KKN गुरुग्राम डेस्क | राजधानी दिल्ली के जाफरपुर कला इलाके में शुक्रवार सुबह तेज हवाओं के बीच एक बेहद दर्दनाक हादसा हुआ। यहां खड़खड़ी नहर गांव में एक खेत पर बने ट्यूबवेल के कमरे पर एक पुराना नीम का पेड़ गिर गया, जिससे वह कमरा पूरी तरह से ढह गया।
इस हादसे में एक महिला और उसके तीन मासूम बच्चों की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि महिला का पति गंभीर रूप से घायल हो गया। घटना के बाद पूरे इलाके में शोक और मातम का माहौल है।
स्थानीय लोगों के अनुसार, यह परिवार खेत पर बने ट्यूबवेल के कमरे में ठहरा हुआ था। सुबह लगभग 5 बजे के करीब तेज हवाएं चलने लगीं, और उसी दौरान एक बड़ा नीम का पेड़ अचानक गिर पड़ा, जो सीधे कमरे के ऊपर आ गिरा।
ग्रामीणों ने शोर सुनकर तुरंत मौके पर पहुंचकर मलबा हटाने की कोशिश की। लेकिन जब तक महिला और बच्चों को निकाला गया, तब तक उनकी मौत हो चुकी थी। घायल पति को तुरंत अस्पताल पहुंचाया गया, जहां उसका इलाज जारी है।
पुलिस द्वारा जारी प्रारंभिक रिपोर्ट के अनुसार, मृतकों में शामिल हैं:
एक महिला, उम्र लगभग 32 वर्ष
तीन मासूम बच्चे, जिनकी उम्र 2 से 8 वर्ष के बीच बताई जा रही है
महिला का पति गंभीर रूप से घायल है और उसे नजदीकी सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
घटना के बाद पूरे खड़खड़ी नहर गांव में मातम फैल गया है। ग्रामीणों ने प्रशासन से सवाल उठाया है कि इतने पुराने और खतरनाक पेड़ को हटाने की कोई व्यवस्था क्यों नहीं की गई थी। कई ग्रामीणों का कहना है कि इस पेड़ की हालत काफी समय से कमजोर थी और वह झुका हुआ भी था।
इस हादसे ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या दिल्ली के ग्रामीण इलाकों में प्राकृतिक आपदाओं के प्रति पर्याप्त सतर्कता बरती जा रही है? मौसम विभाग के अनुसार, शुक्रवार सुबह दिल्ली में तेज हवाओं की गति लगभग 40 किमी/घंटा थी, जिससे कई इलाकों में पेड़ गिरने की घटनाएं सामने आईं।
विशेषज्ञों का कहना है कि पुराने और बड़े पेड़, विशेषकर जिनकी जड़ें कमजोर हो चुकी हैं, वह तेज हवाओं में गिर सकते हैं। ऐसे में जरूरी है कि प्रशासन ऐसे पेड़ों की नियमित जांच कराए।
हादसे के बाद स्थानीय प्रशासन हरकत में आया है। सब डिविजनल मजिस्ट्रेट (SDM) ने मौके पर पहुंचकर निरीक्षण किया और हादसे की जांच के आदेश दिए हैं। साथ ही दिल्ली आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (DDMA) की ओर से भी कहा गया है कि जल्द ही ऐसे मामलों को रोकने के लिए नई गाइडलाइन्स जारी की जाएंगी।
प्रशासन द्वारा पीड़ित परिवार को आपदा राहत कोष से मुआवजा देने की प्रक्रिया शुरू की जा रही है।
यह कोई पहली घटना नहीं है जब दिल्ली के ग्रामीण या अर्ध-शहरी इलाकों में तेज हवाओं या तूफान के कारण पेड़ गिरने से जान-माल का नुकसान हुआ हो। पिछले तीन वर्षों में कई बार:
पेड़ गिरने से मकान ढहे हैं
अस्थायी संरचनाएं क्षतिग्रस्त हुई हैं
बिजली के खंभे गिरे हैं
इन घटनाओं से साफ है कि दिल्ली के ग्रामीण इलाकों में बुनियादी संरचनात्मक सुरक्षा की भारी कमी है।
पर्यावरण विशेषज्ञों ने लंबे समय से कहा है कि दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों में स्थित पुराने पेड़ों की सालाना जांच होनी चाहिए। विशेषकर ऐसे पेड़ जो घरों, खेतों या अन्य मानव-निर्मित संरचनाओं के नजदीक हों।
पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ. राकेश गुप्ता के अनुसार:
“नीम और पीपल जैसे पेड़ 50 साल से अधिक पुराने हो सकते हैं। यदि समय पर इनकी स्थिति का आकलन नहीं किया गया, तो वे खतरनाक बन सकते हैं।”
इस प्रकार के हादसों से बचने के लिए सरकार और आम जनता दोनों को मिलकर कार्य करना होगा। नीचे कुछ सुझाव दिए जा रहे हैं:
पुराने पेड़ों की स्थिति की निगरानी करें
प्रशासन को समय रहते सूचना दें
अस्थायी घरों या ट्यूबवेल कक्षों को मजबूत बनाएं
तेज हवाओं के समय बाहर रहने से बचें
खतरनाक पेड़ों की सूची बनाना
साल में कम से कम एक बार पेड़ों की सुरक्षा जांच
ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता अभियान चलाना
आपात स्थिति से निपटने के लिए हेल्पलाइन सेवा सुदृढ़ करना
जाफरपुर कला हादसा न सिर्फ एक परिवार की त्रासदी है, बल्कि यह पूरे समाज और प्रशासन के लिए एक चेतावनी है कि यदि समय रहते सतर्कता नहीं बरती गई, तो ऐसी घटनाएं दोहराई जा सकती हैं।
हम सब की जिम्मेदारी है कि प्राकृतिक और पर्यावरणीय खतरों के प्रति जागरूक रहें और अपनी सुरक्षा को प्राथमिकता दें।
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