Home KKN Special विदाई में कैसे रोयेगी बेटिया, अब मिलेगा रोने का भी प्रशिक्षण

विदाई में कैसे रोयेगी बेटिया, अब मिलेगा रोने का भी प्रशिक्षण

​सात दिन में रोने की कला में कराया जायेगा पारगंत

आधुनिक बेटियो में लोक रिवाज जगाने की कवायद शुरू

नमस्ते, टा टा से नही चलेगा काम, गले मिलकर बहाना होगा आंसू

भोपाल में शुरू हुआ सात दिन का कोर्स…

संतोष कुमार गुप्ता

भोपाल। गांवो मे विदाई का बेला हर किसी को गमगीन कर देता है। जब लड़की बाबुल का घर छोड़कर ससुराल के लिए प्रस्थान करती है तो वह क्षण बहुत ही मार्मिक होता है।मौके पर मौजूद लोगो के आंखो से आंसू रोकना मुश्किल होता है किंतु समय अब तेजी से बदला है।गांवो का ट्रेंड भी बहुत बदला है।गांव की लडकिया बड़ी संख्या मे शहरी इलाके मे शिक्षा ग्रहण कर रही है।वो तेजी से सरकारी नौकरियो मे भी जा रही है। सोशल मीडिया का भी उस पर बड़ा इफैक्ट है। ऐसी स्थिति मे पुराने रिवाज व गांव की परम्परा को आगे बढाना उसके लिए मुशकिल साबित हो रहा है। अब विदाई की बेला मे इनको रोने की रस्म निभाना मुशकिल काम होता जा रहा है। हालांकि ऐसे लड़कियो की सहुलियत के लिए ट्रेनिंग सेंटर खुलना शुरू हो गया है। ये आपको मजाक भी लग सकता है…या हो सकता है सुनकर आपको अच्छा ना भी लगे..! की लड़कियां अब रोना भूल गयी है.. उन्हें नहीं मालूम की रोना कैसा है।

लिहाजा मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में दुल्हनों का रोने की ट्रेनिंग दी जा रही है। ताकि लोगों को रोने की एक्टिंग हकीकत लगे। और वीडियो कैमरे में बिल्कुल नेचुरल लुक आये। भोपाल की रहने वाली राधिका रानी एक क्रेश कोर्स दुल्हनों के लिए शुरू किया है। जो सात दिनों तक दुल्हनों को रोने की कला सिखायेगी। राधिका को ये कोर्स शुरू करने का ख्याल तब आया जब वो एक सहेली की शादी में गयी थी, और जब विदाई का वक्त आया तो सहेलियों में ये चिंता आयी कि रोना कैसे शुरू किया जाये। क्योंकि किसी को रोना नहीं आता था।सहेलियां एक-दूसरे से करती रही, कि पहले तुम शुरू करो फिर हम फालो कर लेंगे। एक सहेली ने रोने की शुरुआत की ,लेकिन उसने रोने की इतनी ओवर एक्टिंग कर दी कि दुल्हन रोने के बजाय हंसने लगी। बेकार का रोना देख सारे लोग पेट पकड़-पकड़ के इतना हंसे की पूरा माहौल हास्यास्पद हो गया। राधिका मानती है  कि आजकल शादी में दुल्हन की विदाई के वक्त रोना ही सबसे मुश्किल का काम होता है। राधिका बताती है कि शादी का इंतजाम पैसे से हो जाता है। लेकिन रोना तो घरवालों को ही होता है।  लिहाजा उसने ये कोर्स शुरू किया है। जो विदाई के वक्त दुल्हनों को कैसे रोना है,वो सिखायेगी।हालांकि सुदूर ग्रामीण इलाको मे तो लडकिया वरमाला स्टेज से ही रोना शुरू कर देती है।उनको सम्भालाना मुशकिल हो जाता है।अगर इनके सामने दाता,सैनिक व विदाई के अन्य गीत बजा दो तो पुरी रात आप इनके आंसू नही रोक पायेंगे।किंतु अब आधुनिक कल्चर मे विदाई के वक्त लड़किया नमस्ते,बाय बाय  व टाटा से काम चलाना चाहती है।


Discover more from

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Show comments

Exit mobile version