चीन की गिदड़ भवकी, कही हमारी विफलता तो नही

कौशलेन्द्र झा
तिब्बत के धर्म गुरू दलाई लामा के अरूणाचल दौरे पर चीन का आंख तरेरना, हमारी सात दशक पुरानी विदेश नीति की विफलता नही तो और क्या है? अरूणाचल पर बेजा दावा करने वाला, यह वही चीन है, जो भारत के दावे वाले पीओके में आर्थिक गलियारा बना रहा है और हमारी सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है। यह हमारे कमजोर विदेश नीति ही है कि चीन अन्तर्राष्ट्रीय पटल पर हमेशा से भारत को नीचा दिखाने में लगा रहता है। दरअसल, आंतरिक समस्याओं में उलझी रहने वाली हमारी सरकारें चीन की बेजा हरकतो को अन्तर्राष्ट्रीय पटल पर मजबूती से रखने में हमेशा विफल रही है।
पिछले दिनो चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग का भारत दौरा भारत-चीन संबंधों को कहां तक ले गया? आज के मौजू में ये सबसे बड़ा सवाल है। क्योंकि, एक तरफ भारत चीन की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ा रहा है और दूसरी तरफ चीनी सैनिक लद्दाख के चुमार हो और अरूणाचल में घुसपैठ करतें रहतें हैं। ऐसे में फिर वही सवाल कि चीन आखिर चाहता क्या है? क्या वह सीमा विवाद की आर लेकर भारत को नीचा दिखाना चाहता है?
बहरहाल, मोदी-चिनफिंग के बीच जिन 12 मुद्दों पर पिछले दिनो व्यापारिक समझौते हुए है। बेशक इसका फायदा दोनों देशों को मिलेगा। लेकिन क्या व्यापारिक संबंधों की खातिर भारत चीनी की बेजा हरकतों को नजर अंदाज करता रहेगा? कहतें हैं कि चीन एक ऐसा देश है जिसे साध पाना बेहद मुश्किल है। दरअसल, शक्तिशाली चीन एक विस्तारवादी देश है और वह महाशक्ति बनने की महत्वाकांक्षा भी पाले हुआ है।
हाल के वर्षो में भारत का जापान के साथ बढ़ रही नजदीकियों से चीन पहले से खार खाये हुआ है। जापान के साथ भी चीन का जमीनी विवाद चल रहा है। इसके अतिरिक्त अमेरिका के साथ भारत की रणनीतिक साझेदारी की कोशिशें भी चीन पचा नहीं पा रहा है। उधर, वियतनाम के साथ भी भारत के अच्छे संबंध बनने शुरू हो गयें हैं। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की पिछले दिनो हुई वियतनाम दौरा से चीन की बौखलाहट जग जाहिर हैं। गौर करने लायक बात है कि वियतनाम के साथ भी चीन का सीमा विवाद चल रहा है।
बहरहाल, अरुणाचल के एक बड़े हिस्से पर अपना अधिकार जताने वाला चीन आज भी अरूणाचल के लोगों को नत्थी वीजा जारी करता है। यह भारत के लिए खासा अपमानजनक नही तो और क्या है? चीन भारत में अगले पांच सालों में 20 अरब डॉलर का निवेश करने वाला है। बावजूद इसके दलाई लामा को लेकर चीन ने जो बयान दिएं हैं। उसके दूरगामी परिणाम को हल्के में देखना, भारत के लिए आत्मघाती हो सकता है।

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