी मौत के बाद इस घोटाले को दूसरा व्यापम भी बताया जाने लगा है। राज्य सरकार ने मामले की जांच सीबीआई को सौंपने का आदेश दे दिया है। हालांकि, अभी तक सीबीआई जांच शुरू नही हुई है। इस सच्चाई से भी इनकार नही किया जा सकता है।
इस पूरे घोटाले की सरगना या मास्टरमाइंड मनोरमा देवी को बताया जा रहा हैं। जिनका इस साल फ़रवरी में निधन हो चुका है। मनोरमा देवी की मौत के बाद उनकी बहू प्रिया और बेटा अमित कुमार इस घोटाले के सूत्रधार बने। प्रिया झारखण्ड कांग्रेस के वरिस्ठ नेता अनादि ब्रह्मा की बेटी हैं जो पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोध कांत सहाय के करीबी माने जाते हैं।
मनोरमा देवी और उनकी संस्था सृजन को शुरू के दिनों में कई आईएएस अधिकारियों का संरक्षण मिलता रहा। इसमें – अमिताभ वर्मा, गोरेलाल यादव, के पी रामैया भी शामिल हैं। गोरेलाल यादव के अनुसंशा पर ही दिसंबर 2003 में सृजन के बैंक खाते में सरकारी पैसा जमा करने का आदेश दिया गया था। उस समय बिहार की मुख्यमंत्री राबड़ी देवी थीं। रामैया ने 200 रुपये के महीने पर सबौर ब्लॉक में एक बड़ा जमीन का टुकड़ा सृजन को मुहैय्या कराया था।
इसके बाद किसी जिला अधिकारी के कार्यकाल में अगर सर्वाधिक सृजन के खाते में पैसा गया तो वो था, वीरेंद्र यादव। इनके कार्यकाल 2014 से 2015 के बीच करीब 285 करोड़ सृजन के खाते में गया। वीरेन्द्र भी लालू यादव के करीबी माने जाते हैं। अभी तक की जांच में ये पाया गया कि सरकारी राशि को सरकारी बैंक खाता में जमा करने के बाद तत्काल अवैध रूप से साजिश के तहत या तो जाली दस्तखत या बैंकिंग प्रक्रिया का दुरुपयोग कर ट्रांसफर कर लिया जाता था। जब भी किसी लाभार्थी को चेक के द्वारा सरकारी राशि का भुगतान किया जाता था तो उसके पूर्व ही अपेक्षित राशि सृजन द्वारा सरकारी खता में जमा कर दिया जाता था।
इस सरकारी राशि के अवैध ट्रांसफर में सृजन के सचिव मनोरमा देवी के अलावा, सरकारी पदाधिकारी, कर्मचारी और बैंक ऑफ़ बरोडा और इंडियन बैंक के पदाधिकारी शामिल होते थे। जिला प्रशासन से सम्बंधित बैंक खातों के पासबुक में एंट्री भी फ़र्ज़ी तरीके से की जाती थी। स्टेटमेंट ऑफ़ अकाउंट को बैंकिंग सॉफ्टवेयर से तैयार नहीं कर फ़र्ज़ी तरीके से तैयार किया जाता था।
मनोरमा देवी सृजन के खाते में जमा पैसा को बाजार में ऊंचे सूद पर देती थी या अपने मनपसंद लोगों को जमीन, व्यापार या अन्य धंधे में निवेश करने के लिए देती थी। साजिश में शामिल अधिकरियों का भी ख्याल रखा जाता था। उन्हें कमीशन या आभूषण दिए जाते थे। मनोरमा देवी के कुछ राजनेताओं से करीबी सम्बन्ध रहे हैं जिनमें बीजेपी के अब निलंबित विपिन शर्मा, पूर्व सांसद शहनवाज हुसैन और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह भी शामिल हैं। इन लोगों की नजदीकी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि ये उनके ऑफिसियल कार्यक्रम के अलावा निजी कार्यक्रम में नियमित रूप से शामिल होते रहते थे। पिछले साल नोटबन्दी के बाद सृजन के काम काज पर भी असर पड़ा. माना जा रहा है कि पैसा फंस जाने के कारण असल मुश्किलें शुरू हुईं और चेक बाउंस होने का सिलसिला शुरू हो गया। अमित, प्रिया, विपिन शर्मा इस पूरे घोटाले के बड़े राजदार माने जा रहें हैं।

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