भारत का एक ऐसा गीत है जिसे सुनते ही आंखें नम हो जाती हैं और दिल गर्व से भर उठता है—“ए मेरे वतन के लोगों”। यह सिर्फ एक गीत नहीं, एक भावना है जो देश की आत्मा से जुड़ती है। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि इस अमर गीत के पीछे एक जटिल कहानी छिपी है, जिसमें रिश्तों की गर्माहट, मनमुटाव, और राष्ट्रभक्ति की भावना का गहरा जुड़ाव है।
इस गीत को गाने का सौभाग्य लता मंगेशकर को मिला, लेकिन इसके पीछे का सफर उतना आसान नहीं था। इस गीत की रचना सी रामचंद्र ने की थी और इसके बोल लिखे थे कवि प्रदीप ने। पर यह गीत लता तक सीधे नहीं पहुंचा—इसके लिए उन्हें खुद पहल करनी पड़ी।
यह कहानी शुरू होती है फिल्म शहनाई के दौरान, जब पहली बार लता मंगेशकर की मुलाकात संगीतकार सी रामचंद्र से हुई। इस मुलाकात ने हिंदी सिनेमा को एक ऐसी जोड़ी दी जिसने कई यादगार गीतों को जन्म दिया। दोनों के बीच बेहद करीबी और रचनात्मक संबंध बन गया था।
सी रामचंद्र लता की आवाज़ के प्रशंसक थे। कहा जाता है कि वे लता की हर सांस से भी संगीत निकाल सकते थे। फिल्म इंडिया के संपादक बाबूराव पटेल तक ने मजाक में कहा था कि अगर लता उबासी भी लें, तो रामचंद्र उसमें से भी कोई राग निकाल लेंगे।
हालांकि यह मधुर रिश्ता ज्यादा समय तक टिक नहीं पाया। दोनों के बीच धीरे-धीरे दूरियां बढ़ने लगीं। रचनात्मक मतभेद निजी तकरार में बदलने लगे और हालत यहां तक पहुंच गई कि वे न तो साथ काम करना चाहते थे और न ही एक मंच पर आना पसंद करते थे।
खबरों के अनुसार लता ने कई बार निर्माताओं से कहा कि वे सी रामचंद्र के साथ काम नहीं करना चाहतीं और किसी अन्य संगीतकार को चुनने पर ही वे गाने के लिए तैयार होंगी। यह मतभेद इतना गहरा था कि दोनों ने एक-दूसरे से संपर्क तक बंद कर दिया था।
इसी बीच दिल्ली में पंडित जवाहरलाल नेहरू की उपस्थिति में एक खास कार्यक्रम आयोजित होने वाला था। इस कार्यक्रम में एक देशभक्ति गीत प्रस्तुत किया जाना था, जिसे कवि प्रदीप ने लिखा था और जिसे 1962 के भारत-चीन युद्ध में शहीद हुए जवानों को समर्पित किया गया था।
गीत का नाम था—“ए मेरे वतन के लोगों”।
इस गीत की Song Rehearsal संगीतकार सी रामचंद्र द्वारा आशा भोसले के साथ की जा रही थी। लेकिन जब यह बात लता मंगेशकर को पता चली, तो उन्होंने अपनी पुरानी नाराज़गी को दरकिनार कर कवि प्रदीप को एक Message भिजवाया कि वे यह गीत गाना चाहती हैं।
लता मंगेशकर का यह प्रस्ताव सभी के लिए चौंकाने वाला था, क्योंकि वह उन दिनों सी रामचंद्र से संवाद तक नहीं कर रही थीं। लेकिन जब देशभक्ति की भावना जुड़ी हो, तो व्यक्तिगत भावनाएं पीछे रह जाती हैं। रामचंद्र ने भी अपने पुराने मतभेद भुलाकर लता का संदेश स्वीकार किया।
इसके बाद Lata और Asha दोनों को लेकर Rehearsal की गई। उस समय माना जा रहा था कि दोनों बहनें मिलकर इस गीत को गाएंगी। लेकिन आगे चलकर हालात कुछ और बन गए।
यह भी कहा जाता है कि Performance Date से कुछ समय पहले लता ने आशा को इस गीत से हटवा दिया और इसे खुद अपने नाम कर लिया। हालांकि इस पर कभी कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई, लेकिन यह बात वर्षों तक चर्चा का विषय बनी रही।
आशा के स्थान पर केवल लता मंगेशकर ने इस गीत को Stage पर Live Perform किया और वह भी पंडित नेहरू जैसे गणमान्य लोगों की उपस्थिति में।
यह ऐतिहासिक परफॉर्मेंस 26 जनवरी 1963 को दिल्ली में हुई थी। मंच पर जब लता मंगेशकर ने “ए मेरे वतन के लोगों” गाना शुरू किया, तो पूरे पंडाल में सन्नाटा छा गया। गीत जैसे-जैसे आगे बढ़ता गया, लोगों की आंखों से आंसू बहते गए।
खुद पंडित नेहरू इस भावुक प्रस्तुति को सुनकर रो पड़े थे। यह एक ऐसा क्षण था जिसने इस गीत को अमर बना दिया।
यह गीत सिर्फ एक लाइव प्रस्तुति नहीं था, यह Emotional Impact का प्रतीक बन गया। इसके बाद यह गीत देश के हर कोने में गूंजने लगा—स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस, और शहीदों की श्रद्धांजलियों में।
आज भी जब यह गीत बजता है, तो लोगों की आंखों में नमी और दिल में गर्व स्वतः आ जाता है। यह गीत देश के लिए बलिदान देने वाले हर वीर सैनिक को एक भावनात्मक सलामी है।
हालांकि लता मंगेशकर और सी रामचंद्र के रिश्ते फिर कभी पहले जैसे नहीं हो पाए, लेकिन उन्होंने कवि प्रदीप के साथ मिलकर एक ऐसा गीत रचा, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बन गया। यह गीत बताता है कि जब कला में राष्ट्रभक्ति शामिल हो, तो व्यक्तिगत मतभेद भी गौण हो जाते हैं।
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