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मुंबई के ऐतिहासिक कार्नैक ब्रिज का बदला नाम, ऑपरेशन सिंदूर की सफलता को समर्पित

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मुंबई की ऐतिहासिक पहचान में एक नया अध्याय जुड़ गया है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने गुरुवार, 10 जुलाई 2025 को सिंदूर ब्रिज का उद्घाटन किया। यह ब्रिज पहले कार्नैक ब्रिज के नाम से जाना जाता था, जो अब “ऑपरेशन सिंदूर” की सफलता के सम्मान में नया नाम प्राप्त कर चुका है।

ब्रिज का यह नया नाम सिर्फ एक शिलापट्ट परिवर्तन नहीं, बल्कि भारत के सैन्य गौरव और औपनिवेशिक इतिहास की विस्मृति की ओर एक मजबूत कदम माना जा रहा है।

कार्नैक से सिंदूर: इतिहास से हटकर नए युग की शुरुआत

पुराना कार्नैक ब्रिज वर्ष 1868 में ब्रिटिश शासनकाल में बनाया गया था और इसका नाम जेम्स रिवेट-कार्नैक के नाम पर रखा गया था, जो 1839 से 1841 तक बॉम्बे प्रेसीडेंसी के गवर्नर थे। यह पुल मस्जिद इलाके को पी डी मेलो रोड से जोड़ता था, जो दक्षिण मुंबई के व्यस्ततम क्षेत्रों में से एक है।

तीन साल पहले, 2022 में इस ब्रिज को असुरक्षित घोषित कर तोड़ दिया गया और इसके स्थान पर नए पुल का निर्माण शुरू हुआ, जो 13 जून 2025 को पूरा हुआ।

 सिंदूर ब्रिज की विशेषताएं

  • कुल लंबाई: 328 मीटर

  • लेन: 4 वाहन लेन (पहले सिर्फ 2 थीं)

  • कनेक्टिविटी: पोर्ट एरिया को क्रॉफर्ड मार्केट, कालबादेवी और धोबी तलाव से जोड़ता है

  • यातायात प्रभाव: दक्षिण मुंबई की भारी ट्रैफिक को कम करने में सहायक

ऑपरेशन सिंदूर: इस नाम के पीछे की वीरता

मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने उद्घाटन के अवसर पर कहा:

“यह ब्रिज ऑपरेशन सिंदूर की सफलता के उपलक्ष्य में नामित किया गया है, जो पाकिस्तान में आतंकवादी ठिकानों के खिलाफ हमारे सैन्य बलों की बड़ी कार्रवाई थी। सिंदूर का मतलब है देश की वीरता से इतिहास के काले पन्नों को मिटाना।”

उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि प्रबोधनकर ठाकरे की ऐतिहासिक कृति के अनुसार, कार्नैक ने छत्रपति प्रताप सिंह राजे और रंगो बापूजी के खिलाफ षड्यंत्र किए थे, और ब्रिटिश शासन में भारतीयों पर कई अत्याचार किए थे।

ब्रिज का नाम बदलना ब्रिटिश औपनिवेशिक मानसिकता से छुटकारा पाने और भारतीय गौरव की पुनर्स्थापना का प्रयास है।

 कौन था जेम्स रिवेट-कार्नैक?

जेम्स रिवेट-कार्नैक, ब्रिटिश काल में बॉम्बे का गवर्नर था। भारतीय इतिहासकारों के अनुसार, कार्नैक ने स्वतंत्रता संग्राम से पहले स्थानीय मराठा राजाओं के खिलाफ साजिशें की थीं।

इस ब्रिज का नाम उन्हीं के नाम पर होना आज के स्वतंत्र भारत के लिए सांस्कृतिक और ऐतिहासिक रूप से अनुचित माना गया, जिसे अब ठीक कर दिया गया है।

 ब्रिज के उद्घाटन में देरी और राजनीति

इस ब्रिज के उद्घाटन में देरी को लेकर 2 जुलाई 2025 को शिवसेना (UBT) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) ने विरोध प्रदर्शन भी किया था। उनका आरोप था कि ब्रिज निर्माण तो पूरा हो चुका है लेकिन अभी तक जनता के लिए चालू नहीं किया गया।

इस पर मुंबई महानगरपालिका (BMC) ने स्पष्टीकरण दिया कि अंतिम अनुमति और सेंट्रल रेलवे से NOC, साथ ही साइन बोर्ड और लेन मार्किंग जैसे कार्यों के कारण उद्घाटन में विलंब हुआ।

अब यह ब्रिज पूरी तरह से चालू है और हजारों यात्रियों को राहत देगा।

 शहरी विकास और सांस्कृतिक पुनर्स्थापना

सिंदूर ब्रिज सिर्फ एक यातायात सुविधा नहीं है, यह उस विचार का भी प्रतिनिधित्व करता है जिसमें भारत औपनिवेशिक विरासत को पीछे छोड़कर आधुनिक भारत के प्रतीकों को अपनाना चाहता है।

आज देशभर में कई स्थानों के नाम बदले जा रहे हैं जो ब्रिटिश या मुग़ल इतिहास से जुड़े हैं, और जिनका संबंध भारत के स्वतंत्रता संग्राम या सैन्य गौरव से नहीं है। सिंदूर ब्रिज इस कड़ी में एक प्रेरणादायक उदाहरण बन गया है।

🇮🇳 ‘सिंदूर’ शब्द का प्रतीकात्मक अर्थ

‘सिंदूर’ सिर्फ सैन्य ऑपरेशन का नाम नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति में सम्मान, समर्पण और बलिदान का प्रतीक भी है। सिंदूर ब्रिज का नाम इस प्रकार रखा गया है कि यह न केवल एक सैनिक विजय की याद दिलाए, बल्कि एक नए युग की शुरुआत का संकेत भी दे।

 क्यों है सिंदूर ब्रिज महत्वपूर्ण? (संक्षेप में)

विशेषता विवरण
पुराना नाम कार्नैक ब्रिज
नया नाम सिंदूर ब्रिज
उद्घाटन की तारीख 10 जुलाई 2025
उद्घाटनकर्ता मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस
कुल लंबाई 328 मीटर
लेन की संख्या 4 वाहन लेन
निर्माण पूर्ण 13 जून 2025
यातायात लाभ दक्षिण मुंबई की ट्रैफिक में राहत
ऐतिहासिक महत्व ऑपरेशन सिंदूर और ब्रिटिश शासन से मुक्ति

सिंदूर ब्रिज का निर्माण और नामकरण केवल एक आधारभूत संरचना का विकास नहीं, बल्कि राष्ट्रवादी सोच और गौरवशाली सैन्य परंपरा की जीत भी है। यह ब्रिज आज भारत को उसकी सांस्कृतिक जड़ों और आधुनिक उपलब्धियों से जोड़ने का प्रतीक बन चुका है।

जहां एक ओर यह ब्रिज मुंबईवासियों को यातायात की सुविधा देगा, वहीं दूसरी ओर यह उन्हें याद दिलाता रहेगा कि भारत अब अपनी पहचान खुद तय करता है, न कि किसी उपनिवेशवादी शासन की विरासत से।

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