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तो क्या इतिहास के पन्नो में गुम हो जाएगी चीन की चालबाजी

भारत ।  चीन भारत का पड़ोसी है, पर वह बेहद चालबाज है। चीन हमेशा से विस्तारवाद का पोषक रहा है और उसके मूल नीति को समझे बिना चीन से दोस्ती करना भारत के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है। हमें कभी नही भूलना चाहिए हिन्दी- चीनी भाई- भाई का नारा जिस वक्त अपने पराकाष्टा पर था, ठीक उसी वक्त चीन की रेडआर्मी ने हमारे टेरोटियल पर हमला करके एक बड़े भूभाग पर कब्जा कर लिया था। आज भी चीन की पैनी नजर न सिर्फ डोकालाम पर है। बल्कि, वह हमारे अरूणाचल प्रदेश, सिक्किम, भूटान और लद्दाख को भी ललचाई भरी नजरो से देखता है।

चीन के धोखेबाजी का मिशाल बना तिब्बत

इतिहास के पन्नो में झांके तो चीन के चालबाजी का ज्वलंत मिशाल है तिब्बत। बहुत कम लोग इस बात से वाकिफ हैं कि कभी तिब्बत ने, चीन से अपनी रक्षा के लिए सैन्य मदद मांगी थी। चीन ने मदद भी किया। लेकिन, बाद में धोखे से उस पर कब्जा कर लिया। तिब्बत पर धोखे से कब्जा करने के बाद चालाक चीन की निगाहें अब भारत की सीमा पर लगी हुई है। चीन एक ऐसा देश है जो आज भी अपनी विस्तारवादी नीति पर ही काम कर रहा है।

चीन ने कैसे किया तिब्बत पर कब्जा

दरअसल, हुआ ये कि 19वीं सदी के आरंभिक वर्षो में तिब्बत और नेपाल के बीच अक्सर युद्ध होने लगा था। युद्ध में तिब्बत को अक्सर हार का सामना करना पड़ रहा था। लिहाजा, नेपाल ने हर्जाने के तौर पर तिब्बत को प्रत्येक वर्ष 5 हजार नेपाली रुपया, बतौर जुर्माना देने की शर्त पर हस्ताक्षर करवा लिए। इससे तिब्बत के शासक काफी दुखी हो गये और हर्जाने की अदायगी से बचने के लिए चीन से सैन्य सहायता की मांग कर दी। चीन की मदद के बाद तिब्बत को हर्जाने से छुटकारा तो मिल गया। लेकिन 1906-7 ई. में तिब्बत पर चीन ने अपना अधिकार जमा लिया और याटुंग, ग्याड्से समेत गरटोक में अपनी चौकियां स्थापित कर लीं। जानकार मानते है कि तिब्बत की अपनी ही गलती, उसके गुलामी का कारण बन गया। कहते हैं कि चीन की सेना ने यहां पर तिब्बती लोगों का शोषण किया और आखिर में वहां के प्रशासक दलाई लामा को अपनी जान बचाकर भागना पड़ा। जो, आज भी भारत में शरण लिए हुएं हैं।

चीन ने रची एक और साजिश

सन 1933 ईस्वी में 13वें दलाई लामा की मृत्यु के बाद आउटर तिब्बत धीरे-धीरे चीन के घेरे में आने लगा था। 14वें दलाई लामा ने 1940 ईस्वी में शासन भार संभाला। 1950 ईस्वी में पंछेण लामा के चुनाव को लेकर दोनों देशों में शक्ति प्रदर्शन की नौबत आ गई और चीन को आक्रमण करने का बहाना मिल गया। इसके बाद 1951 की संधि के अनुसार साम्यवादी चीन के प्रशासन में इनर तिब्बत को एक स्वतंत्र राज्य घोषित कर दिया गया। इसी समय भूमिसुधार कानून एवं दलाई लामा के अधिकारों में कटौती होने के कारण असंतोष की आग सुलगने लगी जो 1956 एवं 1959 ईस्वी में और भड़क उठी। लेकिन बल प्रयोग द्वारा चीन ने इसे दबा दिया। चीन द्वारा चलाए गए दमन चक्र से बचकर किसी प्रकार दलाई लामा नेपाल होते हुए भारत पहुंचे। मौजूदा समय में सर्वतोभावेन पंछेण लामा यहां के नाममात्र के प्रशासक बन कर रह गये हैं।

