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करबट बदलती भारत की राजनीति

भारत की राजनीति बेहद ही दिलचस्प मोड़ पर है। गुजरात चुनाव के बाद से ही इसके संकेत मिलने लगे थे। किंतु, चुनाव बाद ताबड़तोड़ लिए जा रहे निर्णय से इसकी और भी पुष्टि हो गयी है। दरअसल, राहुल गांधी मंदिरों के चक्कर लगा रहे हैं। ममता बनर्जी पुरोहित सम्मेलन कर रही हैं और केन्द्र की मोदी सरकार मुस्लिमों से जुड़े ताबड़तोड़ फैसले कर रही है।

पिछले एक महीने में केंद्र की सरकार ने मुस्लिमों से जुड़े तीन बड़े फैसले लिए हैं। इसमें तीन तलाक बिल, पुरुषों के बगैर महिलाओं को हज जाने की व्यवस्था और हज सब्सिडी को खत्म करके भाजपा ने एक साथ कई निशाना साधे हैं। राजनीति के जानकार इसे भाजपा की मोदी स्टाइल की राजनीति बतातें है। जानकार यह भी बतातें हैं कि यह मोदी का मैजिक ही है, जो कांग्रेस और ममता की राजनीति को मस्जिद से निकाल कर मंदिरो तक पहूंचने को विवश कर दिया है। यानी अब राजनीति की सेक्यूलर धारा राष्ट्रवाद की ओर करबट बदलने लगी है। लिहाजा यह कहना अतिशयोक्ति नही होगा कि भारत की आने वाली राष्ट्रीय राजनीति अब राष्ट्रवादी वोटबैंक को लेकर होने वाली है।
बहरहाल, मोदी की सरकार ने मुस्लिमो के लिए जो ताबड़तोड़ निर्णय लिए है, प्रथमदृष्टया यह सुधारवादी अभियान दिखता था। किंतु, इन फैसलो से मुस्लिम समाज का पुरूष वर्ग भाजपा से और अधिक चिढ़ गया है। यही से शुरू होती है भाजपा की असली राजनीति। मुस्लिमो के द्वारा की जारी चिल्ल- पो से कट्टर हिन्दू मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग आत्मतुष्टी महसूस करने लगा और जाहिर है इसका लाभ भाजपा को ही मिलेगा। दूसरी और चूंकि फैसला सुधारवादी है, लिहाजा उदारवादी हिन्दुओं को भी इससे कोई आपत्ति नही है। यानी, भाजपा का परंपरागत वोट और मजबूती से उसके साथ खड़ा हो सकता है। इतना ही नही बल्कि, भाजपा की इस राजनीतिक चाल से कांग्रेस या ममता की मौजूदा हिन्दुत्व की धारा भी कमजोर पड़ती हुई दिखाई पड़ने लगी है। क्योंकि, इनमें से कोई भी न तो भाजपा के इन फैसलों का ठीक से विरोध करने की स्थिति में है और नाही भाजपा की इस लाइन पर चलने का साहस दिखाने का माद्दा ही रखती हैं।
बात सिर्फ यहीं खत्म नहीं होती। ये फैसले भाजपा के खिलाफ रहने वाले मुस्लिम वोटबैंक में भी सेंधमारी कर सकता है। अब ये छुपी बात नहीं है कि तीन तलाक पर भाजपा के स्टैंड को मुस्लिम महिलाओं का जबर्दस्त समर्थन मिला है। तीन तलाक बंद करने के लिए लाए गए कड़े बिल के बाद ये समर्थन और पुख्ता होकर सामने आया है। मुस्लिम महिलाओं की स्वतंत्रता और सम्मान की लड़ाई मोदी सरकार कुछ इस तरह लड़ती नजर आ रही है कि फिलहाल तो मुस्लिम महिलाओं का सबसे बड़ा समर्थक भाजपा ही नजर नहीं आ रही है।
गौर करने वाली बात ये है कि 15 दिसम्बर को भाजपा तीन तलाक बिल लाती है और 30 दिसम्बर को पुरुषों के बगैर ही 45 साल से अधिक उम्र की महिलाओं को हज पर जाने की इजाजत देती है। इतना ही नही बल्कि, 16 जनवरी को सरकार हज सब्सिडी खत्म करके अपनी मास्टर स्टॉक चल देती है। बतातें चलें कि सरकार ने सिर्फ सब्सिडी ही खत्म नहीं किया है। बल्कि, लगे हाथो यह भी घोषणा कर दिया कि इससे बचे पैसे का इस्तेमाल अल्पसंख्यक लड़कियों के शिक्षा और उनके सशक्तीकरण पर खर्च किया जाएगा। इस तरह ये तीनों फैसले अगर मुस्लिम समाज के पुरुषों को चिढ़ाने वाले हैं तो मुस्लिम महिलाओं के हक की आवाज को भी बुलंद करते हैं। साथ ही एक ऐसे वोटबैंक में दरार डालते हैं, जो अभी तक भाजपा के खिलाफ एकजुट होकर वोट करता रहा है।
कुछ लोग कह सकते हैं कि तीन तलाक पर बिल लाने का आदेश तो सुप्रीम कोर्ट का था। सुप्रीम कोर्ट ने ही हज सब्सिडी खत्म करने के लिए कहा था। और, 45 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं को अकेले हज जाने की इजाजत देने में भला क्या सियासत हो सकती है? इनकी बात सही भी है। इनसे असहमति का सवाल नहीं उठता। मगर, तीन तलाक बिल का जरूरत से काफी ज्यादा कड़ा होना और दिये गए समय से चार साल पहले ही हज सब्सिडी को खत्म करने का फैसला बताता है कि इनके सियासी मायने हैं। तीन तलाक बिल अगर इस कदर कठोर न होता तो राज्यसभा में अटकता नहीं और आसानी से पास हो गया होता।
राजनीति के जानकार मानते हैं कि यदि बगैर विरोध के बिल पास हो जाता तो मुस्लिम महिलाओं के हक में एक ऐतिहासिक कानून बनने के बावजूद भाजपा को उसका सियासी फायदा नही मिल पाता। इसी तरह हज सब्सिडी खत्म करने का फैसला भाजपा बाद में लेती तो उसका फायदा उसे आठ राज्यों में होने वाले चुनावों में नही मिल पाता। लिहाजा सुधारवाद के नाम पर भाजपा की यह सियासी चाल बिरोधियों की समझ से परे हो गया। अब सवाल उठना लाजमी है कि आने वाले दिनो में भारत की बदलती राजनीति को नही समझ पाने का बिरोधियों को मलाल रह जायेगा या भाजपा को इसका खामियाजा उठाना पड़ेगा? इससे भी बड़ा सवाल ये कि क्या मुस्लिम महिलाएं इन फैसलो के आधार पर भाजपा की वोटबैंक बनेगी या महज निर्णय का लाभ लेकर फिर से अपने कुनबे में लौट जायेगी? दरअसल, इसे ठीक से समझ पाना इतना आसान भी नही है और इसे समय की कसौटी पर परखने के लिए हम सभी को अभी और इंतजार करना होगा।

This post was published on जनवरी 20, 2018 23:04

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