वर्शिप एक्ट
प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट इनदिनो काफी चर्चा में है। आख़िर यह कानून है क्या? इसको किन परिस्थितियों में बनाया गया? करीब 31 साल बाद वर्शिप एक्ट अचानक सुर्खियों में कैसे आ गया? कुछ लोग वर्शिप एक्ट के विरोध में खड़े है और कुछ इसके समर्थन में। सवाल उठता है कि आखिर इसमें क्या है? आज इसको समझ लेना, जरुरी हो गया है। प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट या उपासना स्थोल, विशेष उपबंध अधिनियम- 1991 को ठीक से समझने के लिए अतीत के कुछ पन्ने पलटने होंगे।
KKN न्यूज ब्यूरो। बात की शुरुआत वर्ष 1988 से करतें हैं। उनदिनो अयोध्या के राम मंदिर का मामला अचानक गरमाने लगा था। बीजेपी ने इसको लेकर आंदोलन की घोषणा कर दी और देश के कई हिस्सो में छोटे- मोटे प्रदर्शन शुरू हो गया। इस बीच 25 सितम्बर 1990 को बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी ने मंदिर निर्माण की मांग को लेकर सोमनाथ से रथयात्रा शुरू कर दी। देश के विभिन्न हिस्सो से गुजरते हुए इस रथयात्रा को 29 अक्टूबर को अयोध्या पहुंचना था। इस बीच 23 अक्टूबर को बिहार के समस्तीपुर पहुंचते ही पुलिस ने रथयात्रा को रोक दिया और लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया गया। उनदिनो बिहार में लालू प्रसाद मुख्यमंत्री हुआ करते थे।
उधर, केन्द्र में प्रधानमंत्री बीपी सिंह की सरकार थी। जो, बीजेपी के समर्थन से चल रही थीं। लालकृष्ण आडवाणी के गिरफ्तार होते ही बीजेपी ने केन्द्र की बीपी सिंह सरकार से अपना समर्थन वापिस ले लिया और केंद्र की वीपी सिंह सरकार गिर गई। इसके बाद देश में आम चुनाव हुआ और कॉग्रेस को बहुमत मिल गया। पीबी नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री बनाए गये। इधर, बीजेपी लगातार मंदिर निर्माण आंदोलन को आगे बढ़ा रही थी। उनदिनो अयोध्या विवाद इलाहाबाद हाई कोर्ट में विचाराधीन था। इस बीच बीजेपी नेताओं ने अयोध्या के साथ काशी और मथुरा को भी जन आंदोलन का हिस्सा बनाना शुरू कर दिया।
प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव को लगा कि यदि धार्मिक स्थलों को लेकर ऐसे विवाद बढ़ते चले गए तो देश में हालात बिगड़ सकता है। प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने अपने कैबिनेट सहयोगियों से विचार विमर्श किया और एक कठोर कानून बनाने का निर्णय ले लिया। इसी कानून को कालांतर में प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के नाम से जाना जाता है। दरअसल, 11 जुलाई 1991 को प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट को संसद की मंजूरी मिली थी। लिहाजा, इसको प्लेसेज ऑफ वर्शिप ऐक्ट- 1991 कहा जाता है। जो, आज चर्चा का विषय बना हुआ है।
अब सवाल उठता है कि इसमें ऐसा क्या है? दरअसल, प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट में लिखा है कि 15 अगस्त 1947 तक जो भी धार्मिक स्थल, जिस स्थिति में था और जिस समुदाय के पास था, भविष्य में भी उसी का रहेगा। यानी 15 अगस्त 1947 के बाद धार्मिक स्थलो में बदलाव करना कानून अपराध हो गया है। स्मरण रहे कि अयोध्या विवाद को इस नए कानून से अगल रखा गया था। क्योंकि, अयोध्या का विवाद उस समय हाई कोर्ट में विचाराधीन था। इसलिए, प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के दासरे से अयोध्या को अलग रखा गया।
यहां एक बात और समझ लेना जरुरी है। केंद्र की कॉग्रेस सरकार ने जब इस क़ानून को संसद में पेश किया था। तब संसद में इसका पुरजोर विरोध हुआ था। उनदिनो राज्यसभा में अरुण जेटली और लोकसभा में उमा भारती ने इसका पुरजोर विरोध किया था। बीजेपी चाहती थीं कि प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट को संसद से स्वीकृति मिलने से पहले इस मामले को संसदीय समिति के पास भेज दिया जाये और प्रयाप्त विचार मंथन के बाद इसको संसद में पेश किया जाए। किंतु, कॉग्रेस ने बीजेपी की मांगे ठुकरा दी और इस बिल को सीधे संसद से स्वीकृत करा लिया गया। संसद की मंजूरी मिलते ही प्लेसेज ऑफ विर्शप एक्ट कानून बन गया और इसको देश में लागू कर दिया गया।
चूंकि, अयोध्या का विवाद प्लेसेज ऑफ वर्सिप एक्ट के दायरे से बहार था। लिहाजा, अयोध्या का विवाद लम्बे समय तक न्यायालय में चलता रहा। हालांकि, गुजिश्ता वर्षो में फैसला आ गया है। इसके बाद अयोध्या का विवाद खत्म हो गया है। पर, काशी और मथुरा समेत देश की करीब 100 धार्मिक स्थलो का विवाद आज भी सुलग रहा है। चूंकि, प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट- 1991 के रहते इन विवादो को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है। लिहाजा, यह विवाद अंदरखाने सुलगता रहा। वर्तमान में काशी के ज्ञानवापी को लेकर अदालत के द्वारा सर्वे कराने का आदेश जारी होते ही एक बार फिर से प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट- 1991 चर्चा में है।
एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर किया हुआ है। इसमें प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट की धारा- 2, 3 और 4 को चुनौती दी गई है। याचिका में कहा गया है कि प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट संविधान द्वारा प्रदत्त समानता के अधिकार, गरिमा के साथ जीवन जीने का अधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार में दखल देता है। यह क़ानून हिन्दू, जैन, सिख और बौद्ध धर्म को मानने वालो को उसके संवैधानिक अधिकारों से उन्हें वंचित करता है। कहा गया है कि जिन धार्मिक और तीर्थ स्थलों को विदेशी आक्रमणकारियों ने जबरन तोड़ दिया था, उसे वापस पाने के क़ानूनी रास्ते को बंद कर देता है। लिहाजा, प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट को लेकर जूडिशियल रिव्यू करने की मांग की गई है। अदालत ने केन्द्र सरकार से उसका मंतव्य मांगा है। अब देखना है, आगे क्या होता है?
फिलहाल, प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट को लेकर देश की राजनीति गरमा गई है। अपने- अपने नफा नुकसान को देखते हुए कुछ राजनीतिक पार्टियां इसके विरोध में खड़ी है तो कुछ समर्थन में है। कहतें है कि प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट- 1991 को नहीं समझने वाले कई लोग कई तरह की बातें कर रहें हैं। लिहाजा मैंने आप तक जानकारी पहुंचाने की कोशिश की है। अब आप इस जानकारी से, इस कानून से सहमत हो सकतें है। सहमत नहीं भी हो सकतें है। पर, प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट, एक सच्चाई है और इससे इनकार नहीं किया जा सकता है।
This post was published on मई 24, 2022 18:59
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