कांग्रेस सांसद शशि थरूर एक बार फिर अपनी पार्टी की आधिकारिक लाइन से अलग दिखे। अक्सर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करने और स्वतंत्र राय रखने वाले थरूर ने इस बार PM, CM और मंत्रियों की अयोग्यता से जुड़े विवादित Bill का समर्थन किया है।
NDTV से बातचीत में थरूर ने कहा कि अगर कोई प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री 30 दिन से ज़्यादा न्यायिक हिरासत में रहता है, तो यह स्वाभाविक है कि उसे पद छोड़ देना चाहिए। उन्होंने इसे “सामान्य ज्ञान” का मामला बताया और साफ कहा कि इसमें उन्हें कुछ भी गलत नज़र नहीं आता।
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने बुधवार को संसद में 130वां संविधान संशोधन विधेयक 2025 पेश किया। इस Bill में प्रावधान है कि प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री और मंत्री तक, अगर कोई भी नेता 30 दिन से ज़्यादा जेल में रहता है, तो 31वें दिन उसे इस्तीफ़ा देना होगा या उसे बर्खास्त कर दिया जाएगा।
अमित शाह ने स्पष्ट किया कि इस Bill को Joint Parliamentary Committee (JPC) को विचार के लिए भेजा जाएगा ताकि इस पर विस्तृत बहस हो सके।
शशि थरूर ने इस कदम का स्वागत किया और कहा कि अगर Bill को JPC में भेजा जाता है तो यह लोकतंत्र के लिए अच्छा होगा। उनके अनुसार, ऐसी संवेदनशील नीतियों पर समिति स्तर पर चर्चा होना ज़रूरी है ताकि विशेषज्ञ और सांसद सभी पहलुओं पर विचार कर सकें।
जहाँ थरूर ने Bill का समर्थन किया, वहीं कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और AIMIM समेत कई विपक्षी दलों ने इसका जोरदार विरोध किया। उनका आरोप है कि सरकार इस कानून का इस्तेमाल राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाने के लिए कर सकती है।
कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने इसे “काला कानून” करार दिया। उन्होंने कहा कि किसी भी मुख्यमंत्री या मंत्री के खिलाफ केस दर्ज कर उन्हें 30 दिन तक जेल में रखा जा सकता है और इसके बाद उन्हें पद छोड़ना होगा। प्रियंका ने इसे पूरी तरह असंवैधानिक और लोकतंत्र पर हमला बताया।
प्रियंका गांधी का कहना है कि यह Bill भारतीय संविधान की उस मूल भावना को तोड़ता है जिसमें कहा गया है कि “जब तक दोषी साबित न हो, तब तक निर्दोष”। उन्होंने आरोप लगाया कि यह कानून कार्यकारी एजेंसियों को असीमित शक्ति देगा और चुने हुए नेताओं को बिना ट्रायल के हटाया जा सकेगा।
AAP ने भी इस Bill का विरोध किया, भले ही वह INDIA गठबंधन का हिस्सा न हो। AAP नेताओं ने कहा कि केंद्र सरकार पहले से ही विपक्षी नेताओं के खिलाफ एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है।
AAP नेता अनुराग ढांडा ने उदाहरण देते हुए कहा कि दिल्ली के पूर्व मंत्री सत्येंद्र जैन को डेढ़ साल तक जेल में रखा गया और बाद में कहा गया कि उनके खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं है। ढांडा के अनुसार, इस Bill के तहत उन्हें निर्दोष होने के बावजूद मंत्री पद से हटाया जा सकता था।
इस Bill में साफ प्रावधान है कि –
अगर कोई प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री 30 दिन से ज़्यादा न्यायिक हिरासत में रहता है, तो 31वें दिन उसे पद छोड़ना होगा।
इस्तीफा न देने पर उसे बर्खास्त कर दिया जाएगा।
यह प्रावधान केंद्र और राज्य, दोनों स्तरों पर लागू होगा।
सरकार का तर्क है कि गंभीर आरोपों में जेल में बंद नेताओं को शासन करने का अधिकार नहीं होना चाहिए।
इस Bill ने संवैधानिक बहस छेड़ दी है। विशेषज्ञों का कहना है कि भारतीय कानून की बुनियाद “निर्दोष जब तक दोषी साबित न हो” है। बिना दोष साबित हुए सिर्फ हिरासत में रखने पर ही पद से हटाना इस सिद्धांत के खिलाफ है।
विपक्ष का आरोप है कि यह कानून राज्यों की निर्वाचित सरकारों को अस्थिर करने का हथियार बन सकता है।
शशि थरूर का यह रुख कांग्रेस नेतृत्व से उनके बढ़ते मतभेदों को फिर उजागर करता है। 2021 में G-23 ग्रुप में शामिल होने के बाद से वह कई बार पार्टी लाइन से हटकर बयान दे चुके हैं। हाल ही में उन्होंने संसद में अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला पर विशेष चर्चा में कांग्रेस के रुख पर भी सवाल उठाया था।
पार्टी सूत्रों के मुताबिक, पहलगाम हमले और उसके बाद हुए ऑपरेशन सिंदूर को लेकर भी थरूर और कांग्रेस नेतृत्व के बीच संबंध और खराब हुए हैं।
थरूर का यह बयान विपक्ष की एकजुटता पर सवाल खड़े कर रहा है। जहाँ कांग्रेस, सपा, AIMIM और AAP जैसे दल Bill का विरोध कर रहे हैं, वहीं थरूर का समर्थन सरकार के लिए राहत माना जा रहा है।
विश्लेषकों का मानना है कि ruling party इस तरह के मतभेदों का फायदा उठाकर Bill को आगे बढ़ा सकती है।
दागी नेताओं को पद से हटाने वाला Bill अब भारतीय राजनीति में एक बड़ा विवाद बन गया है। सरकार इसे पारदर्शिता और जवाबदेही की दिशा में कदम बता रही है, जबकि विपक्ष इसे लोकतंत्र के लिए खतरा मान रहा है।
शशि थरूर का समर्थन इस बहस को और गहरा कर रहा है। अब सबकी नज़र JPC की चर्चा और संसद में होने वाली आगामी बहस पर होगी।
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