तिब्बत का बौद्ध धर्म से गहरा लगाव

कहते हैं कि मध्य एशिया की उच्च पर्वत श्रेणियों, कुनलुन एवं हिमालय के मध्य स्थित 16 हजार फुट की ऊँचाई पर स्थित तिब्बत का ऐतिहासिक वृतांत लगभग 7वीं शताब्दी से मिलता है। 8वीं शताब्दी से ही यहाँ बौद्ध धर्म का प्रचार प्रांरभ हो गया था। जानकार मानते हैं कि 1013 ई0 में नेपाल से धर्मपाल तथा अन्य बौद्ध विद्वान् तिब्बत गए। 1042 ई0 में दीपंकर श्रीज्ञान तिब्बत पहुँचे और बौद्ध धर्म का प्रचार किया।

चीन की मौजूदगी भारत के लिए खतरा

बहरहाल, हालत काफी करवट ले चुका है और यदि किसी दिन तिब्बत हमेशा के लिए चीनियों का क्षेत्र बन गया तो यह केवल तिब्बत का अंत नही बल्कि, भारत के लिए भी एक स्थायी खतरा बन जायेगा। पिछले दिनों चीन ने तिब्बत में दुनिया के सबसे उँचे रेलमार्ग का निर्माण करके न केवल तिब्बत पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली है। बल्कि, उसने तिब्बत के खनिज पदार्थो के दोहन का भरपूर अवसर भी अपने पक्ष में कर लिया है। इससे चीन की सामरिक शक्ति में वृद्वि होगी जो भारत के लिए चिन्ता का कारण बन सकता है।

नदियों की आर में कचरा छोड़ रहा है चीन

तिब्बत चीन के सैन्यीकरण का मुख्य अड्डा बन चुका है। वह चीन के आणविक रेडियोधर्मी कचरा फेंकने वाला कूड़ा दान बन कर रह गया है। नतीजा, यहां से निकलने वाली नदियो का जल धीरे- धीरे भयानक रूप से दूषित होता जा रहा है। बताते चलें कि ये नदियाँ आक्सस, सिन्धु, ब्रम्ह्पुत्र, इरावदी आदि है, जो दक्षिणी एशिया के अनेक देशों में बहती है, जिनमें भारत और बांग्लादेश जैसे घनी आबादी वाले देश शामिल हैं।

खनिज सम्पदा पर चीन का कब्जा

चीन ने तिब्बत में पायी जानेवाली खनिज सम्पदा पर भी कब्जा कर लिया है। बताते चलें कि यहां बोरेक्स, क्रोमियम, कोबाल्ट, कोयला, तांबा, हीरा, सोना, ग्रेफाइट, अयस्क, जेड पत्थर, लेड, मैग्नीशियम, पारा, निकेल, प्राकृतिक गैस, तेल, आयोडिन, रेडियम, पेट्रोलियम, चाँदी, टंगस्टन ,टाइटेनियम, युरेनियम और जस्ता इत्यादि प्रमुख रूप से पाया जाता है। इसके अतिरिक्त उत्तरी तिब्बत में कांस्य प्रचुर मात्रा में है। ये सारे खनिज धरोहर पूरी दुनिया के ज्ञात स्रोतों से प्राप्त होंने वाले खनिज पदार्थो का तकरीबन 50 प्रतिशत से भी ज्यादा बताया जा रहा है।

जंगलो को काट कर पैसा कमा रहा है चीन

इतना ही नही बल्कि, चीन ने तिब्बत के जंगलों की अंधाधुध कटाई करके अरबो डॉलर की कमाई कर रहा है। एक अनुमान के अनुसार तिब्बत के 70 प्रतिशत जंगल काटे जा चुके है। चीनियो ने तिब्बत के कृषि प्रणाली को ध्वस्त कर दिया है। नतीजा, पिछले दशक में लगभग तीन लाख तिब्बती भूख से मर गये। चीनियों ने तिब्बत के लोपनोर इलाके में बड़े पैमाने पर आणविक परीक्षण किये है। इसके परिणामस्वरुप लोपनोर में रहने वाले अधिकांश लोग घातक रेडिएशन की चपेट में आकर तड़प-तड़प कर मौत की आगोश में समा गये। वही अधिकांश लोगों जान बचा कर वहां से विस्थापित करने को विवश हो गयें हैं।

चीन के इसी दुखते नब्ज पर हाथ डालने का वक्त

अन्तराष्ट्रीय मामलो के जानकार मानतें हैं कि तिब्बत, चीन का दुखता हुआ नब्ज है और समय आ गया है कि भारत को इस नब्ज पर हाथ डाल देना चाहिए। जिस प्रकार से डोकलाम को लेकर पूर्व में हुए समझौते से चीन मुकर रहा है। ठीक उसी प्रकार भारत सरकार को भी तिब्बत नीति पर पुनर्विचार करने का वक्त आ गया है……।

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This post was published on जून 11, 2018 19:33

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Published by
कौशलेन्‍द्र झा

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