जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले में मचैल माता मंदिर की यात्रा मार्ग पर बादल फटने से भारी तबाही मच गई है। यह हादसा चोसोटी गांव में हुआ, जहां हर साल यात्रा के दौरान बड़े पैमाने पर टेंट और बेस कैंप लगाए जाते हैं। अब तक 12 लोगों के शव बरामद हो चुके हैं, जबकि प्रशासन को आशंका है कि मृतकों का आंकड़ा और बढ़ सकता है। मौसम की खराबी और लगातार बारिश के कारण राहत और बचाव कार्य में भी काफी दिक्कतें आ रही हैं।
प्रशासन ने हादसे के तुरंत बाद मचैल माता यात्रा को स्थगित कर दिया है। NDRF और SDRF की टीमें मौके पर पहुंच चुकी हैं और बचाव कार्य में जुटी हैं। हालांकि, लगातार हो रही बारिश और पहाड़ी भू-भाग के कारण हेलिकॉप्टर से राहत कार्य संभव नहीं हो पा रहा है। ऐसे में ज्यादातर रेस्क्यू ऑपरेशन जमीनी स्तर पर ही किए जा रहे हैं।
अब तक मिले शवों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाया जा रहा है और लापता लोगों की तलाश में खोज अभियान जारी है। इस साल अब तक लगभग ढाई लाख श्रद्धालु मचैल माता के दर्शन कर चुके हैं, जिससे इलाके में भीड़ अधिक थी और हादसे का असर व्यापक हुआ।
प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, हादसे के समय हजारों श्रद्धालु यात्रा मार्ग पर मौजूद थे। बादल फटने से आए सैलाब में लंगर के टेंट और कई अस्थायी ढांचे बह गए। कुछ श्रद्धालु समय रहते सुरक्षित स्थानों पर पहुंच गए, लेकिन कई लोग पानी के तेज बहाव में फंस गए।
यह घटना उत्तराखंड के धराली हादसे के कुछ ही समय बाद हुई है। वहां भी बादल फटने और भूस्खलन से भारी नुकसान हुआ था। हिमाचल प्रदेश के कई क्षेत्रों में भी इस मॉनसून सीजन में भूस्खलन और बादल फटने की घटनाएं हुई हैं। किश्तवाड़ का यह इलाका ऊंचे-नीचे पहाड़ों के बीच बसा है, जहां तेज बारिश के दौरान फ्लैश फ्लड और लैंडस्लाइड का खतरा हमेशा बना रहता है।
पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने घटना पर गहरी चिंता जताई। उन्होंने कहा, “मुझे सुनने में आया है कि आधा गांव बह गया है, जो बेहद डरावना है। पूरे देश के लोगों से अपील करता हूं कि दुआ करें ताकि ज्यादा नुकसान न हो।” उन्होंने साफ कहा कि मौजूदा मौसम में हेलिकॉप्टर से रेस्क्यू ऑपरेशन संभव नहीं है और एंबुलेंस व जमीनी साधनों से ही राहत कार्य किया जाएगा।
केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने भी घटना को अप्रत्याशित और दुखद बताया। उन्होंने कहा, “किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि यहां इतनी बड़ी आपदा आ सकती है।” उन्होंने आश्वासन दिया कि केंद्र सरकार हर संभव मदद प्रदान कर रही है।
हालांकि आधिकारिक तौर पर 12 मौतों की पुष्टि हुई है, लेकिन स्थानीय सूत्रों का कहना है कि कई लोग अभी भी लापता हैं। मलबे और बहाव में फंसे लोगों तक पहुंचना मुश्किल हो रहा है। प्रशासन और राहत एजेंसियां लगातार ऑपरेशन चला रही हैं, लेकिन लगातार बारिश से खतरा बढ़ गया है।
यह हादसा एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर करता है कि पर्वतीय और संवेदनशील क्षेत्रों में आपदा प्रबंधन की तैयारी और इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने की सख्त जरूरत है, खासकर ऐसे रास्तों पर जहां साल में लाखों लोग तीर्थयात्रा के लिए जाते हैं।
प्रभावित लोगों और श्रद्धालुओं को सुरक्षित स्थानों पर बनाए गए राहत शिविरों में भेजा जा रहा है। यहां भोजन, पानी और प्राथमिक चिकित्सा की व्यवस्था की गई है। मेडिकल टीम मौके पर मौजूद हैं ताकि घायलों का तुरंत इलाज किया जा सके।
फिलहाल प्रशासन की प्राथमिकता अधिक से अधिक लोगों को बचाना, लापता लोगों को ढूंढना और प्रभावित परिवारों को तत्काल मदद पहुंचाना है। स्थानीय लोग भी रेस्क्यू ऑपरेशन में प्रशासन का सहयोग कर रहे हैं।
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